Friday, November 22"खबर जो असर करे"

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ममता की घृणित राजनीति

ममता की घृणित राजनीति

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- डॉ. मयंक चतुर्वेदी राजनीति करते-करते किस सीमा तक गिरा जा सकता है, इसके अनेकों उदाहरण विपक्षी दल के नेताओं के इस समय देखे जा सकते हैं। आश्चर्य होता है कि मोदी या भाजपा के बैर ने उन्हें इतना अंधा बना दिया है कि वे सही एवं गलत में भी अंतर नहीं करना चाहते । धरने पर बैठे राहुल गांधी भगवान रामलला के भव्य मंदिर प्राण प्रतिष्ठा को लेकर जो बोले वह अपनी जगह है, हद तो वीरप्पा मोइली ने भी की है, किंतु इन सब के बयानों से बढ़कर यदि किसी ने इस वक्त नफरत भरी घृणित शब्दावली का प्रयोग किया है तो वह हैं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी । एक राज्य के महत्वपूर्ण संविधानिक शीर्ष पद पर बैठे किसी व्यक्ति से इस प्रकार के शब्दों के बोलने की उम्मीद कोई नहीं करता, जैसा ममता बोल गई हैं। ‘जो काफिर हैं वो डरते हैं, मरते हैं’ । दुख यह सोचकर होता है कि काफिर शब्द के बारे में क्या ममता जानती नहीं हैं? सदियों...

पंचायती राज की मूलभावना और हम

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- कुलभूषण उपमन्यु लंबे इंतजार के बाद पंचायती राज ने नाममात्र की स्थानीय स्वशासन की इकाई से एक संवैधानिक वास्तविक शक्ति संपन्न स्वशासन की इकाई होने तक का सफर तय किया है। शुरू में पंचायती राज कानूनों में यह लिखा रहता था कि पंचायतें, राज्य सरकार के एजेंट के रूप में कार्य करेंगी। पंचायतें, राज्य सरकारों के रहम पर निर्भर थीं। अपनी इच्छा से पंचायतों का चुनाव होता था। कोई निश्चित अवधि नहीं थी। बजट का भी निश्चित प्रावधान नहीं था। हालांकि महात्मा गांधी पंचायतों को शासन की रीढ़ बनाना चाहते थे, किन्तु संविधान में पंचायती राज को राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांतों में स्थान देकर भविष्य में स्थापित करने के संकल्प के रूप में स्थापित किया गया। 73 वें संविधान संशोधन के बाद पंचायतों को संवैधानिक दर्जा मिला। हर पांच साल में चुनाव होने लगे। राज्य वित्तायोग के माध्यम से निश्चित बजट मिलने लगा। पंचायत की विकास यो...