पृथ्वी की पीड़ा को समझें
- हृदयनारायण दीक्षित
भारतीय विवेक और श्रद्धा में पृथ्वी माता हैं। पृथ्वी को मां मानने और जानने की अनुभूति केवल भारत में है। हम सब पृथ्वी पुत्र हैं। इसी में जन्म लेते हैं। पृथ्वी ही पालती है। यही पोषण करती है। लेकिन दूषित पर्यावरण के कारण पृथ्वी का अस्तित्व संकट में है। सारी दुनिया का ताप बढ़ रहा है। पर्यावरण संरक्षण वैज्ञानिकों के सामने भी बड़ी चुनौती है।
आज से 18 साल पहले 2005 में संयुक्त राष्ट्र का सहस्त्राब्दी पर्यावरण आकलन (मिलेनियन इकोसिस्टम असेसमेंट) आया था। यह एक गंभीर दस्तावेज था और है। इस अनुमान में कहा गया था कि पृथ्वी के प्राकृतिक घटक अव्यवस्थित हो गए हैं। यह अनुमान 18 वर्ष पुराना है। इसके पूर्व सन 2000 में भी पेरिस के `अर्थ चार्टर कमीशन' ने पृथ्वी और पर्यावरण संरक्षण के 22 सूत्र निकाले थे। लेकिन इस दिशा में कोई महत्वपूर्ण काम नहीं हुआ। कोई ठोस संकल्प नहीं लिए गए।
वैसे वैदिक सा...