नागरिक सुरक्षा और सरकार
- डॉ. रमेश ठाकुर
चौदह अगस्त को ‘राष्ट्रीय सामाजिक सुरक्षा दिवस’ है, जिसके मायने मानवीय जीवन के लिए बहुत खास हैं। तेज भागती जिंदगी और मशीनरी युग में दौड़ती इंसानी जीवनशैली में जोखिम की कमी नहीं है। किसी के साथ कब क्या हो जाए, कुछ नहीं पता? नागरिक सुरक्षा दुरुस्त करना, चाहें राज्य की सरकारें हों या केंद्र सरकार, सबका पहला धर्म होता है कि वह अपने लोगों को सुरक्षा की गारंटी दें। इस दायित्व से कोई मुंह नहीं मोड़ सकता। समाज का जिम्मेदार नागरिक जब अपनी सरकार से किसी चीज की मांग करता है, उसके लिए उसे धरना, आंदोलन भी करना पड़ता है, तो उसका समाधान निकालना सरकार की पहली जिम्मेदारी होती है। पर, आज के वक्त में परिदृश्य बहुत बदल चुका है। नागरिक मांगों पर सरकारें मुंह फेरती हैं, सामाजिक मुद्दों को इग्नोर करती हैं। तब, ऐसा प्रतीत होता है कि सामाजिक सुरक्षा को लेकर हुकूमतें गंभीर नहीं है। हुकूमतें ऐसा न करें...