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राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस: चीटिंग छोटी हो या बड़ी, जाएं कंज्यूमर कोर्ट

राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस: चीटिंग छोटी हो या बड़ी, जाएं कंज्यूमर कोर्ट

अवर्गीकृत
- योगेश कुमार गोयल देश में प्रतिवर्ष 24 दिसंबर को उपभोक्ता हितों और उनके अधिकारों की सुरक्षा के लिए ‘राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस’ मनाया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य उपभोक्ताओं को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करना, उनके हितों के लिए बनाए गए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियमों तथा उनके अंतर्गत आने वाले कानूनों की जानकारी देना है। दरअसल ऑनलाइन खरीदारी हो या ऑफलाइन, ग्राहकों को कई बार सामान की गड़बड़ी अथवा अन्य प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है और इसी तरह की समस्याओं से उन्हें निजात दिलाने तथा उपभोक्ता अधिकारों के प्रति जागरूक करने के उद्देश्य से उपभोक्ता दिवस मनाया जाता है। हालांकि वर्ष 2020 तक विभिन्न ई-कॉमर्स साइटों से ऑनलाइन खरीदारी को लेकर उपभोक्ताओं को कोई संरक्षण प्राप्त नहीं था लेकिन उपभोक्ता संरक्षण कानून-2019 (कन्ज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट-2019) में ई-कॉमर्स को भी दायरे में लाकर उपभोक्ताओ...
राहुल गांधी पर पलटवार, वीडी शर्मा बोले- कांग्रेस ने धोखा देकर की भंग की थी किसानों की तपस्या

राहुल गांधी पर पलटवार, वीडी शर्मा बोले- कांग्रेस ने धोखा देकर की भंग की थी किसानों की तपस्या

देश, मध्य प्रदेश
भोपाल। उज्जैन (Ujjain) की सभा में मंगलवार शाम को राहुल गांधी (Rahul Gandhi) का पूरा भाषण तपस्या पर केंद्रित (focused on penance) रहा। उन्होंने अपने संबोधन में किसानों की तपस्या, युवाओं की तपस्या की बात की है। बेहतर होगा अगर राहुल गांधी भाजपा (BJP) को कोसने की बजाय सच्चाई जान लें। यह जान लें कि किसानों और युवाओं की तपस्या को भंग किसने किया? किसने उन्हें धोखा दिया? यह बात भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा (Vishnudutt Sharma) ने राहुल गांधी की सभा पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कही। उन्होंने कहा कि यह वही राहुल गांधी हैं, जिन्होंने मध्यप्रदेश की धरती पर कहा था कि कांग्रेस की सरकार बनने पर हम 10 दिन में किसानों का कर्ज माफ करेंगे और यदि 10 दिन में कर्ज माफ नहीं हुआ तो मुख्यमंत्री बदल देंगे। बाद में सभी ने देखा कि कांग्रेस की सरकार बनने पर किस प्रकार से किसानों को लाल पीले फार्म में उलझ...
डाक्टरी को ठगी का धंधा न बनाएँ

डाक्टरी को ठगी का धंधा न बनाएँ

अवर्गीकृत
- डॉ. वेदप्रताप वैदिक कर्नाटक और गुजरात के मेडिकल कालेजों ने गज़ब कर दिया है। उन्होंने अपने छात्रों की फीस बढ़ा कर लगभग दो लाख रु. प्रति मास कर दी है। यानी हर छात्र-छात्रा को डाॅक्टर बनने के लिए लगभग 25 लाख रु. हर साल जमा करवाने पड़ेंगे। यदि डाॅक्टरी की पढ़ाई पांच साल की है तो उन्हें सवा करोड़ रु. भरने पड़ेंगे। आप ही बताइए कि देश में कितने लोग ऐसे हैं, जो सवा करोड़ रु. खर्च कर सकते हैं? लेकिन चाहे जो हो, उन्हें बच्चों को डाक्टर तो बनाना ही है। तो वे क्या करेंगे? बैंकों, निजी संस्थाओं, सेठों और अपने रिश्तेदारों से कर्ज लेंगे, उसका ब्याज भी भरेंगे और बच्चों को किसी तरह डाॅक्टर की डिग्री दिला देंगे। फिर वे अपना कर्ज कैसे उतारेंगे? या तो वे कई गैर-कानूनी हथकंडों का सहारा लेंगे या उनका सबसे सादा तरीका यह होगा कि वे अपने डाॅक्टर बने बच्चों से कहेंगे कि तुम मरीजों को ठगो। उनका खून चूसो और कर्ज चुकाओ। ...