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रिजर्व बैंक गवर्नर ने कहा- बिना परेशानी बदलें दो हजार रुपये के नोट

रिजर्व बैंक गवर्नर ने कहा- बिना परेशानी बदलें दो हजार रुपये के नोट

देश, बिज़नेस
- आरबीआई ने 2000 रुपये के नोट बदलने के गाइडलाइंस जारी किये नई दिल्ली (New Delhi)। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) (Reserve Bank of India (RBI)) के गवर्नर शक्तिकांत दास (Governor Shaktikanta Das) ने कहा कि लोग-बाग आराम से दो हजार रुपये के नोट (two thousand rupee note) बदलें। इसमें कोई जल्दीबाजी न (don't rush) करें। आरबीआई ने दो हजार रुपये के नोट बदलने के लिए नई गाइडलाइंस जारी की है। रिजर्व बैंक की ओर से जारी गाइडलाइंस में सभी बैंकों को निर्देश दिया गया है कि लोगों को नोट बदलने की सभी सुविधा देने के साथ रोजाना जमा हो रहे दो हजार के नोट का डेटा मेंटेन किया जाए। आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने सोमवार को यहां आयोजित एक प्रेसवार्ता में कहा कि दो हजार रुपये के नोट बदलने के लिए चार महीने का वक्त दिया गया है। इसलिए कोई जल्दबाजी करने की जरूरत नहीं है। दास ने अपने संबोधन में कहा है कि आप आराम से बै...
प्रधानमंत्री के ‘मन की बात’ और नव जागरण

प्रधानमंत्री के ‘मन की बात’ और नव जागरण

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- मृत्युंजय दीक्षित प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मासिक रेडियो कार्यक्रम 'मन की बात' ने अपनी 100 कड़ियां सफलतापूर्वक पूर्ण कर इतिहास रच दिया। यह आकाशवाणी के इतिहास का ऐसा कार्यक्रम बना जिसमें प्रधानमंत्री ने आम जनता से सीधा संवाद किया और इसे राजनीति से पृथक रखा। यह एक सुखद अनुभव है कि 'मन की बात' भारत में बदलाव का बड़ा संवाहक बना। भारतीय समाज को निराशा और अंधकार से निकालने में मदद दी। विकास और प्रगति को नए पंख दिए। 'मन की बात' से भारत की सांस्कृतिक विरासत पुनर्जीवित हुई।भूली परम्पराएं फिर याद आईं। हिंदू सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का पुनर्जागरण हुआ। जैसे दूरदर्शन के इतिहास में रामायण धारावाहिक संपूर्ण भारत में लोगों को घरों में टीवी सेट के सामने बैठा देता था, वैसे ही आज हर माह के अंतिम रविवार को लोग 'मन की बात' को सुनने के लिए बैठ जाते हैं। ऐसा नहीं है कि 'मन की बात' को केवल मोदी समर्थक ही सुन...
हम किसी धर्म को क्यों मानते हैं?

हम किसी धर्म को क्यों मानते हैं?

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- डॉ. वेदप्रताप वैदिक धर्म परिवर्तन संबंधी दो-तीन घटनाओं ने आज मेरा ध्यान खींचा। उ.प्र. के सीतापुर गांव में तीन लोगों को इसलिए गिरफ्तार कर लिया गया कि वे गांव के लोगों को डंडे के जोर पर ईसाई बनाने की कोशिश कर रहे थे। उन्होंने लोगों को कुछ लालच भी दिए और पवित्र क्रास भी बांटे। धर्म परिवर्तन करवाने वाले कुछ भारतीय ईसाइयों के साथ ब्राजील के चार पादरीनुमा टूरिस्ट भी थे। उधर मध्यप्रदेश के बस्तर जिले में लगभग 60 ईसाई परिवारों को भागकर एक स्टेडियम में शरण लेनी पड़ी, क्योंकि उन पर कुछ लोगों ने हमले शुरू कर दिए थे। हमलावरों का आरोप है कि पादरी लोग आदिवासियों को गुमराह करके ईसाई बना डालते हैं। इसी तरह बड़ोदरा के पास एक गांव में एक ईसाई को लोगों ने सिर्फ इसलिए पीट दिया कि वह क्रिसमस के अवसर पर सांता क्लाज के कपड़े पहनकर लोगों को चाॅकलेट बांट रहा था। उधर कर्नाटक विधानसभा में एक ऐसा विधेयक लाने की तैयार...
राष्ट्रीय एकल खिड़की प्रणाली लाल फीताशाही को बदलने में करेगी मदद : गोयल

राष्ट्रीय एकल खिड़की प्रणाली लाल फीताशाही को बदलने में करेगी मदद : गोयल

देश, बिज़नेस
-एकल खिड़की मंजूरी के लिए व्यवसायों की विशिष्ट पहचान बनेगा पैन -एनएसडब्ल्यूएस के माध्यम से अबतक करीब 48 हजार दी गई स्वीकृति नई दिल्ली। राष्ट्रीय एकल खिड़की प्रणाली (एनएसडब्ल्यूएस) (National Single Window System (NSWS)) लाल फीताशाही को लाल कालीन में बदलने के प्रधानमंत्री के दृष्टिकोंण को साकार करने में मदद करेगी। केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल (Commerce and Industry Minister Piyush Goyal) ने सोमवार को विभिन्न हितधारकों के साथ एनएसडब्ल्यूएस के कामकाज की समीक्षा के बाद यह बात कही। गोयल ने यहां आयोजित प्रेस कांफ्रेंस को संबोधित करते हुए कहा किसरकार केंद्र और राज्यों के विभागों द्वारा विभिन्न मंजूरियों के लिए एनएसडब्ल्यूएस के तहत आवेदन करने के लिए अन्य डेटा की जगह स्थायी खाता संख्या (पैन) के इस्तेमाल की इजाजत देने पर विचार कर रही है। वाणिज्य मंत्री ने कहा कि हम मौजूदा डेटाबेस...
ऐसे बदल सकती है सरकारी स्कूलों की तस्वीर…!

ऐसे बदल सकती है सरकारी स्कूलों की तस्वीर…!

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- ऋतुपर्ण दवे भारतीय शिक्षा व्यवस्था उसमें भी खासकर सरकारी तंत्र के अधीन संचालित शिक्षण संस्थाएं आज भी उस मुकाम पर नहीं पहुंच सकीं जिसकी उम्मीद थी। जिनके लिए और जिनके सहारे सारी कवायद हो रही है वही महज रस्म अदायगी करते हुए तमाम सरकारी फरमान एक-दूसरे तक इस डिजिटल दौर में फॉरवर्ड कर खानापूर्ति करते नजर आते हैं। ऐसी तमाम कोशिश, योजनाओं के बावजूद मौजूदा हालात देख जल्द कुछ अच्छे सुधार की उम्मीद बेमानी है। सबसे ज्यादा बदहाल सरकारी स्कूलों की व्यवस्थाएं है। सच तो यह है कि भारत में पूरी शिक्षा व्यवस्था यानी बुनियादी से लेकर व्यावसायिक तक बाजारवाद में जकड़ी हुई है। इसी चलते जहां निजी या कहें कि आज के दौर के धनकुबेरों या बड़े कॉर्पोरेट घरानों के स्कूल जो फाइव स्टार सी चमक दिखाकर रईसों में लोकप्रिय हैं तो वहीं मध्यमवर्गीय लोगों की पसंद के अपनी खास चमक-दमक, लुभावनी वर्दी, कंधों पर भारी भरकम स्कूल बै...
राम नाम के जप ने बदल दी जीवन की दशा

राम नाम के जप ने बदल दी जीवन की दशा

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- योगेश कुमार गोयल अश्विन मास की पूर्णिमा के दिन ‘रामायण’ के रचयिता महर्षि वाल्मीकि के अनुपम संदेशों को जन-जन तक पहुंचाने के लिए हर साल वाल्मीकि जयंती मनाई जाती है। इस वर्ष वाल्मीकि जयंती 09 अक्टूबर को है। मान्यता है कि महर्षि वाल्मीकि के सम्मान में उनकी जयंती रामायण काल से ही मनाई जा रही है। सनातन धर्म के प्रमुख ऋषियों में से एक महर्षि वाल्मीकि की संस्कृत में लिखी गई रामायण को सबसे प्राचीन ग्रंथ माना जाता है। संस्कृत के प्रथम महाकाव्य ‘रामायण’ की रचना करने के कारण ही उन्हें ‘आदिकवि’ कहा जाता है। वाल्मीकिकृत रामायण समूचे विश्व में वेद तुल्य विख्यात है। यह 21 भाषाओं में उपलब्ध है। सनातन धर्म मानने वालों के लिए पूज्यनीय है। राष्ट्र की अमूल्य निधि रामायण का एक-एक अक्षर अमरता का सूचक और महापाप का नाशक है। वाल्मीकिकृत रामायण को ज्ञान-विज्ञान, भाषा ज्ञान, ललित कला, ज्योतिष शास्त्र, आयुर्वेद, इ...

लोगों ने सामूहिक खेती और व्यवसाय से बदल दी गांव की तस्वीर

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- अनिल लगभग 15-20 वर्षों तक नक्सलवाद की जद में रहा तोरपा प्रखंड के गुम्पिला गांव के लोग काफी लंबे अरसे से गरीबी, बेरेजगारी, बिजली पानी, सड़क, चिकित्सा, सिंचाई जैसी बुनियाद समस्याओं से झेल रहे हैं लेकिन अब इन समस्याओं से उबरने की राह गांव वालों ने स्वयं ढूंढ ली है। ग्रामसभा के माध्यम से आय वृद्धि कर छोटी-मोटी समस्याओं के समाधान का रास्ता ग्रामीणों ने ढूंढ निकाला है। इस कार्य को आदिवासी और सदान दोनों वर्ग के लोग मिलजुल कर करते हैं। गांव में पांच एकड़ सामूहिक जमीन वर्षों से बेकार पड़ी थी। इसके आसपास लाह के पोषक पेड़ (बेर और कुसुम) बहुतायत में हैं। ग्रामसभा में निर्णय लेकर बेकार पड़ी जमीन पर सामूहिक खेती करने और पेड़ों पर लाह लगाने का निर्णय लिया गया। पिछले तीन साल से गांव के लोग मिलजुल कर खेती कर रहे हैं। ग्रामीण बताते हैं कि पहाड़ जैसा काम हंसते-हंसते हो जाता है। उत्पादों को बाजार में बेचकर डेढ़ ल...