Friday, November 22"खबर जो असर करे"

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जाति की आग को फिर मिलने लगी हवा

जाति की आग को फिर मिलने लगी हवा

अवर्गीकृत
- डॉ. प्रभात ओझा मसला जाति का हो तो राजनीति होनी ही है। यह जाति के आधार पर जनगणना कराने की बात है। यानी हर जगह, कहां कौन सी जाति के कितने लोग हैं। अगले चरण में इसी औसत में सम्बंधित समुदाय को लाभ देने के कदम उठाए जाएं, यह स्वाभाविक है। जानकार लोगों को मंडल कमीशन (दूसरा पिछड़ा वर्ग आयोग) की रिपोर्ट और उसके बहुत बाद केंद्र में वी. पी. सिंह सरकार के समय उस रिपोर्ट को लागू करने के समय की घटनाएं याद होंगी। यहां गौर करने वाली बात यह है कि तब भी ऐसा किसी जातिगत जनगणना के आधार पर नहीं किया गया था। पहले एक आयोग बना। उसी की रिपोर्ट के आधार पर अन्य पिछड़ा वर्ग के उम्मीदवारों को सरकारी नौकरियों में 27 प्रतिशत आरक्षण देने की व्यवस्था की गयी। जातिगत जनगणना तो 92 साल बाद हुई है। वह भी सिर्फ एक प्रांत में। वर्ष 1931 के 92 साल बाद बिहार में जातीय जनगणना की रिपोर्ट जारी कर दी गई है। इसी के साथ इसके औचित्य प...
जनगणना की प्रक्रिया पारदर्शी होते ही कतिपय भ्रांतियां स्वतः समाप्त हो जाएंगी

जनगणना की प्रक्रिया पारदर्शी होते ही कतिपय भ्रांतियां स्वतः समाप्त हो जाएंगी

अवर्गीकृत
- कमलेश पांडेय लोकतंत्र में संख्या बल का अपना महत्व होता है। 51 वोट का मतलब जीत और 49 वोट का मतलब हार से लगाया जाता है। भारत में बहुदलीय व्यवस्था है, इसलिए यहां पर 30 वोट का मतलब भी जीत हो जाता है, बशर्ते कि 70 वोट की संख्या विभिन्न दलों में विभाजित हो जाये और सबके हिस्से में 29 या उससे कम वोट आये। वैसे तो मतदाता सूची तैयार करना केंद्रीय चुनाव आयोग का कार्य है, लेकिन मतदाताओं के संख्या बल और उसके विकास पायदान की सटीक जानकारी के लिए लोग जनगणना के आंकड़ों पर निर्भर रहते हैं। लेकिन जब ये आंकड़े ही सटीक नहीं बन पाएं, तो किन्तु-परन्तु होना स्वाभाविक है। मोदी सरकार इस कड़वी हकीकत से अवगत हो चुकी है और यदि सबकुछ ठीक-ठाक रहा तो वह जल्द ही तमाम तरह के आंकड़ों की बाजीगरी खत्म करवा देगी। इस बात का संकेत केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने 22 मई को नई दिल्ली में जनगणना भवन का उद्घाटन करने के द...