Friday, September 20"खबर जो असर करे"

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वायु प्रदूषण का मूल कारण आधुनिक जीवनशैली

वायु प्रदूषण का मूल कारण आधुनिक जीवनशैली

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- हृदयनारायण दीक्षित वायु से आयु है। स्वच्छ वायु आयुवर्धक है। प्रदूषित वायु प्राणलेवा है। ये सब जानते हुए भी वायु प्रदूषण बढ़ाने वाले तमाम अपकृत्य जारी हैं। ‘द लेसैंट प्लैनेटरी हेल्थ जर्नल के अध्ययन में चौकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। वायु प्रदूषण के कारण 2000 से 2019 तक प्रतिवर्ष 10 लाख लोगों की जान गई है। सांस सम्बंधी बीमारियां बढ़ी हैं और बीमारियों के कारण लाखों लोगों की मौत हुई है। ऑस्ट्रेलिया की एक यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने दुनिया के लगभग 13000 नगरों में प्रदूषण का विश्लेषण किया है। इस अध्ययन की रिपोर्ट के अनुसार एशिया में मृत्युदर का आंकड़ा काफी चिन्ताजनक है। बताया गया है कि प्रदूषण के कारण मौतों के आंकड़ों में चीन पहले स्थान पर है। भारत में भी वायु प्रदूषण की स्थिति भयावह है। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में हर साल वायु प्रदूषण के कारण धूल भरा कोहरा दिखाई पड़ता है। वायु प्रदूषण का मूल क...
अब कौन पहुंचाएगा सरकारी संपत्ति को नुकसान?

अब कौन पहुंचाएगा सरकारी संपत्ति को नुकसान?

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- आर.के. सिन्हा जिस बात का देश से प्रेम करने वाले हरेक नागरिक को दशकों से इंतजार था, वह अब हो गई है। अब किसी आंदोलन के दौरान कथित आंदोलनकारी सरकारी या सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान नहीं पहुंचा सकेंगे। यदि नुकसान पहुंचाया तो उन्हें सख्त सजा होगी। हमारे यहां सरकार से अपनी मांगों के समर्थन में आंदोलन करने वाले आमतौर पर सरकारी बसों, इमारतों, रेलों और दूसरी सार्वजनिक संपतियों को बेशर्मी से तोड़ते रहे हैं। कहना न होगा आजाद भारत में इस कारण से सत्तर सालों में अरबों-खरबों रुपये का नुकसान हुआ। जिन्होंने नुकसान किया उन्हें किसी ने कुछ नहीं कहा। वे दशकों से मौज करते रहे। उनमें से कई बड़े नेता भी बन गए। पर अब आगे किसी ने सरकारी संपत्तियों को हानि पहुंचाई तो लेने के देने पड़ जाएंगे। इसलिए ही केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की ओर से पिछले मंगलवार को संसद में पेश भारतीय न्याय संहिता विधेयक, 2023 के अपडेटेड व...
विकास न बने विनाश का कारण

विकास न बने विनाश का कारण

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- डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा भले ही जलवायु परिवर्तन को लेकर दुनिया के देश लाख चिंता जता रहे हों। शिखर सम्मेलनों में नित नए प्रस्ताव पारित किए जा रहे हों। पर वास्तविकता तो यही है कि दुनिया के देश पिछले आठ साल से लगातार सबसे ज्यादा गर्मी से जूझते आ रहे हैं। पिछले सालों में ग्लेशियरों के पिघलने की रफ्तार जिस तरह से बढ़ रही है। जिस तरह से जंगलों में दावानल हो रहा है। जिस तरह से समुद्री तूफान, चक्रवात या सुनामियां आए दिन अपना असर दिखा रही हैं। वास्तव में यह अत्यधिक चिंता का विषय बनता जा रहा है। इस क्षेत्र में काम कर रहे विशेषज्ञों का तो यहां तक मानना है कि ग्लेशियर किनारे बसे शहरों के अस्तित्व का संकट भी मुंह बाये खड़ा दिखाई देने लगा है। हालांकि समय पर सूचनाओं और डिजास्टर मैनेजमेंट व्यवस्था में सुधार का यह तो असर साफ दिखने लगा है कि प्राकृतिक आपदाओं के चलते जनहानि तो न्यूनतम हो रही है पर जिस तर...