Friday, November 22"खबर जो असर करे"

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जाति पर सियासी संग्राम

जाति पर सियासी संग्राम

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- प्रो. मनीषा शर्मा भाजपा सांसद अनुराग ठाकुर के लोकसभा में राहुल गांधी की जाति पूछे जाने के बाद से देश में जाति को लेकर माहौल गर्माया हुआ है। इससे पूर्व केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने जाति आधारित जनगणना नहीं करने को लेकर लोकसभा में जो बयान दिया उसके बाद से इस विषय पर लगातार बहस जारी है। जातिगत जनगणना कराए जाने को लेकर पक्ष और विपक्ष दोनों अपने-अपने तर्क दे रहा है। विपक्ष लगातार जातिगत जनगणना कराए जाने के समर्थन में अनेक तर्क दे रहा है। देश में जातीयता और फूट डालो राज करो की नीति का जो जहरीला बीज अंग्रेज डाल गए थे कांग्रेस और उसकी सहयोगी पार्टियों के नेताओं ने उसे खाद-पानी देकर निरन्तर सींचा और अपनी जरूरतों के अनुसार इसका इस्तेमाल किया। आज यह जहर हमारी संपूर्ण फिजाओं में घुल चुका है । देश में जनगणना की शुरुआत 1881 में औपनिवेशिक शासन के दौरान हुई। जाति के आधार पर आबादी क...
जाति के इर्द-गिर्द घूमती भारतीय राजनीति

जाति के इर्द-गिर्द घूमती भारतीय राजनीति

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- अरुण कुमार दीक्षित भारतीय राजनीति में जाति की बड़ी अहमियत है। हालांकि अधिकांश महापुरुष जाति विहीन भारत के निर्माण के पक्ष में थे। वे जातिवाद को बेहद खतरनाक मानते थे और कई मौकों पर यह बात उन्होंने कही भी। जाति तोड़ो अभियानों में वे निरंतर जुटे रहे लेकिन जाति की जड़ों को हिला नहीं पाए। इसकी वजह यह रही कि उस समय जातियों का उभार तत्कालीन राजनीति कर रही थी। धीरे-धीरे यह जातीय उभार राजनीतिक गुटों, गिरोहों और वर्गों की शक्ल लेता गया और गांधी, लोहिया तथा अंबेडकर के सपने धराशायी हो गए। आज भारत की राजनीति में जाति सम्मेलनों की बहुलता बढ़ी है। वर्गों का आधिपत्य बढ़ा है । सभी जातियों-वर्गों के अपने नेता हैं । वह जातीय सम्मेलन करते हैं। सत्तारूढ़ दलों के नेता भी अपने स्तर पर जातीय उभार को मजबूती देते हैं। राजनीति दलों के बॉयलॉज की बात करें तो उसमें एक बात समान होती है कि राजनीतिक दल सर्व समाज के लिए ...