Friday, November 22"खबर जो असर करे"

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सबसे बड़ा सवाल… फिर क्यों चाहिए बाहरी मुसलमानों को भारत की नागरिकता?

सबसे बड़ा सवाल… फिर क्यों चाहिए बाहरी मुसलमानों को भारत की नागरिकता?

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- डॉ. मयंक चतुर्वेदी केंद्र की मोदी सरकार एक अच्छी मंशा से नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) लेकर आई है। किंतु देश विरोधी शक्तियां इसे लेकर जनमानस के बीच जिस तरह का नैरेटिव सेट करने के प्रयास में लगी हैं, वह बहुत ही खतरनाक है। 2019 की तरह ही इस विषय पर फिर से देश में अराजकता पैदा करने का प्रयास किया जा रहा है। भारत के नागरिक मुसलमानों को भड़काने की कोशिशें शुरू हो गई हैं, यह कहकर कि उनके अधिकारों का हनन है। मुसलमानों में डर का माहौल यहां तक बनाया जा रहा है कि ''यह देश के 17 करोड़ मुसलमानों को संदेश है कि वे अब कागज निकालें'' ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिममीन (एआईएमआईएम) अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी जैसे नेता कह रहे है, "आप क्रोनोलॉजी समझिए, पहले चुनाव का मौसम आएगा फिर सीएए के नियम आएंगे।...सीएए विभाजनकारी है और गोडसे की सोच पर आधारित है, जो मुसलमानों को दोयम दर्जे का नागरिक बनाना चाहता है।....
सबसे बड़ा सवाल, एआई क्या बला… जिससे गैरी कास्परोव खा चुके हैं मात

सबसे बड़ा सवाल, एआई क्या बला… जिससे गैरी कास्परोव खा चुके हैं मात

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- मीनाक्षी दीक्षित आजकल जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में एआई का उपयोग किये जाने की चर्चा हो रही है। इसलिए स्वाभाविक रूप से हम सभी के मन में प्रश्न उठता है कि ये एआई या आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस या कृत्रिम बुद्धि वास्तव में है क्या और बुद्धि कृत्रिम कैसे हो सकती है? हिंदी के कृत्रिम शब्द का अर्थ है बनावटी यानी जो मूल नहीं है नकल है। यही अर्थ आंग्ल भाषा के शब्द आर्टिफिशियल का भी है। अतः स्पष्ट है कि कृत्रिम रूप से विकसित की गई बौद्धिक क्षमता ही कृत्रिम बुद्धि अथवा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस है, जिसे संक्षेप में एआई कहते हैं। एआई के माध्यम से कंप्यूटर सिस्टम या रोबोटिक सिस्टम तैयार किया जाता है, जिसे उन्हीं तर्कों के आधार पर चलाने का प्रयास किया जाता है जिनके आधार पर मानव मस्तिष्क काम करता है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का आरम्भ 1950 के दशक में हुआ था। इसका जनक जॉन मैकार्थी को माना जाता है। उनके अनुसार एआ...
राष्ट्रीय बालिका दिवसः सुरक्षा सबसे बड़ा सवाल

राष्ट्रीय बालिका दिवसः सुरक्षा सबसे बड़ा सवाल

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- योगेश कुमार गोयल देश की बालिकाओं को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करने और समाज में बालिकाओं के साथ होने वाले भेदभाव के बारे में देशवासियों को आगाह करने के उद्देश्य से प्रतिवर्ष 24 जनवरी को ‘राष्ट्रीय बालिका दिवस’ मनाया जाता है। परिवारों में बेटा-बेटी के बीच भेदभाव और बेटियों के साथ परिवार में प्रायः होने वाले अत्याचारों के खिलाफ समाज को जागरूक करने के लिए देश की आजादी के बाद से ही प्रयास होते रहे हैं। हालांकि एक समय ऐसा था, जब अधिसंख्य परिवारों में बेटी को परिवार पर बोझ समझा जाता था और इसीलिए बहुत सी जगहों पर तो बेटियों को जन्म लेने से पहले ही कोख में ही मार दिया जाता था। यही कारण था कि बहुत लंबे अरसे तक लिंगानुपात बुरी तरह गड़बड़ाया रहा। यदि बेटी का जन्म हो भी जाता था तो उसका बाल विवाह कराकर उसकी जिम्मेदारी से मुक्ति पाने की सोच समाज में समायी थी। आजादी के बाद से बेटियों के प्रति समाज क...