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श्रेष्ठ राजव्यवस्था और आनंददायी समाज

श्रेष्ठ राजव्यवस्था और आनंददायी समाज

अवर्गीकृत
- हृदयनारायण दीक्षित दुनिया के सभी समाज सुख और आनंद के इच्छुक रहते हैं। सुख और दुख बारी बारी से आते जाते हैं। मनुष्य समाज का अंग है। लेकिन अनेक अवसरों पर मनुष्य और समाज के बीच अंतर्विरोध भी दिखाई पड़ते हैं। मनुष्य प्रकृति का भी अंग है। लेकिन मनुष्य और प्रकृति के बीच अंतर्विरोध भी होते हैं। यह मनुष्य को दुखी करते हैं। समाज शांतिपूर्ण ढंग से रहने के लिए राजव्यवस्था विकसित करते हैं। महाभारत में राजा को काल का कारण बताया गया है। राजव्यवस्था समाज को सुखी बनाने के प्रयत्न करती है। राजा या राजव्यवस्था महत्वपूर्ण है। राजव्यवस्थाएं आनंदमगन समाज के लिए मार्ग प्रशस्त करती हैं। मनुष्य की अनेक मूलभूत आवश्यकताएं होती हैं। अनेक अभिलाषाएं होती हैं। ऋग्वेद (9.113.10 व 11) में प्रार्थना है, 'जहां सारी कामनाएं पूरी होती हैं। जहां सुखदाई तृप्तिदायक अन्न हों। हे देव हमें वहां स्थायित्व दें।' अन्न और कामनाओं क...