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बाबा साहब आंबेडकर: ‘मूक’ समाज को आवाज देकर बने ‘नायक’

बाबा साहब आंबेडकर: ‘मूक’ समाज को आवाज देकर बने ‘नायक’

देश, बिज़नेस
- प्रो.संजय द्विवेदी “अगर कोई इंसान, हिंदुस्तान के क़ुदरती तत्वों और मानव समाज को एक दर्शक के नज़रिए से फ़िल्म की तरह देखता है, तो ये मुल्क नाइंसाफ़ी की पनाहगाह के सिवा कुछ नहीं दिखेगा।” बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर ने आज से 103 वर्ष पूर्व 31 जनवरी 1920 को अपने अख़बार 'मूकनायक' के पहले संस्करण के लिए जो लेख लिखा था, यह उसका पहला वाक्य है। अपनी पुस्तक ‘पत्रकारिता के युग निर्माता : भीमराव आंबेडकर’ में लेखक सूर्यनारायण रणसुभे ने इसलिए कहा भी है कि “जाने-अनजाने बाबा साहेब ने इसी दिन से दीन-दलित, शोषित और हजारों वर्षों से उपेक्षित मूक जनता के नायकत्व को स्वीकार किया था।” बाबा साहेब ने 'मूकनायक' पत्र की शुरुआत की थी। इस समाचार पत्र के नाम में ही आंबेडकर का व्यक्तित्व छिपा हुआ है। वे 'मूक' समाज को आवाज देकर ही उनके 'नायक' बने। बाबा साहेब ने कई मीडिया प्रकाशनों की शुरुआत की। उनका संपादन किया। स...