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बैसाखी पर विशेषः खालसा सिरजना दिवस में तब्दील हुआ बैसाखी पर्व

बैसाखी पर विशेषः खालसा सिरजना दिवस में तब्दील हुआ बैसाखी पर्व

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- रावेल पुष्प सिखों के पहले गुरु नानक से लेकर पांचवें गुरु अर्जुन देव तक की पूरी गुरु परंपरा भक्ति भाव और अध्यात्म की रही है। वहीं, पांचवें गुरु अर्जुन देव जी की शहादत के बाद छठे गुरु हरगोविंद से इसमें कुछ तब्दीली आनी शुरू हो गई थी। गुरु नानक देव जी ने तो संपूर्ण आध्यात्मिक निर्मल पंथ की नींव रखी थी और कालांतर में ऐतिहासिक घटनाओं के कारण गुरु गोविंद सिंह ने खालसा पंथ की स्थापना की। वैसे सत्य और धर्म के मार्ग पर चलना कितना कठिन है गुरु नानक देव जी ने तभी इस ओर इशारा भी कर दिया था और कहा था कि इस मार्ग पर चलने वालों को अपना शीश अपनी हथेली पर रखना होता है- इत मारग पैर धरीजै,सिर दीजै काणि न कीजे यानि सत्य और न्याय के मार्ग पर सिर देने में कहीं भी किंतु परंतु नहीं होनी चाहिए। इसी सिद्धांत को सीधे-सीधे परखने के लिए सिखों के दसवें गुरु गोविंद सिंह ने परीक्षा ली। इस दौरान गुरु गोविंद सिंह के ...
बैसाखी पर विशेष: नाचो-गाओ, खुशियां मनाओ कि आई बैसाखी

बैसाखी पर विशेष: नाचो-गाओ, खुशियां मनाओ कि आई बैसाखी

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- योगेश कुमार गोयल कृषि प्रधान देश भारत में बैसाखी पर्व का संबंध फसलों के पकने के बाद उसकी कटाई से जोड़कर देखा जाता रहा है। इसे विशेष तौर पर पंजाब का प्रमुख त्योहार माना जाता है। वैसे देशभर में बैसाखी को बड़ी धूमधाम एवं हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। लेकिन सिख समुदाय बैसाखी से ही नए साल की शुरूआत मानते हैं। इस दिन एक-दूसरे को बधाइयां दी जाती हैं। पंजाब में किसान अपने खेतों को फसलों से लहलहाते देखता है तो इस दिन खुशी से झूम उठता है। खुशी के इसी आलम में शुरू होता है गिद्दा और भांगड़ा का मनोहारी दौर। पंजाब में ढोल-नगाड़ों की धुन पर पारम्परिक पोशाक में युवक-युवतियां नाचते-गाते और जश्न मनाते हैं। सभी गुरुद्वारों को फूलों तथा रंग-बिरंगी रोशनियों से सजाया जाता है। उत्तर भारत और विशेषतः पंजाब तथा हरियाणा में गिद्दा और भांगड़ा की धूम के साथ मनाए जाने वाले बैसाखी पर्व के प्रति भले ही काफी जोश देखने क...