नेताजी जयंती: छूटे अंग्रेजों के छक्के, आजाद हो गया भारत
- सुरेन्द्र किशोरी
23 जनवरी, 1897 को ओडिशा के कटक में वकील जानकीनाथ बोस की पत्नी प्रभावती की गोद में नौवीं संतान के रूप में जब बालक की किलकारी गूंजी तो किसी को कहां पता था कि वह एक दिन न केवल मां भारती को स्वतंत्र कराने वाले वीर सपूतों के अग्रणी पंक्ति में शामिल होगा और नेताजी के रूप में मशहूर हो जाएगा। लोगों के खून में जोश भरने के लिए उनका नारा- ' तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा' भारत का राष्ट्रीय नारा बन जाएगा। बचपन में ही बोस ने यह जान लिया था कि जब तक सभी भारतवासी एकजुट होकर अंग्रेजों का विरोध नहीं करेंगे, तब तक हमारे देश को उनकी गुलामी से मुक्ति नहीं मिल सकेगी। उनके मन में अंग्रेजों के प्रति तीव्र घृणा और देशवासियों के प्रति बड़ा प्रेम था। किशोरावस्था में ही सुभाषचंद्र बोस की मनोवृत्ति का झुकाव सांसारिक धन, वैभव, पदवी के बजाय जीवन की वास्तविकता को जानने और अपनी शक्ति तथा सामर...