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विकास न बने विनाश का कारण

विकास न बने विनाश का कारण

अवर्गीकृत
- डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा भले ही जलवायु परिवर्तन को लेकर दुनिया के देश लाख चिंता जता रहे हों। शिखर सम्मेलनों में नित नए प्रस्ताव पारित किए जा रहे हों। पर वास्तविकता तो यही है कि दुनिया के देश पिछले आठ साल से लगातार सबसे ज्यादा गर्मी से जूझते आ रहे हैं। पिछले सालों में ग्लेशियरों के पिघलने की रफ्तार जिस तरह से बढ़ रही है। जिस तरह से जंगलों में दावानल हो रहा है। जिस तरह से समुद्री तूफान, चक्रवात या सुनामियां आए दिन अपना असर दिखा रही हैं। वास्तव में यह अत्यधिक चिंता का विषय बनता जा रहा है। इस क्षेत्र में काम कर रहे विशेषज्ञों का तो यहां तक मानना है कि ग्लेशियर किनारे बसे शहरों के अस्तित्व का संकट भी मुंह बाये खड़ा दिखाई देने लगा है। हालांकि समय पर सूचनाओं और डिजास्टर मैनेजमेंट व्यवस्था में सुधार का यह तो असर साफ दिखने लगा है कि प्राकृतिक आपदाओं के चलते जनहानि तो न्यूनतम हो रही है पर जिस तर...