षड्यंत्रों को समझिए, तैयारी कीजिये
- संजय तिवारी
झारखंड में अंकिता के साथ जो भी हुआ ,बहुत दुखद है। इससे भी ज्यादा दुखद अतिशय सहिष्णुता है। अर्थ और बाजार आधारित समाज मे ये घटनाएं आश्चर्य नहीं लेकिन विचलित करने वाली हैं। आखिर हम कितने और सहिष्णु बनें? क्या यह अतिशय सहिष्णुता हमें रहने देगी? कोई यह तो बताए कि मनुष्यता कहां है? और कितने सहिष्णु होना चाहते हैं? यह होता ही है। आर्थिक समृद्धि के बाद सामाजिक चिंता और सभ्यता में सहिष्णुता का प्रभाव अपने कार्य करने लगते हैं। समृद्ध सभ्यताओं को किसी वाह्य सभ्यता या घुसपैठ से बहुत चिंता नहीं होती । उनमें सभी के प्रति एक सहिष्णु भाव ही रहता है। मनुष्य और मनुष्य में समृद्ध सभ्यता भेद नहीं करती। इसीलिए ऐसी सभ्यताएं सर्वदा षड्यंत्रों से निश्चिन्त रहती हैं लेकिन घुसपैठिये और षड्यंत्रकारी उन्हें निरंतर हानि पहुचाते रहते हैं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण स्वयं भारत है।
प्राचीन भारत की समृद्धि और सं...