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भारतीय संस्कृति और मर्यादा का अंतस

भारतीय संस्कृति और मर्यादा का अंतस

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- हृदयनारायण दीक्षित प्रत्यक्ष पर्यावरण प्रकृति की संरचना है। भारत के प्राचीनकाल में भी प्राकृतिक पर्यावरण की उपस्थिति मनमोहक थी। प्रकृति को देखते, उसके विषय में सोचते और सुनते मनुष्य ने भी सृजन कर्म में जाने अनजाने भागीदारी की। आज का भारत हमारे पूर्वजों, अग्रजों के सचेत कर्मों का परिणाम है। मनुष्य द्वारा किए गए सुंदर सत्कर्म संस्कृति हैं। प्रकृति स्वाभाविक है। लेकिन संस्कृति मनुष्य की रचना है। संक्षेप में विश्व के प्रत्येक जीव की लोकमंगल कामना और उसके लिए किए गए कर्म संस्कृति है। संस्कृति किसी एक व्यक्ति या समूह के कर्मफल का परिणाम नहीं होती। भारतीय संस्कृति के विकास में विज्ञान और दर्शन की महत्ता है। कोई अंधविश्वास नहीं। रूप, रस, गंध, शब्द और स्पर्श प्रत्यक्ष इंद्रिय बोध के हिस्से हैं। पूर्वजों की 'मंगल भवन अमंगल हारी'' कर्मठ चेतना से संस्कृति का विकास हुआ। सारांशतः भारत के बुद्धि ...
भारत नाम में है संस्कृति की झलक

भारत नाम में है संस्कृति की झलक

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- सुरेश हिन्दुस्थानी वर्तमान में भारत और इंडिया नाम की चर्चा राजनीतिक क्षेत्र में भी सुनाई देने लगी है। हम यह भली भांति जानते हैं कि भारत को पुरातन काल से कई नामों से संबोधित किया गया। जिसमें जम्बूद्वीप, भारतवर्ष, आर्यावर्त, हिंदुस्तान और इंडिया के नाम का उल्लेख मिलता है। लेकिन यह भी एक बड़ा सच है कि इंडिया शब्द गुलामी की याद दिलाता है, क्योंकि यह शब्द अंग्रेजों ने दिया। अंग्रेजों ने भारत की सांस्कृतिक विरासत को मिटाने का भरसक प्रयास किया। सांस्कृतिक रूप से एकता का भाव स्थापित करने वाले समाज के बीच दरार डालने की राजनीति की गई। जिससे देश भी कमजोर होता चला गया और समाज कई वर्गों में विभाजित हो गया। आज भी सामाजिक भेदभाव की इस खाई को और चौड़ा करने का लगातार प्रयास किया जा रहा है, जिससे भारतीय समाज को सावधान होने की आवश्यकता है, नहीं तो वही अंग्रेजों की इंडिया वाली मानसिकता विकराल रूप धारण कर हमा...