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अभिनय का रंगमंच नहीं संसद

अभिनय का रंगमंच नहीं संसद

अवर्गीकृत
- गिरीश्वर मिश्र संसद लोकतंत्र का मंदिर है जहां देश की जनता के कल्याण से जुड़े विषयों पर गहन चर्चा की जाती है और जरूरी फैसले लिए जाते हैं। वहीं भारत का संविधान अंगीकृत किया गया था और अभी भी वहाँ कानून बनाए जाते हैं जिनका राष्ट्रीय जीवन और अंतरराष्ट्रीय सम्बन्ध के लिए बड़ा महत्व होता है। इस तरह संसद एक बेहद गंभीर परिवेश में जिम्मेदारी से काम करने का परिसर होता है। देश की जनता अनुभव कर रही है कि विगत वर्षों में संसद में माननीय जन प्रतिनिधियों का आचरण शिष्टाचार और संसदीय कार्यकलाप की मर्यादाओं को सुरक्षित रखने में लगातार गिरावट दर्ज कर रहा है। विपक्ष के लिए संसद आंदोलन का रंगमंच होता जा रहा है। विरोध जताने का विपक्ष का अधिकार है और वह उनका कर्तव्य भी है। इसका अतिरेक और उद्दंडता जैसा रुख अख्तियार करना किसी भी तरह शोभा नहीं देता। पर इससे संगीन बात यह है कि संसद के सदनों की कार्यवाही को रोकना...