आचार्य शंकर: राष्ट्रीय एकता एवं सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के प्रवर्तक
- वीरेन्द्र सिंह परिहार
जगतगुरु श्री शंकराचार्य का जन्म उस समय हुआ था, जब बौद्ध धर्म पतनात्मक स्थिति की ओर जा रहा था, धर्म के नाम पर अनाचार फैल रहा था। विडम्बना यह कि अनेक वर्षों तक राजाश्रय प्राप्त होने के चलते बौद्धों को सत्ता का स्वाद लग चुका था। विदेशियों ने ढलती हुई बौद्ध सत्ता का उन्नायक बनकर भारत में प्रवेश किया और बौद्धों ने बिना सोचे-समझे उनका सहयोग किया। लेकिन प्रखर राष्ट्रीयता का पोषक हिन्दू समाज इसे सहन न कर सका, जिसके चलते कुमारिल भट्ट द्वारा प्रज्ज्वलित चिंगारी शंकराचार्य के रूप में दावानल बनकर प्रगट हुई- जिसने सभी झाड़-झंखाड़ को भस्मीभूत कर दिया, जिसके चलते देश एवं धर्म की रक्षा हुई।
पुत्र की प्राप्ति पर भगवान शंकर का वरदान मानकर उनके पिता शिवगुरु ने उनका नाम शंकर रखा। शंकर की असाधारण बुद्धि को देखते हुए शिवगुरु ने तीन वर्ष की उम्र में ही उनका अक्षराभ्यास आरंभ करा दिया। पांच...