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वैश्वीकरण और 21वीं सदी का भारत

वैश्वीकरण और 21वीं सदी का भारत

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- धैर्य नारायण झा पुरातनकाल से भारत का समस्त विश्व के लिए कुटुंब भाव के सामने वैश्वीकरण कोई भिन्न विषय नहीं है। तथापि भारत में वसुधैव कुटुंबकम की धारणा सर्वदा आदरणीय रही है। वैश्वीकरण के तमाम फायदों के बावजूद इसके अपनाने को लेकर प्रश्नचिह्न लगते आए हैं। अंतर यह कि वसुधैव कुटुंब में परिवार व विनय का भाव है, लेकिन वैश्वीकरण व्यापार और विनिमय की परिधि में घिर जाता है। फिर प्रश्न उठता है कि हम किस सीमा तक वैश्वीकरण से आच्छादित रहें और वैश्वीकरण के प्रवाह में बहें। इस संदर्भ में संयुक्त अरब अमीरात का उदाहरण प्रासंगिक है। यहां लगभग 200 देशों के लोग रहते हैं। वे यहां विश्वभर में आई नई तकनीक, वस्तुओं और सेवाओं का इस्तेमाल करते हैं, इसके बाद भी वे अपनी मौलिकता, पहनावा और भाषा इत्यादि को अक्षुण्ण बनाकर रखते हैं, यह अनुकरणीय हो सकता है। वैश्वीकरण का पर्याय भौगोलिक सीमाओं से बिना छेड़छाड़ किए अन्य...
वैश्विक परिप्रेक्ष्य में हिंदी

वैश्विक परिप्रेक्ष्य में हिंदी

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- गिरीश्वर मिश्र अनुमान किया जा रहा है कि इक्कीसवीं सदी में विश्व पटल पर भारत और चीन देशों की मुख्य भूमिका हो सकती है। वे कई परिवर्तनों की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट करते हैं। संचार माध्यमों के तीव्र विस्तार के साथ कई अर्थों में ‘विश्व-व्यवस्था’ और ‘विश्व-गांव’ जैसे जुमले वास्तविकता का आकार ले रहे हैं। व्यापार–वाणिज्य को बढावा देने के लिए नए किस्म की जरूरतें पैदा हो रही हैं। अपने हितों को देखते हुए अनेक बहुराष्ट्रीय कंपिनियां भारत के साथ व्यापार बढ़ा रही हैं। चूंकि उपभोक्ता या ग्राहक हिंदी क्षेत्र में अधिक हैं अतः अर्थ तंत्र की संघटना में हिंदी की स्थिति अपेक्षाकृत मजबूत हुई है। इस बीच सूचना-प्रौद्योगिकी का भी अप्रत्याशित विस्तार हुआ है जिसने भाषा-व्यवहार , कार्य के परिवेश और कार्य पद्धति में एक अनिवार्य बदलाव आ रहा है। हिंदी भाषा की क्षमता को कई तरह से आंका जाता है। उसके बोलने वालों का बढ़ता...

सोशल मीडिया का प्रभाव और दुष्प्रभाव के यक्ष प्रश्न

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- डॉ. अशोक कुमार भार्गव सोशल मीडिया 21वीं सदी की नई ऊर्जा से भरपूर नया चेहरा है। इसने विश्वव्यापी चिंतन के आयामों में परिवर्तन किया है। समाज में बड़े बदलाव की नींव रखी है। निसंदेह कोई भी परिवर्तन एकपक्षीय नहीं होता। वह हमेशा अपनी तमाम खूबियों और अच्छाइयों के बावजूद अनेक यक्ष प्रश्न भी साथ लेकर आता है। सोशल मीडिया इसका अपवाद नहीं है। समाज की उन्नति, प्रगति और विकास में उल्लेखनीय भूमिका निभाने के बावजूद सोशल मीडिया पूर्णत: निरापद नहीं है। यद्यपि आज सोशल मीडिया का उपयोग समाज के सभी आयु वर्ग के लोग कर रहे हैं। घर बैठे ही आभासी दुनिया में सभी समूह आपस में संवाद कर अपने विचारों को एक -दूसरे से साझा कर नई बौद्धिक दुनिया को सृजित कर रहे हैं। प्रसिद्ध संचार वैज्ञानिक मैगीनसन ने कहा था कि संचार समानुभूति की प्रक्रिया है। यह समाज में रहने वाले सदस्यों को आपस में जोड़ती है। संचार की यह विकास यात्रा ...