Thursday, November 21"खबर जो असर करे"

एएमयू में गद्दार हजार, कार्रवाई की दरकार

– योगेश कुमार सोनी

एक बार फिर अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) सुर्खियों में हैं। पहले तो देश में होने वाले विवादों पर ही यहां से बयान आते थे लेकिन अब विदेश में हो रही गतिविधियों को लेकर यहां छात्र प्रर्दशन करने लगे हैं। बीते कुछ दिनों से इजरायल और हमास के बीच युद्ध जारी है। 7 अक्टूबर को हमास ने चंद मिनट में इजरायल पर हजारों रॉकेट दागे थे। उसके बाद एक्शन में आए इजरायल ने जवाब दिया। इस बीच अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के सैकड़ों छात्रों ने फिलिस्तीन के समर्थन में कैंपस में प्रदर्शन किया और इस ही शुक्रवार को हमास के लिए नमाज भी पढ़ी और वी स्टैंड फिलिस्तीन के साथ धार्मिक नारेबाजी भी की। छात्रों ने धार्मिक नारेबाजी करते हुए अल्लाह हूं अकबर के नारे भी लगाए।

इस घटनाक्रम का यदि आकलन करें तो इसे मात्र किसी विश्वविद्यालय का किसी के प्रति समर्थन या विरोध नहीं माना जा सकता। प्रश्न यह है कि क्या इन छात्रों के पीछे कोई बड़ी राजनीतिक सत्ता है या किसी आतंकी संगठन? चूंकि देश में एकमात्र यही ऐसी यूनिवर्सिटी है जो देश-विदेश में हो रहे बड़े मामलों में अपनी उपस्थिति दर्ज कराती है। पूरे देश में इस मामले को लेकर कहीं भी किसी भी यूनिवर्सिटी या छात्र समूह ने कोई भी बयान नहीं दिया।

इससे पहले भी कई बार यहां से विवादित बयान आ चुके हैं। इस प्रकरण में यह बात समझ नहीं आती कि आखिर वहां पढ़ रहे विद्यार्थियों का माइंड वॉश करने के पीछे क्या व किस किसकी मंशा है। यदि आंतकी व अन्य किसी बड़ी पार्टी इस खेल के पीछे हैं, तो निश्चित तौर पर देश को एक बड़ा खतरा है। हम बाहरी लोगों से लड़ने में तो पूर्णतः सक्षम हैं लेकिन आस्तीन में पल रहे सांपों का इलाज मुश्किल है। बीते दिनों किसी अन्य मामले पर मेरे साथ एक टीवी चैनल डिबेट में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी छात्रसंघ के पूर्व उपाध्यक्ष सज्जाद राथर ने लाइव यह कहा कि कश्मीर हिंदुस्तान का भाग नही हैं।

इसके अलावा भी कई देश विरोधी बातें कहते हुए उसने कांग्रेस व भारतीय जनता पार्टी पर कई आरोप लगाए । साथ में यह भी कहा इन सबके के लिए पार्टियां ही जिम्मेदार हैं जो यहां पढ़ रहे छात्रों में मतभेद समझती हैं लेकिन जब उससे पूछा गया कि क्या मतभेद हैं तो वह कोई उत्तर नहीं दे पाया। चूंकि वह सिर्फ तथ्यहीन बातों को लेकर ही आग उगल रहा था। उसके इन वाकयों से स्पष्ट हो चुका था कि जो इतने बड़े प्लेटफॉर्म पर हमारे देश के लिए आग उगल सकता है तो उसके मन में और कितना जहर होगा।
यह तो केवल एक ही छात्र की कहानी है। बाकी ऐसे लोगों की तो पूरी जमात ही है। सबसे ज्यादा मुसलमान हमारे देश में हैं। हम यह कहते हैं कि हमारा देश धर्मनिरपेक्ष है। बावजूद इसके, ऐसी घटनाएं मन को कचोटती हैं। यदि एएमयू व जेएनयू जैसी संस्थाओं पर निगरानी नहीं रखी गई तो कहीं यह संस्थाएं आतंकियों का अड्डा व फैक्टरी न बन जाएं। यहां हमारे शासन-प्रशासन पर सवालिया निशान उठता है कि लगातार हो रही इस तरह कि घटनाओं पर हमारा सिस्टम गंभीरता क्यों नहीं दिखा रहा। क्या यह चुनौती है या फिर विफलता ?

चुनौती है तो भी स्वीकार करनी पड़ेगी व विफलता है तो भी उसमें सुधार करना होगा। क्योंकि दोनों ही स्थिति में बड़ा नुकसान देश के वर्तमान व भविष्य को है। समय रहते इस जहर को फैलने से रोकना होगा, क्योंकि यह इन संस्थाओं मे पढ़ रहे बच्चों के माता-पिता के लिए एक चिंता का विषय हो सकता है। कोई भी अभिभावक नहीं चाहता कि उसके बच्चे इस तरह की राह पर चलें। अभिभावकों को भी बच्चों के व्यवहार व गतिविधि पर निगाह रखनी चाहिए। वैसे तो यहां पढ़ रहे अधिकतर बच्चों के अभिभावक उनसे दूर ही रहते हैं, फिर भी किसी भी रूप में सही, निगरनी जरूरी है।
इसके अलावा ऐसी यूनिवर्सिटी में प्रशासन की वो यूनिट तैनात करनी चाहिए जिससे वहां विद्यार्थियों में कानून के प्रति डर व सम्मान का माहौल का माहौल बना रहे। यूनिवर्सिटी में तमाम ऐसे उपकरणों का भी उपयोग करना चाहिए, जिससे किसी भी संदेह की स्थिति में तुरंत कार्रवाई की जा सके। कॉलेज के समय से ही विद्यार्थियों के छात्रसंघ के चुनाव होते हैं लेकिन उनके नेताओं के किसी देश व दुनिया में हो रही बड़ी घटनाओं को लेकर विवादास्पद बयान देने पर कड़ी कार्रवाई की जरूरत है।

बीते कुछ समय से देखा जा रहा है कि एएमयू के छात्रों ने शिक्षकों व अन्य स्टाफ की इज्जत करनी बंद कर दी है। सरकारी आदेशों को अपने स्वयं के बनाए फरमानों में बदल दिया है, जिससे वहां की स्थिति अच्छी नहीं बताई जा रही। बीते सोमवार को उत्तर प्रदेश भाजपा के नेता संगीत सोम ने भी एएमयू को निशाना साधा है। उन्होंने कहा कि एएमयू जैसे संस्थानों पर ताला डाल देना चाहिए। इन संस्थाओं में शिक्षा नहीं आतंकवाद का पाठ पढ़ाया जा रहा है। हमास के लिए एएमयू की नारेबाजी दुर्भाग्यपूर्ण है।

ये लोग हिंदुस्तान में नया हमास खड़ा करना चाहते हैं। फंडिंग के लिए 50 से लेकर 100 रुपये की रसीद काटकर चंदा इकट्ठा किया जा रहा है। यानी देश खिलाफ इनकी फंडिंग चल रही है। इससे बचने के लिए एक विशेष समुदाय के ठेला और खोमचा लगाने वालों से सामान खरीदने का बहिष्कार करना होगा। हालांकि सामाजिक तौर इस बात का भी समर्थन नहीं किया जा सकता। मगर कुछ लोगों की वजह से पूरी कौम को गलत नहीं कहा जा सकता। बहरहाल,पक्ष-विपक्ष को तो किसी भी मुद्दे पर राजनीति करनी होती है लेकिन विद्यार्थियों को अपनी शिक्षा पर ध्यान देना होगा। क्योंकि विद्या अर्जन का समय सबसे महत्वपूर्ण समय होता है।

देश की तस्वीर बदलनी है तो एक साथ चलना होगा और इस बात को एएमयू को समझना होगा। यदि वह इस बात को प्यार से समझते हैं तो ठीक, अन्यथा इस मामले पर बड़े एक्शन ऑफ प्लान की जरूरत है। यदि विद्यार्थियों के मन में अभी देश विरोधी भावना बस गई तो देश में विरोधाभास बढ़ जाएगा। यह देश की एकता के लिए घातक होगा है। युवाओं में देश को एक साथ लेकर चलने की भावना उत्पन्न होगी तभी बात बनेगी। इसके लिए सबको एक-दूसरे को समझने की जरूरत है।

(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)