– रमेश ठाकुर
जिदंगी खेल है। खेल ही जिंदगी। बेशक दोनों के मायने अलग हैं। मगर वास्तविकता आपस में कहीं न कहीं मेल खाती है। ‘खेलकूद’ के महत्व को दर्शाता है राष्ट्रीय खेल दिवस। शायद ये बात सभी जानते भी होंगे। ‘हिट इंडिया, तो फिट इंडिया’ का जबसे नारा बुलंद हुआ है, तब से इस दिवस की प्रासंगिकता और बढ़ी है। लोगों में खेलों के प्रति जागरुकता बढ़े, उनमें ललक पैदा हो, जिससे वह ‘हिट एंड फिट’ हो सकें। इसी मकसद को मुकम्मल रूप से पूरा करता है आज का ये खास दिवस। ये दिन न सिर्फ विद्यालयों, कॉलेज, विभिन्न शिक्षण संस्थाओं व खेल अकादमियों तक सीमित है, बल्कि हर उम्र के व्यक्ति के लिए अहम मायने रखता है। रविवार को हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद की जयंती है। ये दिवस उन्हीं को समर्पित है। साल भर पूर्व देश के सबसे बड़े खेल पुरस्कार यानी पूर्व के राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार का नाम बदलकर खेल नायक मेजर ध्यान चंद के नाम पर करने का केंद्र सरकार का फैसला इस अर्थ में स्वागत योग्य है कि देर से ही सही हॉकी के जादूगर ध्यानचंद को अपेक्षित सम्मान तो मिला।
मेजर ध्यानचंद देश की धरोहर हैं। वह ऐसी शख्सियत हैं जिनकी जयंती पर राष्ट्रीय खेल दिवस का शुभारंभ हुआ। उनका जन्म 29 अगस्त, 1905 को उत्तर प्रदेश के इलाहबाद में हुआ था। हॉकी के प्रति उनकी अद्वितीय क्षमताएं थी। जबतक वह मैदान पर रहे, विरोधी खिलाड़ियों को पसीने छुटाते रहे। अपने अद्भुत खेल परिचय से उन्होंने देश में हॉकी को अलग और खास मुकाम दिलवाया। एक वक्त ऐसा था, जब विदेशी लोग भारत को उनके नाम से जानते थे। इसलिए यह कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि ध्यानचंद अपनी हॉकी स्टिक के साथ ग्रांउड में जैसे कोई जादू करके खेल जीतते थे। तभी उन्हें ‘हॉकी विजार्ड’ का टाइटल दिया। खेलों में अंतरराष्ट्रीय शुरुआत उन्होंने 1926 से की, अपनी कप्तानी में तीन ओलिंपिक गोल्ड मेडल जीते। 1928, 1932 और 1936 में गोल्ड जीतकर विदेशों में खेलों के प्रति भारत के लिए सनसनी फैलाई। अंग्रेजी हुकूमत भी उनके खेल प्रदर्शन की तारीफ करती थी। खेलों का दौर वैसा ही सुनहरा रहे, इसके लिए केंद्र व राज्य सरकारें प्रतिबद्ध रहती भी हैं।
बीते कुछ वर्षों से राष्ट्रीय खेल दिवस को राष्ट्रीय स्तर पर बड़े जलसे के साथ मनाया जाने लगा है। आयोजन प्रति वर्ष राष्ट्रपति भवन में किया जाता है। राष्ट्रपति देश के उन खिलाड़ियों को राष्ट्रीय खेल पुरस्कार प्रदान करते हैं जो खिलाड़ी अपने खेल के उम्दा प्रदर्शन से समूचे संसार में तिरंगे का गौरव बढ़ाते हैं। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू नेशनल स्पोर्ट्स अवार्ड के अंतर्गत अर्जुन अवार्ड, राजीव गांधी खेल रत्न अवार्ड और द्रोणाचार्य अवार्ड, जैसे कई पुरस्कार देकर कई खिलाड़ियों को सम्मानित करेंगी। आज ही देश का सर्वोच्च खेल सम्मान ‘ध्यानचंद अवार्ड’ भी दिया जाएगा। आज के दिन को उल्लास के साथ मनाया भी जाना चाहिए, लेकिन कुछ कमियां भी हैं उनपर भी विमर्श होना चाहिए। बड़े महानगरों में नेशनल खेल एकेडमी देने से काम नहीं चलेगा, प्रदेश, जिले व मंडल स्तर तक ये अलख जगानी होगी, ताकि खेलों से कोई वंचित नहीं रह सके।
दूसरा मकसद इस दिन को मनाने के पीछे यह भी है कि युवाओं में खेल को अपना करियर बनाने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके। नीरज चोपड़ा आज सबसे बड़ा उदाहरण हैं। अपने खेल से हिंदुस्तान का नाम दिनों दिन रोशन कर रहे हैं। उनसे पहले भी अनगिनत खिलाड़ी ऐसा कर चुके हैं। हालांकि अब भी कई तरह की दुश्वारियों का युवा सामना करते हैं। उन्हें खेलों के लिए उपयुक्त माहौल, मैदान, सुविधा और सहूलियत नहीं मिल पाती। शहरों की तंग गलियों में खेल मैदान नहीं होने के चलते वहां के बच्चे खेलों से महरूम रहते हैं। कमोबेश, ऐसी स्थिति देहातों और गांवों में भी है।
खेलों के जरिए युवाओं की आगे बढ़ने की तमन्नाएं कम नहीं हैं। बेचारे संसाधनों के अभाव में मात खा जाते हैं। निश्चित रूप से युवा शक्ति देश और समाज की रीढ़ होती है। यही युवा जोश समाज को नए शिखर पर ले जाता है। युवा देश का वर्तमान हैं, तो भूतकाल और भविष्य के सेतु भी हैं। मौजूदा समय में युवा गहन ऊर्जा और महत्वाकांक्षाओं से भरे हुए हैं। बस तलाश है किसी खास मौके की, उनकी आंखों में भविष्य के इंद्रधनुषी स्वप्न दिखने लगे हैं। समाज को बेहतर बनाने और राष्ट्र के निर्माण में सर्वाधिक योगदान के लिए हिंदस्तान में युवाओं की बड़ी फौज तैयार है। बस इंतजार उन्हें मुकम्मल मौके का है। खेलों के माध्यम से वह बहुत कुछ करने को आतुर हैं। देश का प्रत्येक चौथा बच्चा नीरज चोपड़ा बनना चाहता है, विराट और धोनी बनना चाहता है। इसके लिए उन्हें जरूरत है तो सुविधाओं की, जिसे सिर्फ सरकारें ही मुहैया करा सकती हैं।
(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)