– योगेश कुमार गोयल
पर्यावरणीय स्वास्थ्य का मानव स्वास्थ्य से गहरा संबंध है। हमारा पर्यावरण जितना स्वस्थ होगा, हमारा स्वास्थ्य भी उतना ही अच्छा होगा। इसका सीधा सा अर्थ है कि हम अपने स्वास्थ्य के लिए काफी हद तक पर्यावरण के प्रति उत्तरदायी हैं और इसलिए पर्यावरणीय स्वास्थ्य की सुरक्षा सुनिश्चित करना हमारी प्रमुख जिम्मेदारी है। उत्तम स्वास्थ्य के साथ प्रकृति और पर्यावरण हमें भोजन, कपड़े इत्यादि जीवित रहने के लिए भी हर चीज प्रदान करते हैं, इसलिए न केवल स्वस्थ रहने के लिए बल्कि धरती पर जीवन का अस्तित्व बचाए रखने के लिए प्रकृति और पर्यावरण का ध्यान रखा जाना बेहद जरूरी है लेकिन गहन चिंता का विषय यही है कि अब प्रकृति के साथ मानव जाति द्वारा किए जा रहे खिलवाड़ के कारण ही वैश्विक पर्यावरण को गंभीर नुकसान हो रहा है, जिसका खामियाजा अब दुनिया के लगभग तमाम देश भुगत भी रहे हैं। विकास के नाम पर प्रकृति के साथ किए जा रहे भयानक खिलवाड़ के ही कारण धरती लगातार गर्म हो रही है।
चक्रवाती तूफानों का बढ़ता सिलसिला, बाढ़, सूखा, जंगलों में लगने वाली भीषण आग तथा अन्य प्राकृतिक आपदाओं में तेजी, ये सब पर्यावरण का स्वास्थ्य बिगड़ने के कारण जलवायु में हो रहे बदलावों का ही परिणाम हैं। वैश्विक तापमान में निरंतर हो रही बढ़ोतरी तथा मौसम का बिगड़ता मिजाज समस्त मानव जाति के लिए गंभीर चिंता बनता जा रहा है। भारत के ही संदर्भ में देखें तो अब सर्दियां कम हो रही हैं और गर्म दिन बढ़ रहे हैं। बारिश के मौसम में भी कहीं सूखे जैसी स्थिति बनी रहती है तो कहीं चारों तरफ तबाही ही तबाही नजर आती है। इस वर्ष भी हिमाचल प्रदेश , उत्तराखंड, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश से लेकर देश के अनेक हिस्सों में जल तबाही का भयानक नजारा देखा जाता रहा है।
पर्यावरण को हो रहे गंभीर नुकसान की ओर लोगों का ध्यान आकर्षित करने, पर्यावरण की स्थिति के बारे में सार्वजनिक जागरुकता बढ़ाने तथा लोगों को इसे और बदतर होने से रोकने के लिए आवश्यक कदम उठाने के लिए प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से प्रतिवर्ष 26 सितंबर को एक विशेष थीम के साथ ‘विश्व पर्यावरण स्वास्थ्य दिवस’ मनाया जाता है। इस वर्ष यह दिवस ‘वैश्विक पर्यावरणीय सार्वजनिक स्वास्थ्य: हर दिन हर किसी के स्वास्थ्य की रक्षा के लिए खड़ा होना’ थीम के साथ मनाया जा रहा है जबकि 2022 की थीम थी ‘सतत विकास लक्ष्यों के कार्यान्वयन के लिए पर्यावरणीय स्वास्थ्य प्रणालियों को मजबूत करना’, जिसका अर्थ था पर्यावरणीय स्वास्थ्य तंत्र को इस प्रकार मजबूत बनाया जाए ताकि लंबे समय तक पर्यावरण और मानव की लंबी उम्र तथा अच्छी सेहत के लक्ष्य को पूरा किया जा सके।
इस दिन पर्यावरण के कारण मनुष्यों के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले हानिकारक प्रभावों के बारे में जागरूकता फैलाई जाती है। प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग से उत्पन्न खतरों के बारे में जागरुकता बढ़ाना अब पहले के मुकाबले ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया है। दरअसल पर्यावरणीय परिस्थितियों को बिगड़ने से रोकने के लिए कुछ भी नहीं करके हम न केवल पर्यावरण को बल्कि स्वयं को भी खतरे में डाल रहे हैं क्योंकि हमारा स्वास्थ्य हमारे पर्यावरण से जुड़ा है और पर्यावरण को हो रहे निरंतर नुकसान से मानव जीवन को भी नुकसान झेलना पड़ता है।
बढ़ते प्रदूषण और प्रकृति से खिलवाड़ के कारण ग्रीनहाउस प्रभाव, जलवायु परिवर्तन, शहरीकरण इत्यादि के कारण हमारे भोजन, पानी और वायु की गुणवत्ता पर सीधा प्रभाव पड़ता है, जिसके कारण लोगों को सांस लेने में तकलीफ, त्वचा संबंधी रोग सहित कई तरह की गंभीर बीमारियां भी हो रही हैं। पर्यावरण का स्वास्थ्य खराब होने से हमारा स्वास्थ्य भी खराब हो रहा है, जिसका सीधा असर हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता पर पड़ता है। ऐसी ही समस्याओं के मद्देनजर लोगों में पर्यावरणीय स्वास्थ्य को लेकर जागरुकता बढ़ाने के लिए ‘इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ एनवायरनमेंटल हेल्थ’ (आईएफईएच) द्वारा 26 सितंबर 2011 को विश्व पर्यावरण स्वास्थ्य दिवस की शुरुआत की गई थी। इसकी शुरुआत 2011 में डेनपास, बाली (इंडोनेशिया) में हुए पर्यावरण स्वास्थ्य शिखर सम्मलेन और आईएफईएच की बैठक के दौरान हुई थी और इस दिन को दुनियाभर में चिह्नित करने का मुख्य उद्देश्य लोगों की भलाई और स्वास्थ्य की तरफ उनका ध्यान आकर्षित करना था।
आईएफईएच वैज्ञानिक और तकनीकी अनुसंधान के आदान-प्रदान पर केन्द्रित है और इसका बड़ा हिस्सा वैज्ञानिक एवं तकनीकी के लिए कार्य करता है। पूर्ण रूप से पर्यावरण और स्वास्थ्य कार्यों को लेकर समर्पित आईएफईएच पर्यावरण स्वास्थ्य विज्ञान और प्रशासन से संबंधित विषयों पर चर्चा करता है और पर्यावरणीय स्वास्थ्य पर सूचना का आदान-प्रदान करता है। पर्यावरण सुरक्षा कार्यबल के समर्थन के साथ आईएफईएच स्वास्थ्य और हरित पुनर्प्राप्ति में सहयोग करता है। यह उन राष्ट्रीय संस्थानों के लिए एक महासंघ है, जो पर्यावरण स्वास्थ्य से संबंधित मुद्दों पर कार्य करते हैं। 2018 में इस फेडरेशन ने 40 देशों को पूर्ण सदस्यों के तौर पर जगह दी थी। आईएफईएच के अध्यक्ष सुजान पैक्सो के अनुसार दुनिया को यह समझने की आवश्यकता है कि पर्यावरण, स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था के बीच एक गहन संबंध है।
बहरहाल, यह समझना बहुत जरूरी है कि आखिर पर्यावरण स्वास्थ्य है क्या? किसी क्षेत्र विशेष के रासायनिक, भौतिक और सांस्कृतिक वातावरण को उसके पर्यावरणीय स्वास्थ्य के रूप में जाना जाता है और किसी क्षेत्र का पर्यावरणीय स्वास्थ्य वहां की वायु की खराब गुणवत्ता, पर्यावरण में विविधता का नुकसान, रासायनिक असमानताएं तथा ऐसे सभी कारक, जो किसी क्षेत्र के पर्यावरणीय स्वास्थ्य को बिगाड़ते हैं, से प्रभावित होता है।
किसी क्षेत्र के पर्यावरणीय स्वास्थ्य को मापने में पर्यावरणीय स्वास्थ्य संकेतक, प्रदूषण का स्तर, पारिस्थितिकी में विविधता, स्वच्छ पेयजल की उपलब्धता, स्वच्छता की शर्तें, कृषि उत्पादकता इत्यादि प्रमुख भूमिका निभाते हैं। पर्यावरणीय स्वास्थ्य की देखभाल के महत्व को दर्शाता विश्व पर्यावरण स्वास्थ्य दिवस वास्तव में न केवल पारिस्थितिक स्वास्थ्य की सुरक्षा की वकालत करता है बल्कि मानव स्वास्थ्य पर पर्यावरणीय स्वास्थ्य के पड़ने वाले प्रभाव और संबंध को समझने की जरूरत पर भी जोर देता है।
(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)