Monday, November 25"खबर जो असर करे"

समाज के लिए कैंसर है भ्रष्टाचार

– लालजी जायसवाल

देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई बहुत समय से चली आ रही है। यह परिणाम तक कब पहुंचेगी कह पाना कठिन है। पिछले दिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पैसे की भूख ने भ्रष्टाचार को कैंसर की तरह पनपने में मदद की है। बहरहाल, यह टिप्पणी कोर्ट ने छत्तीसगढ़ के पूर्व प्रधान सचिव अमन सिंह और उनकी पत्नी के खिलाफ आय के ज्ञात स्रोत से अधिक संपत्ति के मामले में दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने के उच्च अदालत के फैसले को रद्द करते हुए की है। अदालत ने कहा कि संविधान के तहत स्थापित अदालतों का देश के लोगों के प्रति कर्तव्य है कि वे दिखाएं कि भ्रष्टाचार को कतई बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। साथ ही वे अपराध करने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई भी करें।

गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ उच्च अदालत ने आय के ज्ञात स्रोतों से अधिक संपत्ति अर्जित करने के आरोप में राज्य के पूर्व प्रधान सचिव अमन सिंह और उनकी पत्नी के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को निरस्त करते हुए कहा था कि मामला दर्ज करना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग था और आरोप प्रथम दृष्टया संभावनाओं पर आधारित थे। हाई कोर्ट के फैसले को रद्द करने के बाद पीठ ने टिप्पणी की कि संविधान के प्रस्तावना में भारत के लोगों के बीच धन का समान वितरण करके सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने का वादा किया गया है, लेकिन यह अभी तक दूर का सपना ही बना हुआ है। भ्रष्टाचार यदि प्रगति हासिल करने में मुख्य बाधा नहीं भी है, तो भी निस्संदेह यह एक बड़ी बाधा जरूर है। भ्रष्टाचार एक बीमारी है, जो जीवन के हर क्षेत्र में व्याप्त है। यह अब शासन की गतिविधियों तक सीमित नहीं है, अफसोस की बात है कि जिम्मेदार नागरिक कहते हैं कि यह जीवन का हिस्सा ही बन गया है।

खैर, यह तो पूरे समुदाय के लिए चिंता की बात है कि हमारे संविधान निर्माताओं के मन में जो ऊंचे आदर्श थे, उनका पालन करने में लगातार गिरावट आ रही है और समाज में नैतिक मूल्यों का ह्रास तेजी से बढ़ रहा है। उल्लेखनीय है कि भ्रष्टाचार की जड़ का पता लगाने के लिए अधिक बहस की आवश्यकता नहीं है। अगर हम गौर करें तो हिंदू धर्म में सात पापों में से एक माना जाने वाला ‘लालच’ अपने प्रभाव में प्रबल रहा है। इसलिए यह कहना ग़लत नहीं होगा कि पैसे की भूख ने भ्रष्टाचार को कैंसर की तरह पनपने में मदद की है।

भ्रष्टाचार का मूल कारण हमारे नैतिक तथा सांस्कृतिक मूल्यों का ह्रास होना है, जो आज हर क्षेत्र में फैल चुका है। भ्रष्टाचार से देश को मुक्त करने के लिए हमें अपना योगदान देना ही होगा। साथ में प्रत्येक नागरिक को अपने चरित्र का निर्माण कर देश व समाज की सेवा करनी होगी। उल्लेखनीय है कि भारत में राजनीतिक और प्रशासनिक स्तर पर नैतिकता में गिरावट के मूल कारण सामान्यत: समान ही हैं जिसमें अधिकतम भौतिक सुख की प्राप्ति, शक्ति का केंद्रीकरण, भ्रष्ट गतिविधियां, किसी भी स्थिति में नाम कमाने की लालसा, नेता-अधिकारी गठजोड़, सार्वजनिक नैतिक मूल्यों की अपेक्षा व्यक्तिगत मूल्यों का हावी होना इत्यादि प्रमुख वजहें हैं। इसके अलावा राजनीति का अपराधीकरण, धन-बल का प्रयोग बढ़ने से भी राजनीतिक नैतिकता में गिरावट देखने को मिल रही है। वहीं, प्रशासकों की शिक्षा और चयन प्रक्रिया में खामियों की वजह से नैतिक मूल्यों से शून्य व्यक्तियों का प्रवेश हो जाता है और अंततः भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलने लगता है।

अकसर देखा जाता है कि जेल की सजा होने तथा भ्रष्टाचार साबित होने के बावजूद भी कई बार भ्रष्टाचारियों का गौरव गान किया जाता है। वास्तव में ये स्थिति भारतीय समाज के लिए चिंताजनक है। आज भी समाज में ऐसे कुछ लोग मिल ही जाते हैं, जो दोषी पाए जा चुके भ्रष्टाचारियों के पक्ष में भांति-भांति के तर्क देते हैं। ऐसे में भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है। अतः समय-समय पर ऐसे लोगों को समाज द्वारा अपने कर्तव्य का बोध कराया जाना बेहद आवश्यक हो जाता है। इसलिए समाज में अब वैचारिक क्रांति लाना बहुत जरूरी है।

ऐसा नहीं है कि सर्वोच्च न्यायालय ने पहली बार ऐसा कोई निर्णय दिया है। लेकिन न्यायालय के लगातार प्रयासों के बावजूद सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचार कम नहीं हो सका है। बहरहाल संविधान पीठ के इस निर्णय से शायद कुछ कमी आ सके। निर्णय में न्यायालय ने इस मिथक को खारिज कर दिया कि अपराध का पूर्ण प्रमाण ही अपराधी को दोषी ठहराने में मदद कर सकता है। न्यायालय ने अब यह निर्धारित किया है कि भले ही अभियोजन पक्ष के गवाह अपनी बात से पलट जाएं, तो भी अभियोजन पक्ष एवं अपराधी के विरुद्ध न्यायालय में प्रस्तुत सभी साक्ष्यों के आधार पर अपराधी का दोष सिद्ध माना जा सकेगा। लिहाजा देश की शीर्ष प्रशासनिक सेवाओं व अन्य सार्वजनिक सेवाओं में सत्यनिष्ठा एवं ईमानदारी जैसे नैतिक मूल्यों की प्रतिष्ठा के लिए यह प्रशंसनीय है। ध्यातव्य है कि अकसर ही हमारे कानूनों को और सख्त बनाने के पक्ष में आवाज उठाई जाती है, ताकि गलत काम करने वालों को सजा मिल सके। लेकिन ऐसे कठोर कानून से समस्या का निवारण एक सीमा तक ही संभव हो पाता है। जन शक्ति की ताकत ऐसा हथियार है, जो सार्वजनिक जीवन को साफ-सुथरा बनाने में मदद कर सकता है।

साथ ही चुनाव अभियान में खर्च होने वाली राशि की सीमा बांधने के साथ ही चुनाव आयोग को इस राशि की प्राप्ति की तह तक जाना होगा क्योंकि यह भी एक भ्रष्टाचार का बड़ा कारण है। दशकों से चुनावी खर्च की सीमा तय करने की कोशिश विफल रही है। राजनीतिक दल गुप्त तरीके से राशि खर्च करते हैं और इसका कोई ब्यौरा भी नहीं देते। इसके लिए चुनाव आयोग को कड़े कदम उठाने होंगे और राजनीतिक दलों को मिलने वाली धनराशि का पूरा ब्यौरा देने के लिए नियम बनाने होंगे। उम्मीदवारों और राजनीतिक दलों के खातों के ऑडिट को भी अनिवार्य करना होगा। कर की छूट भी उतनी ही राशि पर दी जाए, जिसका लेखा-जोखा स्पष्ट हो। ऐसा करने के लिए चुनाव आयोग को खुली छूट देनी होगी। ऑडिट के दौरान गड़बड़ी पाये जाने पर उम्मीदवारों पर जुर्माना लगाए जाने से लेकर उसे अयोग्य करार देने का अधिकार भी चुनाव आयोग को दिया जाना चाहिए।

यह इसलिए जरूरी है कि भ्रष्टाचार का दीमक आज समाज की जड़ों को खोखला कर रहा है। ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के करप्शन परसेप्शन इंडेक्स में भारत को वर्ष 2021 में 85 वां स्थान दिया गया है। यह रैंकिंग इस बात को दर्शाती है कि हमारे नीति-नियंताओं को सुशासन स्थापित करने की दिशा में अभी काफी काम करना है। जन भागीदारी से भ्रष्टाचार के उन्मूलन के लिए सबसे पहले जनता को सशक्त बनाना होगा। सरकार द्वारा शुरू किए गए विभिन्न सरकारी प्रयास जैसे सूचना का अधिकार, नागरिक चार्टर, सामाजिक अंकेक्षण, ई-अभिशासन आदि कदम बेहद प्रभावी रहे हैं। बावजूद इसके भ्रष्टाचार पर अंकुश नहीं लग सका है।

(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)