Sunday, November 10"खबर जो असर करे"

सामाजिक समरसता का केंद्र बने संत रविदास मंदिर

– लोकेन्द्र सिंह

भारत को कमजोर करने के लिए जातीय द्वेष बढ़ाने में अनेक ताकतें सक्रिय हैं। उनके निशाने पर विशेषकर हिन्दू समाज है। वहीं, भारतीय समाज को एकसूत्र में बांधने के प्रयास करने वाली संस्थाएं अंगुली पर गिनी जा सकती हैं। चिंताजनक बात यह है कि भारत विरोधी ताकतों के निशाने पर राष्ट्रीयता को मजबूत करनेवाले संगठन भी रहते हैं। ऐन-केन-प्रकारेण उनकी छवि को बिगाड़ने के प्रयास किए जाते हैं। राजनीतिक क्षेत्र में भी कमोबेश यही स्थिति है। वोटबैंक की राजनीति के चलते अनेक नेता एवं राजनीतिक दल भी हिन्दू समाज में जातीय विद्वेष को बढ़ाने के दोषी हैं। इन परिस्थितियों के बीच शिवराज सरकार ने मध्यप्रदेश के सागर जिले में संत शिरोमणि रविदास महाराज के मंदिर का निर्माण करने का सराहनीय निर्णय लिया गया है। सरकार इस मंदिर को सामाजिक समरसता के केंद्र के तौर पर विकसित करना चाहती है।

समरसता मंदिर के निर्माण में संपूर्ण हिन्दू समाज की भागीदारी हो, इसके लिए सरकार के प्रयासों से प्रदेशभर में समरसता यात्राएं निकाली जा रही हैं, जो 12 अगस्त को निर्माण स्थल बड़तूमा पहुँचेंगी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान संत शिरोमणि रविदास की जयंती के सुअवसर पर यहाँ समरसता मंदिर की नींव रखेंगे। यह मंदिर अपने उद्देश्य के अनुसार आकार ले, इसके लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान स्वयं सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं। वे समरसता यात्राओं में सहभागिता कर लोगों तक संत रविदास के संदेश को पहुँचाने का भगीरथी प्रयास कर रहे हैं। आनंद की बात है कि संत रविदास समरसता यात्रा का रथ जहाँ-जहाँ से गुजर रहा है, वहाँ के लोग मंदिर निर्माण के लिये अपने क्षेत्र की मिट्टी और नदियों का जल देकर संदेश दे रहे हैं कि निश्चित ही यह स्थान सबको एकसूत्र में जोड़ने में सफल होगा।

भारतीय संत परंपरा में संत रविदास का महत्वपूर्ण स्थान है। उन्होंने अपने दोहों-पदों और आचरण से समाज में व्याप्त जातिगत भेदभाव को दूर करके सामाजिक समरसता पर बल दिया। समाज कैसा होना चाहिए, उनके इस पद में इसके दर्शन मिलते हैं- “ऐसा चाहूँ राज मैं, जहाँ मिलै सबन को अन्न, छोट बड़ो सब सम बसै, रैदास रहै प्रसन्न।” उन्होंने हमारे सामने ऐसे समाज की संकल्पना रखी, जहाँ किसी भी प्रकार का लोभ, लालच, दु:ख, दरिद्रता और भेदभाव नहीं हो। सब प्रसन्नता से रहें। सामाजिक समरसता के जीवनसूत्र देते हुए संत रविदास ने कहा- “रैदास जन्म के कारने होत न कोई नीच, नर कूं नीच कर डारि है, ओछे करम की नीच”। अर्थात् कोई भी व्यक्ति सिर्फ अपने कर्म से नीच होता है, जो व्यक्ति गलत काम करता है, वह नीच होता है। कोई भी व्यक्ति जन्म से कभी नीच नहीं होता है। संत रविदास जी के इस दर्शन को हमें आत्मसात करना चाहिए और इसे अपने आचरण में उतार लेना चाहिए। हिन्दू समाज की पहचान भी इसी बात के लिए है कि वह समय के साथ आई बुराइयों को समय के साथ ही छोड़कर आगे बढ़ जाता है। यह सत्य हमें स्मरण रखना चाहिए कि समाज को दिशा देनेवाले महान लोगों ने भेदभाव को उस समय भी स्वीकार नहीं किया, जब यह बुराई चरम पर दिखने लगी थी। हमारे यहाँ जातिगत भेदभव के लिए कभी कोई स्थान नहीं रहा है।

संत शिरोमणि रविदास जी ने ‘अहम् ब्रह्मास्मि’ और ‘तत्वमसि’ के दर्शन को सामान्य लोगों को समझ आनेवाली भाषा में समझाया। उनकी वाणी का संदेश यही रहा है कि हम सब एक ही हैं। एक ही ईश्वर के भक्त हैं। वे कहते हैं- “प्रभुजी तुम चंदन हम पानी, जाकी अंग-अंग बास समानी”। भारत के संत समाज ने हमें अनेक प्रकार से यह समझाने का प्रयास किया है कि हम सब एक ही ब्रह्म के अंश हैं। इसके बाद भी समाज में कुछ लोगों को यह बात समझ नहीं आती। विडम्बना यह है कि वे पढ़ते और पढ़ाते तो यही हैं, उपदेश भी इसी प्रकार के देते हैं लेकिन उनके आचरण से यह भाव नदारद है। कहने का अर्थ यही है कि अपने भीतर झांकने की आवश्यकता है। इसी बात को संत रविदास ने बहुत ही सुंदर, सरल लेकिन प्रभावी ढंग से कहा है- “मन चंगा तो कठौती में गंगा”। यानी हमारा मन पवित्र होगा तभी हम सब लोगों में एक ही ब्रह्म के दर्शन कर पाएंगे।

संत रविदास का यह दर्शन सागर में बन रहे समरसता मंदिर से चहुँ दिशा में फैले, इसको भी सुनिश्चित करने का प्रयास शिवराज सरकार कर रही है। मंदिर को लेकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की क्या संकल्पना है, इसे समझने के लिए उनके वक्तव्य को देखना चाहिए। मुख्यमंत्री कहते हैं कि संत शिरोमणि रविदास सामाजिक समरसता के अग्रदूत थे। भारतीय संस्कृति और जीवन मूल्यों विशेषकर ‘सियाराम मैं सब जग जानी’ के भाव को मानकर संत रविदास ने न केवल भक्ति अपितु सेवा का भी एक नया इतिहास रचा। उन्होंने सामाजिक सद्भाव, समरसता और समानता का मंत्र दिया। वे परोपकारी, दयालु और मृदुभाषी थे। संत रविदास जी का भव्य मंदिर और स्मारक समाज को शांति, सद्भाव और समरसता का संदेश देगा। अर्थात् यह मंदिर किसी को संतुष्ट करने या कर्मकाण्ड के लिए नहीं बनाया जा रहा है। बल्कि मंदिर निर्माण के पीछे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और उनकी सरकार की वृहद एवं पवित्र संकल्पना है। हम उम्मीद करेंगे की यह शुभ संकल्प अपने वास्तविक रूप में साकार हो। समरसता यात्राओं में लोगों की सहभागिता इस विश्वास को और पक्का करती है कि संत रविदास मंदिर सामाजिक समरसता का केंद्र बनेगा।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं साहित्यकार हैं।)