Friday, November 22"खबर जो असर करे"

स्मृति शेष- शरद यादव: विचारों की आग कभी नहीं बुझती

– मुकुंद

समग्र क्रांति के स्वप्नदृष्टा लोकनायक जयप्रकाश नारायण और प्रखर समाजवादी चिंतक डॉ. राममनोहर लोहिया के विचारों की लौ को अपने समाजवादी नजरिये से जीवन पर्यंत प्रज्ज्वलित करने वाले राजनेता 75 वर्षीय शरद यादव का निधन हिंदी पट्टी को आंसुओं से डुबो गया। बिहार, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की राजनीति में सन्नाटा पसर गया। इस सन्नाटे को उनके विचार हमेशा तोड़ेंगे और राजनीति को मथेंगे। एक जुलाई, 1947 के मध्य प्रदेश के होशंगाबाद (अब नर्मदापुरम) जिले के आंखमऊ गांव में जन्मे शरद की आंखों ने इंजीनियर बनने का सपना देखा और इसके लिए जबलपुर के इंजीनियरिंग कॉलेज (रॉबर्ट्सन मॉडल साइंस कॉलेज) में दाखिला लिया। मगर इस कॉलेज की छात्र राजनीति ने उनकी दिशा बदल दी। वह छात्रसंघ अध्यक्ष चुने गए।

जबलपुर से शरद यादव का गहरा नाता रहा। इस शहर ने उन्हें बेबाक बनाया। मध्य प्रदेश की सांस्कृतिक राजधानी ने शरद को निखारा। जेपी के समय समग्र क्रांति की मशाल थामने के बावजूद शरद कभी समाजवादी विचारधारा के प्रति दुराग्रही नहीं रहे। जबलपुर में छात्र राजनीति के समय वह देवा के मुंगोड़ों के दीवाने रहे। चाय-पान के अड्डों और श्याम टाकीज चौक पर उनकी महफिलें आज भी लोगों की जुबान पर हैं। कैम्प्स से निकले शरद ने संसद की पगडंडियां चढ़ीं। मंत्री बने। राजनीतिक दल के अध्यक्ष भी रहे। यह इत्तेफाक ही है कि मध्य प्रदेश मूल के होते हुए भी उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन की धुरी बिहार और उत्तर प्रदेश को बनाया। युवा नेता के तौर पर सक्रियता से कई आंदोलनों में कूदे। आपातकाल के दौरान मीसा बंदी बनकर जेल भी गए। मंडल कमीशन की सिफारिशों के प्रबल समर्थक रहे।

शरद कुल सात बार लोकसभा और तीन बार राज्यसभा सदस्य चुने गए। 27 साल की उम्र में पहली बार 1974 में मध्य प्रदेश की जबलपुर लोकसभा सीट से सांसद चुने गए। उत्तर प्रदेश की बदायूं और बिहार की मधेपुरा लोकसभा सीट से भी चुनाव जीते। जनता दल के संस्थापक सदस्यों में से एक शरद 1989-1990 तक केंद्रीय टेक्सटाइल और फूड प्रोसेसिंग मंत्री रहे। 1995 में जनता दल के कार्यकारी अध्यक्ष चुने गए। 1996 में बिहार से पांचवीं बार लोकसभा सदस्य निर्वाचित हुए। 1997 में जनता दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने और 1998 में जॉर्ज फर्नांडीस के सहयोग से जनता दल यूनाइटेड का गठन किया। एनडीए के घटक दलों में शामिल होकर केंद्र में फिर से मंत्री बने। 2004 में शरद यादव राज्यसभा गए। 2009 में सातवीं बार सांसद बने लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में उन्हें मधेपुरा से हार का सामना करना पड़ा। जीवन के अंतिम पड़ाव में अपने घनिष्ठ सहयोगी और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मनमुटाव भी हुआ। इसके बाद शरद यादव ने जनता दल यूनाइटेड से नाता तोड़ लिया। लोहड़ी की पूर्व संध्या पर गुरुग्राम के फोर्टिस अस्पताल में आखिरी सांस लेने वाले शरद यादव 14 जनवरी को उसी आंखमऊ के पारिवारिक बगीचे में पंचतत्व में विलीन होंगे, जहां की माटी में पले-बढ़े।

(लेखक, हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं।)