– हृदयनारायण दीक्षित
देश के नाम को लेकर अच्छी खासी बहस चल पड़ी है। भारत अति प्राचीन नाम है। इस नामकरण के पीछे अनेक कथाएं भी चलती हैं। संविधान सभा में 18 सितंबर, 1949 के दिन बहस हुई थी। हरिविष्णु कामथ ने भारत, हिन्दुस्तान, हिन्द भरत भूमि और भारतवर्ष आदि नाम का सुझाव देते हुए दुष्यंत पुत्र भरत की कथा से भारत का उल्लेख किया। मद्रास के केएस सुब्बाराव ने भारत को प्राचीन नाम बताया और कहा कि, ‘ भारत नाम ऋग्वेद में भी है।’ कमलापति त्रिपाठी ने भी भारत के पक्ष में वैदिक और पौराणिक तर्क दिए। स्वाधीनता संग्राम के समय ‘भारत माता की जय’ पूरे देश का बीज मंत्र बना था। पंडित जवाहरलाल नेहरू ने ‘डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ में चीनी यात्री ईतिसिंग द्वारा देश को भारत कहे जाने का उल्लेख किया है। भारत दुनिया का प्राचीनतम राष्ट्र है। राजनैतिक दृष्टि से भारत एक राष्ट्र राज्य है। लेकिन सांस्कृतिक अनुभूति में यह भारत माता है। भारत एक सांस्कृतिक प्रवाह है। एक सतत प्रवाहमान कविता। विश्व कल्याण में तत्पर एक संपूर्ण जीवन दृष्टि। भारत एक विशेष प्रकार की एकात्म प्रकृति है। हजारों वर्ष पुराने इतिहास में भारत ने कभी भी दूसरे देश पर आक्रमण नहीं किया। भारत का अर्थ ही प्रकाश सलंग्नता है। भा का अर्थ प्रकाश और रत का अर्थ सलंग्नता। भारत परम व्योम से धरती में प्रवाहित एक गुनगुनाने योग्य कविता- ऋचा है।
ऋग्वेद के प्रतिष्ठित ऋषि विश्वामित्र गायत्री मंत्र के नाम से चर्चित ‘तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात’ के दृष्टा रचयिता हैं। ऋग्वेद में उनके बारे में कहा गया है, ‘विश्वामित्र के देखे रचे मंत्र सूक्त भारत के जनों की रक्षा करते हैं- विश्वामित्रस्य रक्षति ब्रह्मदं भारतं जनं।’ ऋग्वेद वाले विश्वामित्र मंत्र दृष्टा हैं। राम कथा वाले विश्वामित्र राक्षसों का वध कराने वाले हैं। शकुंतला विश्वामित्र की पुत्री थीं। शकुंतला और दुष्यंत के प्रेम से इतिहास प्रसिद्ध भरत का जन्म हुआ। महाभारत (शान्ति पर्व 2.96) के अनुसार इन्हीं भरत के नाम पर इस देश का नाम भारतवर्ष पड़ा। संजय ने धृतराष्ट्र को बताया, ‘अत्र ते वर्णयिष्यामि वर्षं भारत भारतम् – आपको भारतवर्ष का वर्णन सुनाता हूं। आगे बताया गया कि यह देश इन्द्र, वैवस्वतमनु, ययाति, अम्ब्रीश, मुचकुन्द, शिवि आदि सबको प्रिय रहा है। (भीष्म पर्व नवां अध्याय) ऋग्वेद के रचनाकाल में आर्य जनों और गणों में विभाजित थे। ऋग्वेद में भरत जन हैं।
भरतों की विशिष्ट इतिहास परम्परा है। यज्ञ की अग्नि से उनका संपर्क था। भारत कहने से अग्नि का ध्यान होता था। भारत अग्नि का विशेषण बन गया था – त्वं नो असि भारता अग्ने। (2.7.5) भरत और भारत ऋग्वेद में हैं। वैदिक मंत्रों की रचना और गायन के कारण ऋषियों की वाणी को भारती कहा गया। मंत्रों का गायन सरस्वती के तट पर होता था। अग्नि की स्थापना इन्हीं ऋषियों ने की थी। एक मंत्र (3.28) के रचनाकार देवश्रवा और देववात भारत हैं। कहते हैं कि, ‘भरत के पुत्र देवश्रवा और देववात भारत ने अग्नि को मंथन द्वारा उत्पन्न किया है। इस मंत्र में ऋषि नाम के साथ भारत जुड़ा हुआ है।’ वैदिक इंडेक्स में मैकडनल और कीथ ने ऋग्वेद के उद्धरण देकर भरतों का उल्लेख किया है। संभवतः दुष्यंत पुत्र भरत के कारण ही देश का नाम भारत हुआ। भरतजनों का सजग इतिहासबोध भी भारत नाम पड़ने का कारक हो सकता है। ऋषभ देव की परम्परा में भी भरत हैं। कुछ विद्वान उन्हें भी भारत के नामकरण से जोड़ते हैं। जो भी हो भारत अतिप्राचीन संज्ञा है, इस देश का नाम है।
पुराणों में भी भारत नाम की प्रतिष्ठा है। विष्णु पुराण के ऋषि कहते हैं कि, ‘समुद्र के उत्तर में और हिमालय के दक्षिण में जो देश है उसे भारत कहते हैं तथा उसकी संतानों (नागरिकों) को भारती कहते हैं – ‘उत्तरं यत् समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्। वर्षं तद् भारतं नाम भारती यत्र सन्ततिः।’ गीता में अनेक प्रसंगों में श्रीकृष्ण अर्जुन को भारत कहते हैं। भारतवासी होना सौभाग्य का विषय है। दुनिया की सभी प्राचीन सभ्यताओं में देवता हैं। उन्हें दिव्य जाना गया है। उनकी उपासना होती है। वे भारत भूमि में जन्म लेने की इच्छा व्यक्त करते हैं। एक सुन्दर श्लोक में कहा गया है, ‘देवतागण भारत देश के उत्कर्ष का गान करते हुए यहां पर स्वयं जन्म लेने की इच्छा प्रकट करते हैं – गायन्ति देवाः किल गीतिकानि धन्यास्तु ते भारतभूमिभागे। स्वर्गापवर्गास्पदहेतुभूत भवन्ति भूयः पुरुषाः सुरत्वात।’ भारत निवासी घर परिवार के सभी अनुष्ठानों में संकल्प मंत्र का पाठ करते हैं। संकल्प मंत्र में ‘जम्बूद्वीपे भारतखण्डे’ शब्द का प्रयोग हुआ है। राष्ट्रगीत वन्दे मातरम भारत भक्ति का ही गीत है। इसी तरह राष्ट्रगान भी।
कुछ विद्वान नाम को महत्वपूर्ण नहीं मानते। अपनी बात के समर्थन में शेक्सपियर का उल्लेख करते हैं कि ‘नाम में क्या रखा है?’ नाटक की नायिका जूलिएट ने प्रेमी रोमियो से कहा था कि, ‘तुम अपना कुल नाम लिखते हो। यह निरर्थक है। तुम रोमियो हो। मैं तुमसे प्रेम करती हूं। गुलाब को गुलाब कहा जाए या किसी और नाम से पुकारा जाए। नाम से कोई फर्क नहीं पड़ता।’ लेकिन यह बात सही नहीं है। तुलसीदास ने नाम की महिमा बताई है। रामचरितमानस बालकाण्ड में तुलसीदास ने श्रीराम सहित सभी देवताओं को नमस्कार किया है। आखिर में कहा है कि मैं श्रीराम के नाम को नमस्कार करता हूं। यह नाम महामंत्र है। कहते हैं, ‘कोई विशेष रूप भी बिना नाम के नहीं पहचाना जा सकता। रूप के बिना नाम का स्मरण करने से विशेष प्रेम के साथ वह हृदय में बैठ जाता है।’ एक सुन्दर चैपाई में कहते हैं, ‘नाम रूप गति अकथ कहानी/समझत सुखद न परहि बखानी।’
भारत नाम वैसा ही है। भारत का एक भूगोल है, रूप है। इस रूप में पवित्र नदियों का प्रवाह है। आकाश छूने को व्याकुल पहाड़ हैं। दिव्य और भव्य मंदिर हैं। हजारों वर्षों में फैला इतिहास है। अद्वैत दर्शन का जन्म यहीं हुआ। पूर्व मीमांसा, न्याय व वैशेषिकदर्शन का विकास यहीं हुआ और लोकायत का भी। यहां विश्ववरेण्य संस्कृति है। अनेक भाषाएं हैं। अनेक बोलियां हैं। दुनिया की सबसे अनुशासित और रसपूर्ण भाषा संस्कृत का विकास यहीं हुआ। यहां के लोगों का मन भारत की आत्मीयता में रमता है। भारत तमाम संभावनाओं से भरा पूरा एक बीज है। सभी बीजों में पौध होने, पौध में पत्तियां उगने, पत्तियों में फूल खिलने और फूलों से बीज बनने की अनंत संभावनाएं होती हैं। भारतीय इतिहास में श्रेय और प्रेय की प्राप्ति के अनुकरणीय उदाहरण हैं। ऐसे राष्ट्र देवता और उसके नाम को स्मरण रखना हम सबका कर्तव्य है।
(लेखक, उत्तर प्रदेश विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष हैं।)