– डॉ. वेदप्रताप वैदिक
सउदी अरब आजकल जितने प्रगतिशील कदम उठा रहा है, वह दुनिया के सारे मुसलमानों के लिए एक सबक सिद्ध होना चाहिए। लगभग डेढ़ हजार साल पहले अरब देशों में जब इस्लाम शुरू हुआ था तब की परिस्थितियों और आज की स्थितियों में जमीन-आसमान का अंतर आ गया है। इसके बावजूद दुनिया के ज्यादातर मुसलमान पुराने ढर्रे पर ही अपनी गाड़ी धकाते चले आ रहे हैं।
सउदी अरब उनका तीर्थ है। मक्का-मदीना उनका साक्षात स्वर्ग है। उसके द्वार अब औरतें के लिए भी खुल गए हैं। यह इतिहास में पहली बार हुआ है। वरना, पहले कोई अकेली मुस्लिम औरत हज या उमरा करने जा ही नहीं सकती थी। उसके साथ एक ‘महरम’ (रक्षक) का रहना अनिवार्य था। इसमें कोई बुराई उस समय नहीं थी, जब इस्लाम शुरू हुआ था। उस समय अरब लोग जहालत में रहते थे। औरतों के साथ पशुओं से भी बदतर व्यवहार किया जाता था लेकिन दुनिया इतनी बदल गई है कि अब औरतें अपने पांव पर खड़ी हो रही हैं। उन्हें हर समय अपनी रक्षा के लिए मर्दों की जरूरत नहीं है। अब वे अकेले ही मक्का-मदीना जा सकेंगी।
सउदी अरब में पहले औरतों को घरेलू प्राणी ही समझा जाता था। उन्हें स्कूल तक नहीं जाने दिया जाता था। 1955 में छात्राओं के लिए पहली बार स्कूल खोला गया। उनके लिए विश्वविद्यालय की पढ़ाई की शुरुआत 1970 में हुई। 2001 में पहली बार उनको परिचय-पत्र (आईडेन्टिटी कार्ड) दिए गए। 2015 में उन्हें पहली बार मताधिकार और 2018 में कार चलाने का लाइसेंस दिया गया। अब लड़कियों की जबरन शादी पर भी प्रतिबंध लग गया है। यह क्या है? यह इस्लामी सिद्धांतों का उल्लंघन नहीं है बल्कि यह अरब की पुरानी और अप्रासंगिक हुई घिसी-पिटी परंपराओं से छुटकारा है।
पैगंबर मुहम्मद ने अपने सिद्धांतों और व्यवहार से अरब जगत में उस समय जो नया उजाला फैलाया था, आज उसी को सउदी अरब आगे बढ़ा रहा है। कोई आश्चर्य नहीं कि शीघ्र ही वह बुर्का और नकाब के बारे में भी कोई प्रगतिशील कदम उठा ले। तीन तलाक पर भारत ने जो क्रांतिकारी कानून बनाया है, उसे सारे इस्लामी देशों में लागू करवाने में भी सउदी अरब को आगे क्यों नहीं आना चाहिए?
यदि सउदी अरब और ईरान-जैसे राष्ट्र डेढ़ हजार साल पुराने अपने पुरखों की नकल करते रहे तो वे इस्लाम की कुसेवा ही करेंगे। ऐसे इस्लाम के प्रति लाखों-करोड़ों मुसलमानों की कुरुचि हो जाएगी। वे पूछेंगे कि अरब शेख आजकल मोटर कारों और जहाजों में यात्रा क्यों करते हैं? वे ऊँटों पर ही सवारी क्यों नहीं करते? वे मदरसों में ही क्यों नहीं पढ़ते? वे ऊँची पढ़ाई के लिए लंदन, पेरिस, न्यूयार्क और बोस्टन के ईसाई विश्वविद्यालयों की शरण में क्यों जाते हैं? अब सारी दुनिया बदल रही है। आगे बढ़ रही है तो इस्लामी लोग भी पीछे क्यों रहें? सउदी अरब में नए इस्लाम का उदय हो रहा है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और जाने-माने स्तंभकार हैं।)