Friday, September 20"खबर जो असर करे"

समरकंद में समरबंद की कोशिश

– डॉ. वेदप्रताप वैदिक

उज्बेकिस्तान के समरकंद में 15-16 सितंबर को शंघाई सहयोग संगठन के सदस्य-राष्ट्रों का जो शिखर-सम्मेलन होनेवाला है, वह दक्षिण और मध्य एशिया के राष्ट्रों के लिए विशेष महत्व का है। यूं तो यह संगठन 2001 में स्थापित हुआ था लेकिन इस बार इसकी अध्यक्षता भारत करेगा। अपने अध्यक्षीय कार्यकाल में अब भारत को अन्य राष्ट्रों के साथ चीन और पाकिस्तान से भी सीधे-सीधे बातचीत करनी होगी। शायद यह भी कारण रहा हो कि चीन और भारत ने मिलकर पूर्वी लद्दाख से अपनी सेनाएं पीछे हटाने की घोषणा की है। यह शिखर सम्मेलन उज्बेकिस्तान के ऐतिहासिक शहर समरकंद में होने वाला है। समरकंद का भारत से गहरा संबंध रहा है। समरकंद का बड़ा ऐतिहासिक महत्व है। यूं तो ताशकंद प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री गए थे। भारत-पाकिस्तान समझौते के बाद 1966 में वहीं उनका निधन हो गया था।

प्रधानमंत्री नरसिंह राव ताशकंद के साथ-साथ समरकंद भी गए थे। उनके बाद कुछ दिनों तक मुझे भी वहां रहने का मौका मिला। समरकंद के इस सुंदर शहर में यदि इन पड़ोसी राष्ट्रों के बीच विश्वसनीय सद्भाव कायम हो जाए तो इनके बीच चल रहा कूटनीतिक और राजनीतिक समर बंद हो सकता है। समरकंद में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ, चीन के शी चिनफिंग और भारत के नरेन्द्र मोदी की सामूहिक भेंट के अलावा यदि द्विपक्षीय भेंट हो गई तो उसके परिणाम काफी सकारात्म्क हो सकते हैं। इन तीनों देशों के नेताओं की भेंट हुए अब तीन साल हो गए हैं। इस बीच भारत के संबंध इन देशों के साथ काफी खटाई में पड़ गए हैं।

शंघाई सहयोग संगठन के इस समय 8 सदस्य हैं- चीन, भारत, रूस, कजाकिस्तान, किरगिजिस्तान, ताजिकिस्तान, उज्बेकिस्तान और पाकिस्तान। इसके चार पर्यवेक्षक राष्ट्र हैं- ईरान, अफगानिस्तान, बेलारूस और मंगोलिया। छह राष्ट्र इसके साथ संवाद भागीदार (डॉयलॉग पार्टनर) हैं। इसमें मिस्र, सउदी अरब और कतर भी शामिल होना चाहते हैं। इस संगठन का मुख्य लक्ष्य मजहबी कट्टरवाद, आतंकवाद और जातीय अलगाववाद से लड़ना है। इसका उद्देश्य आपसी सहयोग बढ़ाना भी है।

ये सब लक्ष्य भारत के ही हैं और भारत इन्हें साकार करने में सदा सक्रिय रहता है। मेरी राय यह है कि यह संगठन जितना बड़ा बनता जा रहा है, इसकी लक्ष्य-प्राप्ति उतनी ही पतली होती जा रही है। फिर भी इसकी उपयोगिता तो है ही लेकिन हम जरा सोचें कि दक्षेस (सार्क) तो ठप पड़ा है और हम इस विरल संगठन के जरिए कितने आगे बढ़ पाएंगे? इसके लक्ष्य भी सीमित हैं। इसे चलने दें लेकिन इससे भी ज्यादा जरूरी है कि दक्षेस को फिर से जिंदा करना। वह सात साल से मृत पड़ा हुआ है। मैं तो चाहता हूं कि दक्षेस के आठ सदस्य राष्ट्रों में आठ नए राष्ट्रों को जोड़कर एक बड़ा जन-दक्षेस (पीपल्स सार्क) खड़ा किया जाए। ताकि पांचों मध्य एशियाई गणतंत्र म्यांमार, मॉरीशस और ईरान भी इसमें जुड़ जाएं और अराकान से खुरासान तक का आर्यावर्त का यह इलाका यूरोपीय संघ से भी अधिक मजबूत बन जाए। समरकंद में हमारे प्रधानमंत्री मोदी इसकी पहल करें तो इन देशों में युद्ध और संघर्ष की आशंकाएं सदा के लिए निरस्त हो सकती हैं।

(लेखक, भारतीय विदेश नीति परिषद के अध्यक्ष हैं।)