– डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा
गुस्सा या यों कहें कि बदला भी इकोनोमी को बूस्ट कर सकता है इसका जीता जागता उदाहरण है कोरोना के साये से निकलने के बाद खरीदारी की आजादी। कोरोना ने लोगों की सोच ही बदल डाली थी और लोग भविष्य के लिए इस कदर चिंतित होने लगे थे कि भविष्य के लिए बचत ही एकमात्र ध्येय हो गया था। लोगों का ध्यान केवल बचत और खाने-पीने की सामग्री का संग्रहण, इन दो पर ही खासा ध्यान हो गया था। इसका कारण भी साफ था कि कोरोना के दौर में कब घर में कैद होना पड़े, इसका अंदाज ही नहीं लगाया जा सकता था।
ऐसे में लोग समुचित खाद्य सामग्री घर पर रखने पर जोर देने लगे तो आवश्यक सामग्री के अलावा अन्य चीजों पर ध्यान देना ही लगभग छोड़ दिया था। सालाना मोबाइल फोन बदलने की आदत लोगों की छूटी तो लोगों ने कपड़ों आदि की खरीदारी से भी मुंह मोड़ लिया। यहां तक कि कोरोना लॉकडाउन खुलने के बाद भी लोगों ने मॉल्स में जाना, सिनेमाघरों की और रुख करना, होटल या बाहर खाने, घूमने-फिरने पर भी ब्रेक लगा दिया जो अब धीरे धीरे बदलने लगा है। जब घर पर ही रहना है तो क्यों कपड़े खरीदें और क्यों अन्य वस्तुएं। ऐसे में इकोनॉमी पर भी बुरा असर पड़ना लाजिमी था। पर कोरोना के असर कम होते- होते लोगों में रिवेंज शॉपिंग का इस कदर शौक चढ़ा है कि पूरी इकोनॉमी को ही बूस्ट मिलने लगा है तो दूसरी ओर लोगों में बचत की आदत को पांच साल पीछे धकेल दिया है।
रिवेंज शॉपिंग को इस तरह से समझा जा सकता है कि देश में चौपहिया वाहनों और उसमें भी खासतौर से एसयूवी सेगमेंट के वाहनों की खरीदारी को बूम मिला है तो पर्यटन खासतौर से देशी पर्यटन को बढ़ावा मिल रहा है। घर से बाहर खाना, फैशनेबल परिधानों की खरीदारी, गेजेट्स की खरीदारी तेजी से बढ़ रही है। देखा जाए तो सभी सेक्टर में बूम देखने को मिल रहा है। अब कहने को ही रह गया है कि बाजार में दम नहीं है। वास्तविकता तो यह है कि बाजार गुलजार होने लगे हैं।
रिवेंज शॉपिंग को यों समझा जा सकता है कि इंग्लैण्ड की प्रिसेज डायना को जब यह पता चला कि प्रिंस विलियम की जिंदगी में दूसरी औरत है तो उन्होंने उसी दिन ब्लैक ऑफ सोल्डर ड्रेस पहनी जो आज भी लोगों की जेहन में है। जिस तरह से बाड़े में बंद जानवरों को बाड़े से निकाला जाता है तो वह दौड़ लगा देते हैं उसी तरह से कोरोना त्रासदी से मुक्ति का जश्न लोग रिवेंज शॉपिंग के माध्यम से मनाने लगे हैं। रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया की हालिया रिपोर्ट को देखें तो भारतीयों में घरेलू बचत की जो आदत थी, वह घट कर पिछले पांच वर्ष के निचले स्तर पर आ गई है जबकि कोरोना काल में घरेलू बचत का आंकड़ा जीडीपी की 21 फीसदी तक पहुंच गया था। देखा जाएं तो ऋणं कृत्वा घृतम पिवेत की संस्कृति विकसित हुई है और यही कारण है कि छोटे लोन से लेकर ऋण सेगमेंट में अच्छी खासा बढ़ोतरी देखने को मिल रही है। हालांकि अब ब्याज दरों में बढ़ोतरी होने लगी है इससे ऋण पर ईएमआई का बोझ बड़ेगा।
दरअसल जब लोगों के पास पैसा आता है या यों कहें कि पैसों की सहज उपलब्धता होने लगती है तो बाजार में बूम आता ही है। इकोनॉमी के लिए यह जरूरी भी है। मजे की बात यह है कि यह सब कुछ तब है जब बाजार में हर वस्तुओं के दामों में बढ़ोतरी हो रही है। कोरोना काल में जो लोगों की सोच विकसित हुई थी अब उसमें तेजी से बदलाव आया है। कोरोना काल में लोगों की सोच यही थी कि दो पैसा है तो आड़े वक्त में काम आयेगा। वहीं, अब लोगों की सोच में यह बदलाव देखने को मिल रहा है कि जिंदगी का दो घड़ी का भरोसा नहीं है तो फिर काहे की बचत। घूमो-फिरो और मौज करो की भावना आने लगी है।
वैसे भी अब बाजार विशेषज्ञों की त्योहारी खरीदारी पर नजर है। जिस तरह से मार्केट रिएक्शनस आने लगे हैं उससे सभी क्षेत्र में अच्छी खरीदारी के संकेत आने लगे हैं। जानकारों की मानें तो दीपावली के त्योहारी सीजन में 125 करोड़ रु. के कारोबार की संभावनाएं व्यक्त की जा रही है। पिछले दिनों में सर्राफा बाजार में तेजी देखने को मिल रहा है तो इलेक्ट्रोनिक उद्योग भी गति पकड़ रहा है। चौपहिया और दुपहिया वाहनों का बाजार तो पूरी तरह से गुलजार दिखाई दे रहा है। जानकारों की माने तो रिवेंज शॉपिंग का पूरा असर इस त्योहारी सीजन में दिखाई देगा। लाख महंगाई की चर्चा हो रही हो पर यह साफ है कि इकोनॉमी और खासतौर से घरेलू मार्केट को बूम मिलना साफ दिखाई दे रहा है।
रिवेंज शॉपिंग का असर हमारे यहां ही नहीं अपितु दुनिया के अन्य देशों में भी साफ दिखाई दे रहा है। हमारे देश में यह नया चलन है। जिस तरह से आक्रोश दबा रहता है तो उसका असर दिखाई देता है उसी तरह से रिवेंज शॉपिंग का असर दिखाई देगा और यही भारतीय इकोनॉमी की चहुंमुखी बहार का कारण बनेगा। रिवेंज शॉपिंग का असर एमएसएमई से लेकर घरेलू दस्तकारों, शिल्पकारों और निर्माताओं तक को मिलेगा। हालांकि अब ई मार्केटिंग की ओर तेजी से रुझान बढ़ता जा रहा है। ऐसे में कोरोना के बाद रिवेंज शॉपिंग को भारतीय घरेलू इकोनॉमी के लिए शुभ संकेत के रूप में ही देखा जाना चाहिए।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)