नई दिल्ली। रुपये में गिरावट (rupee depreciation) का सिलसिला लगातार जारी है। भारतीय मुद्रा (Indian currency) डॉलर के मुकाबले (against dollar) कमजोरी का दिन प्रति दिन नया रिकॉर्ड बना रही है। इस कारोबारी सप्ताह के पहले दिन ही आज एक बार फिर भारतीय मुद्रा ने गिरने का नया रिकॉर्ड (new record) बनाया। रुपये ने आज रिकॉर्ड कमजोरी के साथ कारोबार की शुरुआत की और अभी भी सबसे निचले स्तर के करीब ही कारोबार कर रहा है।
इंटर बैंक फॉरेन सिक्योरिटी एक्सचेंज में भारतीय मुद्रा ने आज 82.67 रुपये प्रति डॉलर के स्तर से कारोबार की शुरुआत की। हालांकि बाजार खुलने के बाद शुरुआती कारोबार में मुद्रा बाजार में डॉलर का प्रवाह बढ़ता नजर आया, जिसकी वजह से एक बार भारतीय मुद्रा मजबूत होकर 82.32 रुपया प्रति डॉलर के स्तर तक भी पहुंची। उसके बाद डॉलर की मांग में तेजी आने के आशंका से रुपया एक बार फिर फिसल कर निचले स्तर पर पहुंच गया। शुरुआती 2 घंटे के कारोबार के बाद भारतीय मुद्रा 82.69 रुपये प्रति डॉलर के स्तर पर कारोबार कर रही थी।
मार्केट एक्सपर्ट मयंक मोहन के मुताबिक अमेरिकी फेडरल रिजर्व की ओर से सख्त मौद्रिक नीतियों का अनुपालन करने की आशंका बनी हुई है, जिसकी वजह से दुनिया भर के बाजारों में दबाव बना हुआ है। इसके साथ ही 10 साल की अवधि वाले बॉन्ड यील्ड पिछले 8 सत्रों में 7 बार बढ़े हैं और फिलहाल ये 7.483 प्रतिशत के स्तर पर पहुंच कर कारोबार कर रहे हैं। बॉन्ड यील्ड के स्तर में बढ़ोतरी होने की वजह से भी रुपया समेत दुनिया भर की तमाम मुद्राएं डॉलर के मुकाबले दबाव में काम कर रही हैं।
मयंक मोहन का मानना है कि अमेरिका में महंगाई को नियंत्रित करने के लिए अमेरिकी फेडरल रिजर्व ब्याज दरों में बढ़ोतरी करना जारी रख सकता है। खुद फेडरल रिजर्व के गवर्नर क्रिस्टोफर वॉलर ने भी पिछले सप्ताह इस बात के संकेत दिए थे कि महंगाई दर पर काबू पाने के लिए अमेरिकी केंद्रीय बैंक के सामने ब्याज दरों में बढ़ोतरी करने के अलावा अभी कोई और विकल्प नहीं है।
एक्सपर्ट्स के मुताबिक फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दरों में बढ़ोतरी करने का एक असर डॉलर इंडेक्स की मजबूती के रूप में भी सामने आएगा, जिसकी वजह से रुपये पर दबाव और बढ़ जाएगा। इसके अलावा ओपेक कंट्रीज द्वारा कच्चे तेल के उत्पादन में कटौती करने का ऐलान करने के बाद से ही अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम में जैसी मजबूती आई है, उसकी वजह से भी भारत जैसे कच्चे तेल के आयातक देशों पर दबाव बना है। कच्चे तेल के महंगे होने का मतलब भारत से डॉलर की अधिक निकासी होना भी है। ऐसा होने से रुपया डॉलर की तुलना में और भी अधिक गिर सकता है। जानकारों का मानना है कि अगर वैश्विक हालात में जल्द ही सुधार नहीं हुआ, तो भारतीय मुद्रा डॉलर के मुकाबले गिरकर 83.75 रुपये के स्तर तक भी जा सकती है। (एजेंसी, हि.स.)