नई दिल्ली। डॉलर इंडेक्स की मजबूती, घरेलू शेयर बाजार में विदेशी निवेशकों की बिकवाली और वैश्विक दबाव की वजह से रुपया बुधवार को पहली बार डॉलर के मुकाबले गिरकर 82 रुपये से नीचे के स्तर तक पहुंच गया। दिन के कारोबार के दौरान भारतीय मुद्रा डॉलर के मुकाबले 82.03 रुपये के स्तर तक पहुंच गई। हालांकि कारोबार के आखिरी वक्त में रुपये की स्थिति में कुछ सुधार हुआ और 81.98 रुपये प्रति डॉलर (अस्थाई) के स्तर पर आज के कारोबार का अंत किया।
इंटर बैंक फॉरेन सिक्योरिटी एक्सचेंज में भारतीय मुद्रा ने आज 30 पैसे की गिरावट के साथ 81.88 रुपये प्रति डॉलर के स्तर से कारोबार की शुरुआत की। दिन के कारोबार के दौरान रुपये ने एक बार मजबूती दिखाई और डॉलर के मुकाबले उछलकर 81.76 के स्तर पर पहुंच गया। इसके बाद डॉलर की मांग तेज होते ही रुपया तेजी के साथ नीचे गिरने लगा।
कारोबार के दौरान भारतीय मुद्रा रुपये ने गिरने के क्रम में पहले डॉलर के मुकाबले 82 रुपये के स्तर को पार किया और फिर थोड़ी ही देर बाद आज के सबसे निचले स्तर 82.03 रुपया प्रति डॉलर के स्तर पर पहुंच गया। इस जोरदार गिरावट के बाद हालांकि रुपये की स्थिति में कुछ सुधार हुआ, जिसके कारण भारतीय मुद्रा ने निचले स्तर से 5 पैसे की रिकवरी करके 81.98 रुपये प्रति डॉलर (अस्थाई) के स्तर पर आज के कारोबार का अंत किया।
ब्रोकरेज फर्म जैन फॉरेक्स के सीईओ सुशांत जैन के मुताबिक डॉलर इंडेक्स में आई जोरदार तेजी की वजह से रुपये समेत दुनिया भर की ज्यादतर देशों की मुद्रा डॉलर की तुलना में काफी कमजोर हुई हैं। अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दरों में बढ़ोतरी करने और अमेरिकी निवेशकों द्वारा दुनिया भर के बाजार में चौतरफा बिकवाली करने की वजह से डॉलर इंडेक्स फिलहाल 20 साल के सबसे ऊंचे स्तर पर बना हुआ है। ऐसे में आने वाले दिनों में भारतीय मुद्रा डॉलर के मुकाबले कर 82.50 से लेकर 83.10 रुपये के स्तर तक गिर सकती है।
अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने अपने देश में महंगाई पर काबू पाने के लिए सख्त कदम उठाते हुए ब्याज दरों में बढ़ोतरी करने का आखिरी उपाय अपनाया है। अमेरिका में इन दिनों महंगाई चरम पर है। ऐसे में फेडरल रिजर्व की ओर से साफ किया गया है कि महंगाई के खतरे से निपटने के लिए ब्याज दरों में अभी और भी बढ़ोतरी की जाएगी।
सुशांत जैन का कहना है कि अगर फेडरल रिजर्व अमेरिका में महंगाई पर काबू पाने के लिए ब्याज दरों में और बढ़ोतरी करता है, तो इससे बाजार में नकदी संकट (लिक्विडिटी क्रंच) की स्थिति बन सकती है जिसका परिणाम अमेरिका की अर्थव्यवस्था में मंदी के रूप में भी सामने आ सकता है।
दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देश अमेरिका में मंदी आने पर दुनिया के ज्यादातर देशों की अर्थव्यवस्था प्रभावित हो सकती है। यही आशंका अमेरिकी निवेशकों को भी सता रही है। इसीलिए अमेरिकी निवेशक दुनियाभर के बाजारों में बिकवाली करके अपना पैसा निकालने में जुटे हैं। निवेशकों की बिकवाली और डॉलर के रूप में अपने पैसे की वापसी के कारण रुपये के साथ ही ज्यादातर देशों की मुद्रा डॉलर की तुलना में काफी कमजोर हुई है।
सिर्फ एशियाई मुद्राओं की ही बात करें, तो डॉलर की तुलना में जापान की मुद्रा येन 25 प्रतिशत की कमजोरी के साथ 144 के स्तर पर आ गई है। इसी तरह डॉलर की तुलना में इंडोनेशिया की मुद्रा रुपियाह 0.71 प्रतिशत, दक्षिण कोरिया की मुद्रा वोन 1.12 प्रतिशत, ताइवानी डॉलर 0.58 प्रतिशत, चीन की मुद्रा रेनमिंबी 0.60 प्रतिशत, मलेशिया की मुद्रा रिंगिट 0.78 प्रतिशत, थाईलैंड की मुद्रा थाई बात 6.21 प्रतिशत और सिंगापुर का डॉलर 0.44 प्रतिशत गिर चुका है।
माना जा रहा है कि अगर वैश्विक हालत में जल्दी ही सुधार नहीं हुआ, तो आने वाले दिनों में दुनिया भर की मुद्राओं की कीमत डॉलर की तुलना में 1 से लेकर 1.45 प्रतिशत तक नीचे गिर सकती हैं। इस तरह से भारतीय मुद्रा रुपये की कीमत में भी डॉलर की तुलना में अभी और गिरावट आने की आशंका बनी हुई है। (एजेंसी, हि.स.)