– मृत्युंजय दीक्षित
एक जनवरी 2024 को अयोध्या में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के भव्य श्रीराम मंदिर का उद्घाटन की सूचना सामने आते ही तथाकथित धर्मनिरपेक्ष और वामपंथी ताकतें चिंतित हो गई हैं। इन ताकतों को लगता है कि मोदी के नेतृत्व में सनातन हिंदू समाज का महत्वपूर्ण कार्य पूरा हो जाने के बाद जनमानस में उनकी कोई हैसियत नहीं रह जाएगी। इसी भय के कारण उन्होंने अपना रामद्रोही गैंग सक्रिय कर दिया है। इस गैंग ने देवी- देवताओं, धर्मग्रंथों तथा आस्था के केंद्रों पर ऊल-जुलूल कहना शुरू कर दिया है। इसका प्रारंभ रामचरित मानस पर टिप्पणी के साथ हुआ है। ये शाब्दिक आक्रमण बिहार से कर्नाटक होते हुए उत्तर प्रदेश तक पहुंच गया है। इससे राजनीतिक वातावरण में कटुता बढ़ गई है।
बिहार के शिक्षामंत्री चंद्रशेखर यादव ने नालंदा ओपन यूनिवर्सिटी के दीक्षांत समारोह में रामचरित मानस पर टिप्पणी कर भूचाल ला दिया। उन्होंने कहा रामचरित मानस नफरत फैलाने वाला ग्रन्थ है। महागठबंधन के सहयोगी नेता जीतन राम मांझी ने उनका समर्थन किया। राजद नेता जगदानंद सिंह ने तो यहां तक कह दिया कि अयोध्या का राम मंदिर नफरत की जमीन पर बन रहा है। कर्नाटक के वामपंथी लेखक केएस भगवान ने वाल्मीकि रामायण के उत्तर कांड की अपने हिसाब से व्याख्या कर डाली। उन्होंने हिंदू समाज को चिढ़ाते हुए कहा भगवान राम रोज दोपहर माता सीता के साथ शराब पिया करते थे। उत्तर प्रदेश के समाजवादी पार्टी के नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने तो रामचरित मानस को ही प्रतिबंधित करने की मांग कर डाली।
रामचरित मानस की आड़ में सनातन हिंदू संस्कृति को अपमानित करना मुस्लिम तुष्टिकरण का सबसे बड़ा उदाहरण है। बिहार के बयानवीर शिक्षा मंत्री अभी तक अपने पद पर बैठे हुए हैं क्योंकि वह उस दल में हैं जिनके अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा को बिहार में रोक लिया था। यही नहीं आडवाणी को हिरासत में नजरबंद कर दिया गया था। स्वामी प्रसाद मौर्य भी ऐसी पार्टी में हैं जिनके मुखिया मुलायम सिंह यादव ने मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए अयोध्या में दो नवम्बर 1990 को भीषण नरसंहार करवा दिया था। मौर्य के मानस द्रोही बयानों पर सपा नेता अखिलेश यादव ने चुप्पी साध ली है। अखिलेश को डर है कि कार्रवाई से कहीं मौर्य समाज का बड़ा वर्ग सपा से दूर न हो जाए। सपा विधयाक तूफानी सरोज और पूर्व सपा विधायक ब्रजेश प्रजापति स्वामी प्रसाद मौर्य के साथ खड़े होकर हिंदुओं को चिढ़ा रहे हैं।
रामचरित मानस का अपमान करने वाले भूल रहे हैं कि राम अस्मिता और मानस जन-जन की आस्था के प्रतीक हैं। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस की रचना ऐसे समय पर की जब भारत मुगलों के आधीन था। हिंदू समाज मुगलों के भयंकर अत्याचारों से कराह रहा था। गोस्वामी ने लोकभाषा में रामकथा लिखकर हिंदू समाज को रामभक्ति की वो किरण दिखाई जिससे उसमें नई चेतना, स्फूर्ति, उमंग व उल्लास का प्रादुर्भाव हुआ। स्वामी प्रसाद यह भूल रहे हैं कि आज मौर्यों व निषादों की पहचान रामचरित मानस से ही है। निषाद राज केवट को कौन नहीं जानता। वनवासी राम का जीवन दलितों व समाज के पिछड़े लोगों के उत्थान का ही काल माना गया है। मानस का राम-केवट संवाद स्पष्ट करता है कि रामराज में समाज के किसी भी वर्ग के साथ भेदभाव नहीं किया जाता था। राम ने वन में शबरी के जूठे बेर खाकर अगड़ों-पिछड़ों की खाई मिटा दी थी। तब रामायण कहां से नफरती हो गई। रामचरित मानस का अनुवाद करने वाले पाश्चात्य विद्वान जेएम मैकफी ने कहा था कि यह उत्तर भारत की बाइबिल है। यह आपको हर गांव में मिलेगी, इतना ही नहीं, जिस घर पर यह पुस्तक होती है, उसके स्वामी का आदर पूरे गांव में होता है।
यह साफ है कि रामचरित मानस पर यह हमले आगामी 2024 के चुनाव को देखते हुए हो रहे हैं। यह खतरनाक राजनीतिक प्रयोग है। यदि मानस के अपमान से क्षुब्ध लोग–जाके प्रिय न राम बैदेही, तजिये ताहि कोटि बैरी सम जद्दपि परम सनेही (अर्थात, जो राम का विरोधी है, जो जानकी का विरोधी है, वह भले ही आपका कितना भी प्रिय क्यों न हो, उसको बैरी की तरह ही पूर्ण रूप से त्याग देना चाहिए।) चौपाई का पाठ करते हुए चुनाव में आगे बढ़ेंगे तो रामद्रोही कहीं दिखाई नहीं पड़ेंगे।
(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)