– कौशल मूंदड़ा
जिसकी आशंका थी, वह सामने नजर आने लगा है। जिस दिन राजस्थान में राइट टू हेल्थ ‘आरटीएच’ के खिलाफ चिकित्सकों ने लामबंदी की थी, उसी दिन से ही यह आशंका बन चली थी कि कहीं राइट टू एजुकेशन ‘आरटीई’ के प्रति भी निजी स्कूल यही राह न अपना लें। भले ही निजी स्कूलों ने सड़क पर आंदोलन की राह नहीं चुनी है, लेकिन उन्होंने चुपचाप बैठे-बैठे ही सरकार को अपनी मंशा से अवगत करा दिया है कि आरटीई को लेकर जितनी परेशानियां उन्हें आ रही हैं, उनका समाधान नहीं होने तक वे सहयोग के मूड में नहीं हैं। और इसका नतीजा यह है कि सत्र 2022-23 के प्री-प्राइमरी कक्षाओं के आरटीई के बैकलॉग पर तलवार लटक गई है, वहीं नए सत्र 2023-24 के लिए 20 अप्रैल को निकलने वाली लॉटरी को स्थगित करना पड़ा है। हालांकि, सरकार यह दावा भी कर रही है कि आरटीई के एक माह पूर्व भरे गए पिछले सत्र के प्रवेशों को वह लागू करवाएगी, लेकिन एक बार तो निजी स्कूलों ने ताल ठोक ही दी है।
आरटीएच आंदोलन में भी सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा इलाज की राशि के पुनर्भरण का था और अब आरटीई में भी यही मुद्दा सबसे ऊपर है। राइट टू एजुकेशन में निःशुल्क प्रवेश पाने वाले विद्यार्थियों की फीस के पुनर्भरण को लेकर लंबे समय से सरकार और निजी स्कूलों में खींचतान बनी हुई है। पहले तो निजी स्कूल पुनर्भरण राशि को कम मानते हैं, दूसरे भुगतान में अत्यधिक देरी स्कूलों के अर्थतंत्र को प्रभावित कर देती है। यह स्थिति पिछले सालों से बनी हुई है। और इस बार सरकार ने पिछले बीत चुके सत्र 2022-23 से प्री-प्राइमरी कक्षाओं में आरटीई के प्रवेश की प्रक्रिया को सत्र समाप्त होने के समय करने के आदेश दिए। प्रक्रिया भी हुई और प्रवेश के लिए लॉटरी भी निकल गई, लेकिन इसके साथ सरकार का यह निर्णय कि सत्र 2022-23 के प्रवेशार्थियों की फीस का पुनर्भरण सरकार तीन साल तक नहीं करेगी, यह निजी स्कूलों के लिए समस्या बन गया और उन्होंने न्यायालय की शरण ली है।
दरअसल, निजी स्कूलों का कहना है कि सत्र के अंत में सरकार ने प्री-प्राइमरी यानी नर्सरी, एलकेजी और एचकेजी तीनों कक्षाओं में आरटीई के तहत 25 प्रतिशत निःशुल्क प्रवेश का कोटा पूरा करने के आदेश दिए। पहली बात तो यह कि स्कूलों में 25 प्रतिशत सीटें खाली ही नहीं थी, क्योंकि सत्रारम्भ में स्कूल सशुल्क सीटें भर चुके थे, ऐसे में यह 25 प्रतिशत निःशुल्क प्रवेश अतिरिक्त हो गए, अब स्कूलों को कक्षाओं में बैठने की क्षमता व संसाधन बढ़ाने की मजबूरी हो गई। दूसरी बात यह कि इस बैकलॉग में सारा काम बैकडेट में करने की झंझट और उनके माथे आन पड़ी है। सत्र 2022-23 में प्राइमरी की पहली कक्षा में आरटीई के प्रवेश सत्रारम्भ के समय हो गए थे और उनका भौतिक सत्यापन भी हो गया था, अब तक नियमानुसार सारी कागजी कार्रवाई पूरी हो चुकी है और सरकार के पास जा चुकी हैं, ऐसे में प्री-प्राइमरी की इन तीन कक्षाओं का भौतिक सत्यापन कब, कैसे और किस नियम से होगा और बाद में इनकी फीस का पुनर्भरण कैसे होगा, क्या सरकार इसके लिए अलग से ऑडिट में शिथिलता देने वाली है, क्योंकि वित्तीय वर्ष बीत चुका है।
कुल मिलाकर सत्र 2022-23 के अंतर्गत प्री-प्राइमरी कक्षाओं में बैकलॉग वाला निःशुल्क प्रवेश खटाई में पड़ता नजर आ रहा है और इसके चलते नए सत्र 2023-24 के निःशुल्क प्रवेश भी प्रभावित हो गए हैं। निजी स्कूल फीस पुनर्भरण हर साल का हर साल चाह रहे हैं, कुछ निजी स्कूलों के प्रबंधकों ने तो यह भी कहा कि इसी वर्ष चुनाव भी हैं और यदि पुनर्भरण का स्पष्ट निर्णय समय रहते नहीं हुआ तो उन्हें भविष्य की भी चिंता सता रही है। एक निजी स्कूल के प्रबंधन से जुड़े आनंद जोशी कहते हैं कि कोरोनाकाल की फीस को लेकर आई परेशानी से निजी स्कूल अभी उबर ही रहे हैं और अब सरकार ने जो निर्णय उन पर थोपा है, वह चिंता बढ़ाने वाला है। एक आकलन के अनुसार प्री-प्राइमरी कक्षाओं में सत्र 2022-23 में सवा लाख बच्चों का निःशुल्क प्रवेश हुआ है। एक बच्चे की तीन सत्र की फीस 30 से 40 हजार रुपये बैठती है, तब तीन साल बाद यह राशि 375 करोड़ से 500 करोड़ के बीच में बैठेगी। जब सरकार अभी एक साल का भुगतान नहीं कर पा रही है, तब तीन साल का भुगतान एक साथ कैसे कर पाएगी।
चूंकि, शिक्षा के मंदिर सड़क पर उतरने का निर्णय अचानक नहीं कर सकते, या यह भी माना जा सकता है कि सड़क पर उतरने पर उनकी संख्या कितनी होगी क्योंकि बच्चे और अभिभावक तो उनके पास होंगे नहीं, इसलिए उन्होंने अपने तरीके से शांतिपूर्ण तरीका अपनाया है, लेकिन इस सारी खींचतान में सत्र 2022-23 और सत्र 2023-24 के निःशुल्क प्रवेश के लिए आवेदन भरने वाले अभिभावकों का इंतजार बढ़ गया है। एक सत्र बीच चुका है और निजी स्कूलों में नए सत्र की कक्षाएं शुरू हो चुकी हैं, प्री-प्राइमरी कक्षाओं के साथ नए सत्र की पहली कक्षा में भी आरटीई का प्रवेश अटक गया है। सवाल यह भी है कि क्या निजी स्कूल 25 प्रतिशत सीटें खाली रखते हुए निर्णय का इंतजार करेंगे। ऐसे में जाहिर है कि यह इंतजार लंबा भी नहीं किया जा सकता। अभिभावक कहीं न कहीं बच्चों का प्रवेश कराने को मजबूर हो जाएंगे। अभिभावकों की आस अब न्यायालय और राज्य सरकार पर टिकी है। दोनों सत्रों के लिए शीघ्र राहत भरे निर्णय का इंतजार है, अभिभावकों को भी और निजी स्कूलों को भी।
(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)