– रमेश सर्राफ धमोरा
राजस्थान में विधानसभा चुनाव होने में अभी एक साल से अधिक का समय बाकी है। मगर राजनीतिक दलों ने अभी से तैयारियां शुरू कर दी हैं। क्षेत्रीय दल (तीसरा मोर्चा) भी विधानसभा में पहुंचने को लालायित दिख रहे हैं। बड़ा सवाल यह है कि राजस्थान की राजनीति में क्या तीसरा मोर्चा सफल होगा। पहले राजस्थान में मुख्य मुकाबला कांग्रेस व भारतीय जनता पार्टी के बीच ही होता रहा है, क्योंकि यहां तीसरा मोर्चा नहीं बन पाया था। इसी कारण 1993 से यहां एक बार भाजपा व एक बार कांग्रेस की सरकारी बनती आ रही है। पिछले विधानसभा चुनाव में हनुमान बेनीवाल ने राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी बनाकर 58 सीटों पर चुनाव लड़ा था। मगर उन्हें तीन सीट व 2.4 प्रतिशत वोट मिले थे। इसी तरह भाजपा से बगावत कर घनश्याम तिवाड़ी ने भी भारत वाहिनी पार्टी के नाम से राजस्थान में 63 विधानसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे। मगर तिवाड़ी सहित सभी की जमानत हो गई थी। पिछले विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी (आप) ने भी जोर-शोर से चुनाव लड़ा था। मगर उसका कोई भी उम्मीदवार 1000 वोटों की संख्या पार नहीं कर पाया। यहां तक कि पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष रामपाल जाट भी मात्र 628 वोट की ले पाए थे। प्रदेश में आप को 136345 यानी मात्र 0.38 प्रतिशत वोट मिले थे। पिछले विधानसभा चुनाव में बसपा के छह विधायक जीते थे। मगर इसे बसपा का दुर्भाग्य ही कहेंगे कि हर बार की तरह इस बार भी यह दल बदल कर कांग्रेसी हो गए। पिछले चुनाव में बसपा को 4.03 प्रतिशत मत मिले थे। लोग इन दलों को ही तीसरा मोर्चा मानकर चल रहे हैं।
सत्तारूढ़ कांग्रेस मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के नेतृत्व में चुनाव लड़ने की पूरी तैयारी कर रही है। हालांकि गहलोत को कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने के चर्चा जोरों से है। यदि ऐसा हुआ तो सचिन पायलट के मुख्यमंत्री बनने की सबसे अधिक संभावना है। हालांकि गहलोत ऐसा कभी भी नहीं चाहेंगे। दोनों गुटों की लड़ाई कई बार सामने आ चुकी है। भाजपा को इस रण में बाजी मारने के लिए मतभेद भुलाकर एकजुटता से चुनाव मैदान में उतरना होगा। पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा व केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को बार-बार राजस्थान आकर समझाइश करनी पड़ रही है। भाजपा नेता वसुंधरा राजे विरोधी धड़े को हकीकत समझनी होगी।
नागौर सांसद हनुमान बेनीवाल की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी भी विधानसभा चुनाव की तैयारी कर रही है। मगर इनका जाट बेल्ट में ही अधिक प्रभाव है। पिछली बार उन्होंने तीन विधानसभा सीटें जीती थी। लोकसभा चुनाव में बेनीवाल ने भाजपा से गठबंधन कर नागौर लोकसभा सीट जीती थी। मगर इस बार अकेले चुनाव लड़ा तो मुकाबला कड़ा होगा। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की आप इस बार राजस्थान में पूरी गंभीरता से चुनाव लड़ने जा रही है। इसी के चलते अक्टूबर में अरविंद केजरीवाल लगातार दो दिन राजस्थान का दौरा करेंगे। आप नेता देवेंद्र शास्त्री का कहना है कि इस बार हमारी पार्टी पूरी गंभीरता से राजस्थान में चुनाव लड़ेगी और जनता को एक तीसरा विकल्प देगी। कांग्रेस और भाजपा के मिले-जुले खेल से ऊब चुकी प्रदेश की जनता को हम एक नया विकल्प देंगे।
ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के अध्यक्ष व सांसद असदुद्दीन ओवैसी भी राजस्थान पर अपनी नजर गड़ाए हुए हैं। हाल ही में उन्होंने राजस्थान का दो दिवसीय दौरा कर जयपुर, सीकर, झुंझुनू, नागौर जिले की कई मुस्लिम बहुल सीटों पर लोगों से संपर्क कर जनसभाएं की थी। उनकी सभाओं में उमड़ी भीड़ को देख कर बड़े राजनीतिक दलों के कान खड़े हो गए हैं। ओवैसी ने भाजपा के साथ मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को भी जमकर कटघरे में खड़ा किया। ओवैसी की पार्टी राजस्थान में अपने पांव जमाने में सफल होती है तो इसका सीधा नुकसान कांग्रेस को होगा।
प्रदेश के आदिवासी बेल्ट में पिछली बार भारतीय ट्राइबल पार्टी (बीटीपी) ने 11 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतार कर दो सीटों पर जीत हासिल की थी। मगर इस बार आदिवासी क्षेत्र में भारतीय आदिवासी पार्टी (बीएपी) का गठन किया गया है। इसमें बीटीपी के दोनों विधायक भी शामिल हो गए हैं। भारतीय आदिवासी पार्टी प्रदेश की तीन दर्जन सीटों पर अपने प्रत्याशी खड़े करने जा रही है। इससे आदिवासी क्षेत्र में सभी बड़ी पार्टियों का खेल बिगड़ेगा।
(लेखक, हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं।)