Friday, November 22"खबर जो असर करे"

रेल बजट: सफर सुहावना करने का वादा

– आर.के. सिन्हा

केन्द्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा 45 लाख करोड़ का 2023-24 का बजट तो यही संकेत दे रहा है कि अब आपका रेलवे का सफर और सुहावना होने जा रहा है। यानी आपको रेल में यात्रा करने में आनंद आएगा। यह इसलिए संभव होगा क्योंकि सरकार रेलवे का कायाकल्प करने के प्रति दृढ़ संकल्प दिखा रही है। रेलवे का चौतरफा विकास करने का सिलसिला तो लगातार चल ही रहा है। इसे और गति देने के इरादे से ही केन्द्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने साल 2023-24 के बजट में रेलवे के लिए 2 लाख 40 ह्जार करोड़ रुपये का प्रस्ताव रखा है। इसके अतिरिक्त 75 हजार करोड़ रुपये नई परियोजनाओं को लागू करने पर खर्च किए जाने का प्रस्ताव अलग से है। पिछले साल 2022-23 में रेलवे के विकास के लिए 1.4 लाख करोड़ का बजट आवंटित किया गया था। यानि अब यह लगभग दुगुना हो गया।

रेलवे को दिल खोलकर धन मिलने जा रहा है। रेलवे को मुसाफिरों को आरामदेह सफर का सुख देने के साथ अपनी नई परियोजनाओं पर भी ईमानदरी से काम करना होगा। रेलवे लगातार अपने काम में सुधार कर भी रहा है। पर अभी तो उसे बहुत आगे जाना है। अभी भी मंजिल बहुत दूर ही दिख रही है। हाँ यह जरूर है कि जब दो लाख चालीस हजार करोड़ और 75,000 करोड़ एक वर्ष में खर्च होंगे तो देशभर में भारी संख्या में रोजगार पैदा होंगे।

इस बीच, जहां तक देश के रेलवे स्टेशनों का सवाल है तो फिलहाल इस दृष्टि से 47 रेलवे स्टेशनों के लिए निविदा प्रक्रिया भी पूरी हो चुकी है, जबकि 32 स्टेशनों पर काम भी शुरू हो गया है। सरकार ने 200 रेलवे स्टेशनों के पुनर्निर्माण के लिए एक मास्टर प्लान तैयार किया है। स्टेशनों पर ओवरहेड स्पेस बनाए जाएंगे, जिसमें बच्चों के लिए मनोरंजन सुविधाओं के अलावा वेटिंग लाउंज और फूड कोर्ट सहित तमाम विश्व स्तरीय सुविधाएं होंगी। रेलवे स्टेशन क्षेत्रीय उत्पादों की बिक्री के लिए भी एक सस्ता पर लोक लुभावन मंच भी प्रदान करने जा रहे हैं। एक अच्छी बात यह भी है कि वंदे भारत एक्सप्रेस ट्रेन का उत्पादन भी अब भारत में ही हो रहा है। रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कुछ समय पहले बताय़ा था कि 400 वंदे भारत ट्रेनों में से 100 का निर्माण तो लातूर, मराठावाड़ा में कोच फैक्ट्री में ही किया जाएगा जिससे इस पिछड़े इलाके में रोजगार की संभावनाओं में भारी वृद्धि होगी।

दरअसल, इस 21वीं सदी में भारत के तेज विकास के लिए रेलवे का विकास और भारतीय रेलवे में तेजी से सुधार बहुत जरूरी है। इसलिए ही केंद्र सरकार भारतीय रेलवे को आधुनिक बनाने के लिए रिकॉर्ड निवेश कर रही है। फिलहाल भारतीय रेलवे के कायाकल्प करने का राष्ट्र व्यापी अभियान चल रहा है। अब वंदे भारत, तेजस, हमसफर जैसी आधुनिक ट्रेनें देश में बन रही हैं। सुरक्षित, आधुनिक कोचों की संख्या में भी रिकॉर्ड वृद्धि हो रही है। रेलवे स्टेशनों को भी एयरपोर्टों की तरह ही सुन्दर ढंग से विकसित किया जा रहा है। भारत जैसे युवा देश के लिए भारतीय रेल भी युवा अवतार लेने जा रही है और इसमें निश्चित तौर पर 475 से ज्यादा वंदे भारत ट्रेनों की बड़ी भूमिका होगी।

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस बजट में रेलवे की विकास परियोजनाओं के लिए पर्याप्त धन की व्यवस्था की है। इसके चलते रेल पटरियों का भी तेजी से विस्तार होगा। इस लिहाज से दो स्तरों पर काम होना चाहिए। पहला, नई-नई जगहों में रेल लाइनें बिछाई जाएं जहां पर रेलवे ने अब तक दस्तक ही नहीं दी है। और दूसरा यह कि विस्तार यह सोचकर किया जाये कि अब देश के रेल नेटवर्क को आपको दो की बजाय तीन-चार या पांच पटरियों पर दौड़ाना होगा। तब ही देश का रेल यातायात सुगम होगा। देश के सभी मुख्य रेल मार्गों पर कम से कम चार-पांच रेल ट्रैक तो बनने ही चाहिए। तभी रेल यात्रियों और मॉल परिवहन की भारी बोझ को सहने में सक्षम होगा।

इस प्रकार, दो-दो सवारी गाड़ियों और मालगाड़ियों के आवागमन के लिये ट्रैक पांचवा इमरजेंसी ट्रैक सेना, पुलिस बल, राहत कार्य के लिए विशेष ट्रेनों आदि के लिए।
मैं बीते दिनों नई दिल्ली, हजरत निजामउद्दीन,अमृतसर,आगरा,सवाई माधोपुर, देहरादून, हरिद्वार वगैरह अनेकों रेलवे स्टेशनों में गया। वहां झाड़ू लेकर घूमने वालों की जगह आधुनिक मशीनों पर सवार नवयुवक-नवयुवतियां सफाई करते दिखे। सब में अद्भुत सुधार दिखाई दिया। ये काफी आधुनिक लगे। इनमें वाशरूम बेहतर और साफ थे। इनमें गुजरे सालों की तरह अराजकता और अव्यवस्था नहीं थी। सफाई व्यवस्था भी पहले से बेहतर । पर कई जगहों पर रेलवे ट्रैक के साथ-साथ रेलवे की संपत्ति पर अतिक्रमण भी दिखाई देता रहा। रेलवे को इस तरफ भी सख्ती से ध्यान देना होगा ताकि उसकी संपत्ति पर कोई अवैध कब्जे ना हों। उसे अपने लापरवाह और भ्रष्ट कर्मियों को दंडित करना होगा जिनकी काहिली के कारण रेलवे की संपत्ति पर कब्जे हो जाते हैं। रेलवे की संपत्ति पर जगह-जगह धार्मिक स्थल तक बने हुए हैं। नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर एक पर भी आपको एक मस्जिद बनी हुई मिलेगी जो पिछली सरकारों के अल्पसंख्यक तुष्टीकरण नीति का जीता जागता सबूत है।

रेलवे अपनी तमाम महत्वाकांक्षी योजनाओं को तब ही लागू करने में सफल होगा अगर वह अपने यहां काम की संस्कृति में बड़े ही व्यापक स्तर पर सुधार करेगा। रेलवे में अब भी निठल्ले और कामचोर कर्मियों की एक फौज है। यही रेलवे के साथ एक बड़ी समस्या है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनकी सरकार चाहती है कि जल्द से जल्द काम हों और नई परियोजनाओं पर समय से अमल किया जाए। पर यह तब ही मुमकिन होगा जब रेलवे में सब मिलकर काम करेंगे। रेलवे के हर विभाग को तेजी से काम करने के लिए तैयार करना होगा ताकि परियोजनाओं पर तेजी से अमल किया जा सके। निकम्मे कर्मियों को दंड मिलना ही चाहिए। हालाँकि, भारतीय रेल से जुड़े ज्यादातर कर्मी अभी भी अनुशासित और कर्तव्य परायण हैं I लेकिन, राजनीतिक पैरबियों और घूसखोरी के बलपर जो रेलवे में नौकरी पा गये वे तो अपनी अकड़ दिखायेंगे ही। उनकी अकड़ पर लगाम कसके ठीक करना तो होगा ही न ?

रेलवे को अब एक और काम करना होगा। देश के स्वाधीनता आंदोलन और उसके बाद की ऐतिहासिक घटनाओं से कई स्टेशनों का इनसे गहरा नाता है। रेलवे को उन स्टेशनों के बाहर शिलापट्ट लगवाने चाहिए ताकि नई पीढ़ी को पता चल सके कि ये क्यों विशेष हैं। उदाहरण के रूप में नई दिल्ली रेलवे स्टेशन को ही लें। इसका अपना अलग गौरवशाली इतिहास रहा है। महात्मा गांधी और पंडित जवाहरलाल नेहरू के अस्थि कलश लेकर स्पेशल रेलगाड़ियां यहीं से प्रयाग के लिए रवाना हुई थीं। यहीं से देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद की पटना के लिए ट्रेन से ही विदाई हुई थी। अगर रेलवे इन सब घटनाओं को रेलवे स्टेशन की किसी जगह पर शिलालेख पर लिखवा दे तो एक बेहतर काम होगा। नई दिल्ली रेलवे स्टेशन को देश का सबसे बिजी और कमाऊ रेलवे स्टेशन माना जाता है। हजारों- लाखों लोगों को रोजी देने वाला यह स्टेशन ऐसा है जिस पर भारत के बड़े से बड़े व्यक्ति के पांव पड़े हैं।

रेलवे के साथ कई चुनौतियां भी हैं। उसे उन मुसाफिरों को फिर से अपने पास लाना है जो अब हवाई सफर पर निकलने लगे हैं। अगर रेलवे में चालू रफ्तार से विकास होता रहा तो हवाई सफर से अपने गंतव्य पर जाने वाले फिर से इसके साथ यात्रा करने लगेंगे कम से कम तब जबकि उनके पास भागाभागी वाली स्थिति न हो ।

वैसे दशकों बाद यह पहला बजट ऐसा आया है जिसमें समाज के हर वर्ग के लिये कुछ न कुछ है ही। मध्यम वर्ग को 6 लाख की जगह 7 लाख तक टैक्स की छूट, तो महिलाओं और बुजुर्गों को बचत पर ज्यादा व्याज, कृषकों को सस्ते ऋण तो नव उद्योगों को प्रोत्साहन की योजनायें। कोई अब चाहे कोई भी आरोप लगा ले, मिल तो सभी को कुछ न कुछ रहा ही है न ? बजट सफल था या नहीं एक साल में क्या रिजल्ट आया, उसी से पता चलेगा। इंतजार कीजिये।

(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं।)