– ललित मोहन बंसल
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने रूस की दो दिवसीय यात्रा में अपने सखा व्लादिमीर पुतिन को रुस-यूक्रेन युद्ध के शांतिपूर्ण समाधान के लिए एक नायाब नसीहत दी है। यह नसीहत चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और उत्तर कोरिया के राष्ट्रपति किम जोंग उन को भले रुचिकर न लगे, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने अपने परम मित्र और विशिष्ट अतिथि नरेन्द्र मोदी की नसीहत ‘शिरोधार्य’ करने में किंचित देर नहीं लगाई। मोदी अपने मित्र के हाथों रूस के सब से बड़े सम्मान ‘पत्र-पुष्प’ और अद्भुत भोज ग्रहण कर अगले ही दिन अपने अगले पड़ाव आस्ट्रिया की राजधानी विएना के लिए निकल गए। इस बीच भारतीय प्रधानमंत्री ने अपनी पहली ‘खुशनुमा’ यात्रा से एक दिन पहले यूक्रेन में एक बच्चों के बड़े अस्पताल पर रूसी सेना के मिसाइली हमले में बच्चों की दिल दहलाने वाली मौत और बच्चों के लहूलुहान होने की खबरें देखी, सुनीं तो वह अंदर तक आहत हुए बिना नहीं रह सके।
इस हृदय विदारक घटना की दुनिया भर के मानवतावादी खेमों में तो रूस की कड़ी निंदा हुई ही, वाशिंगटन में 75वें नाटो शिखर सम्मेलन में भी राष्ट्रपति जो बाइडेन और नाटो देशों के प्रतिनिधियों ने भी कड़ी निंदा की। ऐसी स्थिति में नई दिल्ली जी-20 देशों के शिखर सम्मेलन में ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ का उद्घोष करने और महात्मा गांधी के जन-जन तक ‘शांति और सद्भाव’ का मंत्र फूंकने को आतुर नरेन्द्र मोदी भला बच्चों की अकाल मृत्यु और रक्त रंजित बच्चों के दोषी एवं अपने ही मित्र को नसीहत देने से कैसे बच सकते थे? उन्होंने रूस के सबसे बड़े ‘एंड्रुज नागरिक सम्मान’ ग्रहण करने से पहले पुतिन को नसीहत दे डाली। उन्होंने बड़े स्पष्ट शब्दों में कहा कि युद्ध समस्या का हल नहीं है। इसके लिए मिसाइली हमलों की नहीं, दोनों पक्षों के लिए शांति और सद्भाव से वार्ता एक मात्र विकल्प है। इसके लिए मोदी ने पुतिन से मदद का हाथ बढ़ाया। इस पर पुतिन ने भी उसी गर्मजोशी से मित्र मोदी की नसीहत का सम्मान करते हुए उनका आभार भी जताया।
हमें यहां यह भूलना नहीं चाहिए कि दुनिया में एक और जहां इंग्लैंड और फ़्रांस और अमेरिकी नेता लोकतंत्र की दहलीज पर लुढ़क-पुढ़क रहे हैं, वहीं नरेन्द्र मोदी दुनिया के सब से बड़े लोकतंत्र में लोगों का विश्वास मत जीत कर तीसरी बार प्रधानमंत्री बने हैं। देशवासियों को भी यह बात समझ आ गई है कि मोदी ने पुतिन, शी जिनपिंग और किम जोंग उन की तिकड़ी को भी एक संदेश में अग्रज की भूमिका निभाई है। यह बात पुतिन, शी जिनपिंगऔर किम जोंग उन जैसे निरंकुश शासकों के गले कहां तक उतर पाएगी, कहना मुश्किल है। चीन के राष्ट्रपति ने नाटो शिखर सम्मेलन के शुरू होने से पहले ही ‘रोना’ शुरू कर दिया। उन्होंने सीधे अमेरिका पर आरोप जड़ दिया कि उसके नेतृत्व में सुरक्षा के नाम पर क्षेत्र में मिलिट्री सेना का जमावड़ा और असुरक्षा का माहौल खड़ा किया जा रहा है। हालांकि सोमवार को शी जिनपिंग ने हंगरी के प्रधानमंत्री विक्टर ऑर्बन से भेंट के बाद वैश्विक शक्तियों का आह्वान किया कि वे रूस और यूक्रेन के बीच वार्ता करने के लिए आगे आएं। आर्बन ने चीन, यूरोप और अमेरिका से बीच बचाव करने का आग्रह किया है।
हां, यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की को मोदी-पुतिन की गलबाहियां रुचिकर नहीं लगी। उन्होंने एक्स पोस्ट में कहा कि यह कहां तक जायज है कि एक और जब यूक्रेन के दस क्षेत्रों में चालीस मिसाइल छोड़े जा रहे हों, जिनमें 35 से अधिक लोगों की जान चली गई और मोदी-पुतिन से गलबहियां कर रहे हों? यही नहीं, अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन की अध्यक्षता में वाशिंगटन में नाटो देशों के प्रतिनिधियों ने इस घटना को महज एक इत्तेफाक बताया, जबकि नाटो महासचिव स्टोलनबर्ग ने पुतिन के बच्चों के अस्पताल पर मिसाइली हमले की कड़े शब्दों में निंदा कर डाली। यहां प्रश्न उठता है कि चीन और रूस की विस्तारवादी नीतियों के मद्देनजर शांति और सद्भाव पूर्ण बातचीत के बिना कोई विकल्प है?
जो बाइडेन ने 32 देशों के नाटो के 75वें सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि रूस के मिसाइली हमलों से हवाई सुरक्षा के लिए यूक्रेन के बचाव में चार देशों से ‘पैट्रियट’ सुरक्षा प्रदान की जाएगी। उन्होंने कहा कि हवाई सुरक्षा के लिए जर्मनी, इटली, नीदरलैंड और रोमानिया ने हवाई सुरक्षा बंदोबस्त का भरोसा दिलाया है।
रूस की कोशिश यूक्रेन का नाम दुनिया के मानचित्र से हटाना है। बाइडेन जिस समय नाटो देशों के सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे, उनकी पार्टी के अनेक सांसद और नेता उनकी आयु और स्वास्थ्य को लेकर उनके फिर से राष्ट्रपति चुनाव में खड़े होने पर सवालिया निशान लगा रहे थे। बाइडेन गुरुवार को एक प्रेस कॉन्फ़्रेंस में इन सभी सवालों का जवाब देंगे। इस अवसर पर उन्होंने नाटो के गौरवशाली इतिहास का चित्रण किया और नाटो महासचिव जींस स्टॉलनबर्ग को मेडल ऑफ फ़्रीडम से अलंकृत किया। यह सम्मेलन उसी स्थान पर हो रहा है, जहां इसकी स्थापना हुई थी। उनका कहना था कि आज नाटो सर्वशक्ति संपन्न है।
(लेखक, अमेरिका में वरिष्ठ पत्रकार हैं।)