Friday, November 22"खबर जो असर करे"

पंजाब के सांसद मान के हैरान करते बयान!

– ऋतुपर्ण दवे

अगर हम अपने आदर्शों को आतंकवादी कहेंगे तो फिर राष्ट्रवादी कौन होगा। यह सवाल इन दिनों देश में बड़ी गंभीरता से लोगों को परेशान और हतप्रभ कर रहा है। माना कि ऐसे सवालों की जद में राजनीति होती है लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि देश के लिए प्राणों की आहुति देने वालों उसमें भी खासकर देशभक्ति की अनूठी मिशाल पेश करने वालों पर स्वतंत्रता या इससे जुड़े आंदोलनों या कोशिशों के इतने लंबे अरसे बाद केवल सियासत चमकाने के लिए सवाल उठाना न केवल हैरान और परेशान करता है बल्कि भावनाओं को आहत भी करता है। लगता नहीं कि ऐसे सवालों को अब और खासकर तब जब देश स्वतंत्रता का अमृत महोत्सव मनाने की तैयारी में पूरे उत्साह जोश और जोर-शोर से जुटा है उठाना किसी सुनियोजित रणनीति का हिस्सा हो सकता है।

पंजाब की संगरूर सीट से नए नवेले सांसद सिमरनजीत सिंह मान का भगत सिंह के बलिदान पर सवाल उठाना एक तो बकवास और दूसरा गैरजरूरी है। यकीनन हर उपचुनाव के नतीजों के खास मायने होते हैं लेकिन मुख्यमंत्री भगवत सिंह मान की पंजाब में एक मात्र संसदीय सीट खाली करने से हुए उपचुनाव में शिरोमणि अकाली दल (अमृतसर) के सिमरनजीत सिंह मान का जीतना और जीतते ही विवादित बोलों से सभी ध्यान खींचना अब आहत करने जैसा लगने लगा है।

ऐसा कहीं से भी नहीं लगता कि अपने तौर-तरीकों से सुर्खियों में बने रहने वाले मान देश के हक में अपनी बातें कह रहे हैं। दशकों बाद पंजाब में खालिस्तान समर्थक आवाजें फिर सुनाई देना, ऑपरेशन ब्लू स्टार की इस बरसी पर खालिस्तान जिंदाबाद के नारे, हिमाचल प्रदेश विधानसभा की दीवार पर खालिस्तानी झंडे लगाना, जनरैल सिंह भिण्डरावाले को शहीद संत कहना तथा और ऐसे ही तमाम दूसरे वाकये लोकतंत्र के हिमायती के मुंह से अच्छे नहीं लगते। उनके अतीत को देखते हुए भी लगता है कि कहीं न कहीं पंजाब को वो भूली-बिसरी बातें याद दिला रहे हैं जिसको छोड़ राज्य बहुत आगे निकल चुका है बल्कि वहां नई पीढ़ी नई सोच और नए रास्ते पर चल चुकी है जिसमें राष्ट्रवाद अहम है। पंजाबी दुनिया में भारत का परचम लहराते हुए अपनी पगड़ी, कृपाण, भांगड़ा और खास लहजे से देशप्रेम की अनूठी मिशाल से लबरेज दिखते हैं। प्रधानमंत्री के हर विदेश दौरे के दौरान भारतीय समुदाय में सबसे अलग और दूर से पहचानी जाने वाली वो पंजाबी बिरादरी ही है जो विदेशों में भारत की भीड़ में अलग पहचान है। ऐसे में सिमरनजीत सिंह मान की मंशा पर पूरे देश में सवाल उठना ही चाहिए और उठ भी रहे हैं।

इतना तो समझ आने लगा है कि मान खालिस्तानी विचारधारा को संसद में रखने की कोशिश तो करेंगे लेकिन कितने कामयाब होंगे वक्त पर छोड़ना होगा। उनका बयान जिसमें वो किसान आन्दोलन के दौरान दंगे भड़काने के आरोपित दीप सिद्धू की सड़क हादसे में हुई मौत और जाने-माने पंजाबी गायक सिद्धू मूसेवाला की हत्या को शहादत बता उससे पूरी दुनिया में सिख कौम को फायदा हुआ बता, क्या कहना चाहते हैं। किसी की मौत या हत्या में फायदा खोजना राजनीति का कौना सा हिस्सा है वही जाने, लेकिन भारत में इसे समुदाय विशेष से जोड़कर खुलेआम बयान देना नफरत को बढ़ावा देना ही कहा जाएगा।

मान ने ऑपरेशन ब्लू स्टार के खिलाफ 18 जून, 1984 को भारतीय पुलिस सेवा से इस्तीफा दे दिया था। 1967 में आईपीएस बने और पंजाब कैडर अलॉट हुआ। एएसपी लुधियाना, एसएसपी फिरोजपुर, एसएसपी फरीदकोट, एआईजी जीआरपी पंजाब, पटियाला सतर्कता ब्यूरो चंडीगढ़ के उप निदेशक, कमांडेंट पंजाब सशस्त्र पुलिस रहकर आखिर में बॉम्बे में सीआईएसएफ के ग्रुप कमांडेंट बने। इस्तीफे के बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था। यह विडंबना नहीं तो और क्या है जिसे मान ने खुद माना है कि कि 80 के दशक में उन्होंने भिंडरावाले और उसके समर्थकों को हथियारों की सप्लाई की थी। सिमरनजीत मान के सोशल मीडिया अकाउंट से भी पता चलता है कि शुरू से ही कट्टर खालिस्तानी समर्थक हैं। ऑपरेशन ब्लू स्टार के चलते उन्होंने पुलिस की नौकरी से इस्तीफा दिया। भिंडरावाले को अपनी जीत का श्रेय देने वाले यह सांसद संसद में कश्मीर में सेना के अत्याचार का मुद्दा और बिहार और छत्तीसगढ़ में आदिवासी लोगों को नक्सली बताकर उनकी हत्या किए जाने के मुद्दे को भी उठाने की बात कहकर कौन सा संदेश देना चाहते हैं, यह तो वही जाने, लेकिन न केवल पंजाब बल्कि पूरे देश में विरोध झलकने लगा है। पंजाब के तमाम राजनीतिक दलों ने भी खुले शब्दों में निंदा की है।

1989 में विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार के दौर में मान ने तरनतारन लोकसभा चुनाव जेल में रहते हुए जीता था। लेकिन जब संसद की कार्यवाही में हिस्सा लेने संसद पहुंचे तो इस जिद पर अड़ गए कि तीन फीट लंबी कृपाण लेकर ही प्रवेश करेंगे। इस पर तब काफी बहस हुई। लेकिन लोकसभा में कृपाण समेत घुसने की इजाजत नहीं मिली, जिससे संसद की किसी भी बैठक में शामिल हुए बगैर सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। कमोवेश कहीं वही जिद फिर न कर बैठें। अब सबकी निगाहें हमारे लोकतंत्र के बेहद खूबसूरत उस मंदिर की ओर है, जिसमें अपनी जिद व देशविरोधी ताकतों को बढ़ाने वाले 77 वर्षीय सांसद क्या करेंगे। देश के आदर्श और देश के लिए कुर्बान होने वाले और देश के लिए मर मिटने वालों पर नफरती सवाल उठाने की इजाजत नहीं होनी चाहिए। साथ ही अब यह बेहद जरूरी हो गया है कि देशविरोधी किसी भी बकवास और शहीदों के अपमान की छूट किसी को भी नहीं मिलनी चाहिए।

(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)