Friday, September 20"खबर जो असर करे"

अब प्राइवेट कंपनी भी बनाएगी सेना के लिए हेलीकॉप्टर, रक्षा मंत्रालय जल्द देगी इजाजत

नई दिल्ली । डिफेंस मिनिस्ट्री ने रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया (dap) के मैनुअल में बदलाव करने का फैसला किया है। इससे प्राइवेट सेक्टर को इंडियन डिफेंस PSUS से बहुसंख्यक हिस्सेदारी के साथ सहयोग का मौका मिलेगा। साथ ही आवश्यक हथियार प्रणाली (weapon system) का निर्माण करने की भी इजाजत मिलेगी। इससे मिलिट्री हार्डवेयर सेक्टर (military hardware sector) में ‘आत्मनिर्भर भारत’ को बढ़ावा मिलेगा।

साउथ ब्लॉक के अधिकारियों के अनुसार, इस सहयोग का परीक्षण भारतीय मल्टी-रोल हेलीकॉप्टर (IMRH) के विकास और निर्माण में किया जाएगा, जो कि भारतीय सेना में शामिल सभी रूस निर्मित Mi-17 और Mi-8 हेलीकॉप्टरों की जगह लेगा। IMRH का वजन 13 टन होगा। यह भारतीय सशस्त्र बलों के साथ हवाई हमले, पनडुब्बी रोधी, जहाज-रोधी, सैन्य परिवहन और VVIP की भूमिका में होगा।

प्राइवेट कंपनियों में इसे लेकर उत्साह
भारतीय निजी क्षेत्र की कंपनियों ने परियोजना में भाग लेने के लिए पहले ही अपनी उत्सुकता दिखाई है और रक्षा मंत्रालय ने उन्हें अगले सात वर्षों में मैन्युफैक्चरिंग शुरू करने के लिए कहा है। फ्रांसीसी सफ्रान ने 8 जुलाई, 2022 को ही भारतीय एचएएल के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर कर दिया, ताकि नौसेना वैरिएंट समेत आईएमआरएच इंजन के विकास, उत्पादन और समर्थन के लिए नई ज्वाइंट वेंचर कंपनी बनाई जा सके।

25% प्रोडक्टर निर्यात करने की भी होगी इजाजत
अधिकारियों के अनुसार, निजी क्षेत्र की कंपनियों को भी अपने उत्पादन का 25 प्रतिशत तीसरे देशों को निर्यात करने और देश के लिए विदेशी मुद्रा जुटाने की इजाजत होगी। भारतीय सशस्त्र बलों को विकसित आईएमआरएच खरीदने के लिए कहा गया है जिसे अगले सात वर्षों में लागू करने की योजना है। निजी क्षेत्र की कंपनियों ने रक्षा मंत्रालय से यह आश्वासन भी मांगा है कि भारतीय सशस्त्र बलों को हेलीकॉप्टर खरीदना चाहिए, अगर प्रोडक्ट का निर्माण अगले पांच वर्षों में हो जाता है।

केंद्र के पास नहीं बचा था दूसरा विकल्प!
निजी क्षेत्र को 51 प्रतिशत हिस्सेदारी हासिल करने और भारतीय PSUs के साथ ज्वाइंट वेंचर बनाने की अनुमति देने का निर्णय लिया गया क्योंकि पीएसयू तय समय में डिलिवर करने में सक्षम नहीं थे, जिससे लागत बढ़ती चली गई। इस देरी के कारण मोदी सरकार के पास अन्य देशों से टेंडर या सरकार-से-सरकार मार्ग के जरिए आवश्यक मशीनों को खरीदने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था।