– आर.के. सिन्हा
पाकिस्तान में पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की गिरफ्तारी पर हैरान होने की जरूरत नहीं है। हालांकि वह रिहा हो चुके हैं। पाकिस्तान में इमरान से पहले भी कई प्रधानमंत्रियों को जेल की हवा खानी पड़ी है। सबसे पहले 1960 में सैनिक तानाशाह अयूब खान ने प्रधानमंत्री हुसैन शहीद सुहरावर्दी को जेल भेजा था। सुहारावर्दी देश के विभाजन से पहले बंगाल राज्य के प्रधानमंत्री थे। तब किसी राज्य के मुखिया को प्रधानमंत्री ही कहा जाता था। जब 1946 में जिन्ना के डायरेक्ट एक्शन के आह्वान के बाद कोलकाता में हिंसा भड़की तब सुहारावर्दी ही बंगाल के प्रधानमंत्री थे। कहते हैं कि उन्होंने हिन्दुओं के खिलाफ हिंसा को रुकवाने की कोई चेष्टा नहीं की थी। हिंसा को हवा जरूर दी।
खैर, उनके बाद जुल्फिकार भुट्टो को जालंधर में पैदा हुए जिया उल हक ने जेल भेजा। उसके बाद भुट्टो को फांसी भी हुई। भुट्टो के बाद उनकी बेटी बेनजीर भुट्टो को भी जेल जाना पड़ा। फिर उनकी हत्या भी हुई। नवाज शरीफ और शाहिद अब्बासी ने भी प्रधानमंत्री के रूप में जेल की सलाखों के पीछे वक्त बिताया है। यही पाकिस्तान का चरित्र है। वहां पर निर्वाचित प्रधानमंत्रियों को पद से हटाने और गिरफ्तारकिये जाने की परंपरा पुरानी है।
हां, इमरान खान की गिरफ्तारी के बाद पाकिस्तान जिस तरह से जलने लगा है, उस तरह के हालात पहले कभी देखने में नहीं आये। इस लिहाज से इमरान खान की गिरफ्तारी थोड़ी अलग जरूर है। इमरान खान को करप्शन के आरोपों में जेल में डालने के कारण पाकिस्तान जलने लगा है। सारे देश का गुस्सा इमरान खान के सियासी शत्रुओं से ज्यादा सेना पर है। अवाम का कहना है कि पाकिस्तान को कभी पटरी पर आने ही नहीं दिया सेना ने। उसने देश में जम्हूरियत की जड़ों को मजबूत नहीं होने दिया। यह पाकिस्तान की जनता की सोच में बहुत बड़े बदलाव का संकेत भी है।
एक दौर में पाकिस्तान की अवाम अपनी सेना के लिए जां निसार करती थी। पर अब उसे जन्नत की हकीकत समझ आने लगी है। उसके सामने सच्चाई आ गई है। उसे पता चल गया है कि सेना के पूर्वी पाकिस्तान में कत्लेआम के कारण पूर्वी पाकिस्तान बांग्लादेश बना। उसे समझ आ गया है कि सेना ने अकारण भारत पर 1965 और फिर 1971 में हमले किए और फिर मुंह की खाई।
पाकिस्तान ने पिछले साल देखा था जब इमरान खान की सरकार को रावलपिंडी में बैठे जनरलों ने, करप्ट पाकिस्तानी मुस्लिम लीग, पाकिस्तान पीपल्स पार्टी और कुछ छोटे राजनीतिक दलों को एक मंच में लाकर गिरवाया था। अब इमरान खान की गिरफ्तारी और वहां पर कठपुतली सरकार की गलत नीतियों के कारण महंगाई से बेहाल नाराज जनता सड़कों पर आ गई है। जनता ने सेना के दफ्तरों से लेकर सेना के आला अफसरों के बंगलों को आग के हवाले कर दिया है। यह तो एक दिन होना ही था। पाप का घड़ा फूटना ही था। प्रधानमंत्रियों की गिरफ्तारी से हटकर बात करें तो पाकिस्तान सेना ने बार-बार निर्वाचित सरकारों को गिराया है। अयूब खान, याहया खान, जिया उल हक और परवेज मुशर्रफ के समय पाकिस्तान में लोकतंत्र कराहता रहा।
पाकिस्तान की सेना ने देश के विश्व मानचित्र में सामने आने के बाद अहम राजनीतिक संस्थाओं पर भी प्रभाव बढ़ाना शुरू कर दिया। अयूब खान पर तो आरोप थे कि उन्होंने मोहम्मद अली जिन्ना की बहन फातिमा जिन्ना को ही मरवा दिया था। जिया उल हक ने पाकिस्तान को घोर कठमुल्ला मुल्क भी बनवाया। पाकिस्तान का शिक्षित समाज उन्हें इसके लिये कोसता है। हालांकि उनकी विमान हादसे में मौत में भी सेना का ही हाथ बताया जाता है। सेना को ही लियाकत अली खान और बेनजीर भुट्टो के कत्ल का भी जिम्मेदार माना जाता है। लियाकत अली खान 1946 में पंडित नेहरू के नेतृत्व में बनी अंतरिम सरकार में वित्त मंत्री थे। वे घोर हिन्दू विरोधी थे। उन्होंने 1946 में अंतरिम सरकार का बजट भी पेश किया था। उसे हिन्दू व्यापारी विरोधी बजट माना गया था।
इमरान खान आरोप लगाते रहे हैं कि हैं कि उनकी सरकार को सेना ने चलने नहीं दिया। वे तब के सेनाध्यक्ष कमर जावेद बाजवा को आड़े हाथ लेते भी रहे थे। वे कहते थे कि उनकी सत्ता की बागडोर उनके हाथ में नहीं थी। उनका इशारा सेना की तरफ ही था। पाकिस्तान में हालत बेहद नाजुक हैं। पाकिस्तान धधक रहा है। इमरान खान के हक में पंजाब, खैबर, बलूचिस्तान और सिंध उठ खड़े हुए हैं। एक तरह ये जन आन्दोलन इमरान के पक्ष में कम और सेना के विरुद्ध ज्यादा है। जाहिर है, पाकिस्तान जनता अब अपने ही देश के कथित रहनुमाओं की घटिया हरकतों के कारण थक गई है। वह जिन्हें महान समझती थी वे सब के सब गटर छाप निकले। उन्होंने पाकिस्तान को दुनिया का सबसे अंधकार में रहने वाला देश बना दिया।
(लेखक, वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं।)