– डॉ. दिलीप अग्निहोत्री
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्र के नाम संबोधन में पंच प्रण का उल्लेख किया था। इसके अंतर्गत विकसित भारत के रूप में आगे बढ़ाने, गुलामी के सभी निशान मिटाने, भारत की विरासत पर गर्व करने, देश की एकता और अखंडता को मजबूत करना और देश के प्रति नागरिकों के कर्तव्यों का संकल्प शामिल है। ‘काशी तमिल संगमम’ पंच प्रण विचार के अनुरूप है। नरेन्द्र मोदी ने भी इसे एक अनूठा कार्यक्रम बताया। उन्होंने कहा कि यह देश के लोगों में गहरे संबंधों को बनाए रखने का अवसर प्रदान करेगा। वस्तुतः भारतीय संस्कृति का दायरा व्यापक है। इसमें विविधता है। इसके साथ ही एकता के शास्वत सूत्र भी हैं। एकता एकात्मता का यह सिद्धांत भारतीय संस्कृति का प्राण है।
एकात्मकता के इस सिद्धांत को आधुनिक वैज्ञानिकों ने गॉड पार्टिकल के रूप में स्वीकार किया है, जबकि भारतीय मनीषियों ने युगों पहले इसको प्रमाणित किया था। उनके अनुसंधान अचंभित करते हैं। यह बताया गया कि जड़ और चेतन दोनों में परमात्मा है। जिसकी सत्ता होती है वह सत्य है। एकता एकात्मता को जानने के लिए सत्य को जानना होगा। जो जड़ में से चेतन को प्रकट कर दें, वही सत्य है। यहां प्रत्येक कण में परमात्मा का अंश माना गया। भारतीय ऋषि ज्ञान के उपासक थे। यहां ज्ञान के केंद्रों की सुदीर्घ शृंखला थी। ज्ञान अर्जित करते रहे और उसे दूसरों तक पहुंचाते रहे हैं। जिसने ज्ञान प्राप्त कर लिया, ब्रह्म को प्राप्त कर लिया। इसके साथ ही भक्ति का मार्ग भी था। प्रत्येक व्यक्ति अपनी प्रवृत्ति और रुचि के अनुरूप किसी भी मार्ग का अनुशरण कर सकता है। यह स्वतंत्रता केवल भारतीय संस्कृति में ही सम्भव रही है। इसमें सर्वे भवन्तु सुखिनः की कामना की गई। भारत आध्यात्मिक शक्ति के साथ ही अर्थशास्त्र, खगोल शास्त्र, विज्ञान और सामाजिक व्यवस्था के विषयों में भी यूरोप और अन्य सभ्यताओं से अधिक आगे रहा है।
राष्ट्र की संस्कृति का आधार कर्तव्यबोध पर आधारित है। श्रीराम ने वनवास के दिन ही संसार को निश्चरहीन करने का संकल्प लिया था। यह कर्तव्यबोध है। भारत तीर्थों, त्योहारों और मेलों का देश है। तीर्थ, त्योहार और मेले ही एकता और एकात्मता का मार्ग है। भारतीय मानवता और जीवन मूल्य सर्वश्रेष्ठ है। मेलों और त्योहारों से करोड़ों लोगों को रोजगार और रोटी मिलती है। कुटीर उद्योगों को बढ़ावा मिलता है। इंद्रेश कुमार का कहना है कि ईश्वर ही पूरी दुनिया को चलाता है। ईश्वर ही अलग-अलग धर्मों, जातियों,देशों के लोगों को उनकी अपनी भाषा, देश,परिवेश के ही सपने दिखाता है। सभी को अपनी भाषा में ही सपना आता है। दूसरी भाषा में नहीं। हर रात को हमें सपने में ईश्वर आकर कहते हैं कि आप भारतीय थे, हो और रहोगे। हम एक थे, हैं और रहेंगे। सभी धर्म, जाति, लिंग होने के बाद भी हम एक है भारतीय है। भोग में सम्मान हो सकता है,पूजा नहीं हो सकती। त्याग में पूजा होती है। इसी बल पर भारत विश्वगुरु बना। हम भोगवाद की दुनिया नहीं है। भारत के पर्व और त्योहार समूचे समाज और देश को एकजुट बनाए हुए हैं।
हमारी एकता-एकात्मता की यात्रा पर्वों और त्योहारों के माध्यम से सतत जारी है। भारतीय समाज के मन मस्तिष्क में स्पष्ट रूप से अंकित है कि हम सबके भीतर एक ही तत्व है। बोली,भाषा, जाति,धर्म,पहनावा भिन्न होने के बावजूद हम एक हैं। यही एकता एकात्मता का सूत्र है। भारत की संस्कृति ही जोड़ने की, एक सूत्र में पिरोने की संस्कृति है। काशी में पुरातन आध्यात्मिक संस्कृति के मिलन के क्षण ऐतिहासिक है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि काशी हो या तमिलनाडु, हमारी संस्कृति, आध्यात्मिकता और दर्शन की विरासत एक ही है। काशी तमिल संगमम इस एकीकृत राज्य की पवित्र और समृद्ध भावना को व्यक्त करने का एक विशिष्ट अवसर है। काशी तमिल संगमम का 16 दिसंबर को समापन होगा। इसका उद्देश्य देश के दो सबसे महत्वपूर्ण और प्राचीन शिक्षा केंद्रों काशी और तमिलनाडु के बीच सदियों पुराने संबंधों को फिर से उजागर और पुष्ट करना है। इसको एक उत्सव के रूप में मनाया जाएगा। काशी तमिल संगमम का उद्देश्य दोनों क्षेत्रों के विद्वानों, छात्रों, दार्शनिकों, व्यापारियों, कारीगरों, कलाकारों और जीवन के अन्य क्षेत्रों के लोगों को एक साथ लाने, अपने ज्ञान, संस्कृति और सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करने और एक दूसरे के अनुभव से सीखने का अवसर प्रदान कराना है। यह प्रयास राष्ट्रीय शिक्षा नीति के ज्ञान की आधुनिक प्रणालियों के साथ भारतीय ज्ञान प्रणालियों को एकीकृत करने पर जोर देने के अनुरूप है। आईआईटी मद्रास और बीएचयू कार्यक्रम की दो कार्यान्वयन एजेंसियां हैं।
छात्र, शिक्षक, साहित्य, संस्कृति, कारीगर, आध्यात्मिक, विरासत, व्यवसाय, उद्यमी, पेशेवर आदि बारह श्रेणियों के तहत तमिलनाडु के ढाई हजार से अधिक प्रतिनिधि वाराणसी पहुंचे हैं। प्रतिनिधि प्रयागराज और अयोध्या सहित वाराणसी और उसके आसपास के दर्शनीय स्थलों का भी दर्शन करेंगे। स्थानीय लोगों के लाभ के लिए वाराणसी में दो क्षेत्रों के हथकरघा, हस्तशिल्प, ओडीओपी उत्पादों, पुस्तकों, वृत्तचित्रों, व्यंजनों, कला रूपों, इतिहास, पर्यटन स्थलों आदि की एक महीने लंबी प्रदर्शनी लगाई जाएगी। काशी में उत्तर से लेकर दक्षिण तक विस्तृत भारतीय संस्कृति की विविधता में एकता परिलक्षित हो रही है। तमिलनाडु के 12 प्रमुख मठों के महंत उपस्थित हैं। काशी के हनुमान घाट को छोटा तमिलनाडु कहा जाता है। यहां अधिसंख्य लोग तमिलनाडु से आए हुए लोग ही बसे हुए हैं। यहां के मठ और मंदिर भी तमिलनाडु की शैली में बने हुए हैं।
(लेखक, स्वतंत्र टिपप्णीकार हैं।)