Friday, November 22"खबर जो असर करे"

‘प्रेसीडेंट ऑफ भारत’ से भी ‘इन्हें’ दिक्कत है

– विकास सक्सेना

आम चुनाव के लिए अभी से पक्ष और विपक्ष की बिसात बिछ चुकी है। लगातार दो लोकसभा चुनाव में करारी हार से बौखलाई कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने मिलकर एक नया गठबंधन तैयार किया है। इसका नाम आईएनडीआईए ‘ इंडिया’ रखा है। मजेदार बात यह है कि सिर्फ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा को सत्ता से बेदखल करने के मकसद से बना यह गठबंधन तीन बैठकें हो जाने के बाद भी न तो अपना नेता तय कर सका है, न नीति और न कार्यक्रम। केंद्र सरकार के खिलाफ माहौल तैयार करने के लिए मुद्दे तलाश पाने मे नाकाम विपक्षी नेता जो पहले संघ, भाजपा और मोदी के खिलाफ बयानबाजी करते थे अब वे सनातन हिन्दू धर्म, उसके प्रतीकों, संस्कृति और धर्म साहित्य के साथ भारत तक के विरोध में खड़े दिखाई दे रहे हैं। हालांकि सनातन भारतीय संस्कृति से उनकी घृणा कोई नई नहीं है, लेकिन अब तो कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों के नेता ‘प्रेसीडेंट ऑफ इंडिया’ के स्थान पर ‘प्रेसीडेंट ऑफ भारत’ लिखे जाने पर आपत्ति जता रहे हैं। इससे नई बहस शुरू हो गई है।

दरअसल लोकसभा चुनाव में भाजपा को हराने की जुगत में लगे विपक्षी दल सरकार के खिलाफ माहौल बनाने के लिए मुद्दे नहीं खोज पा रहे हैं। वे महंगाई, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे उठाने की कोशिश तो कर रहे हैं लेकिन इन मुद्दों पर जिन राज्यों में कांग्रेस और दूसरे विपक्षी दलों की सरकारें हैं उनका प्रदर्शन कई भाजपा शासित राज्यों के मुकाबले खराब है। इसके अलावा मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के दौरान जिस तरह की महंगाई और भ्रष्टाचार को देश के लोगों ने देखा है उसकी वजह से विपक्षी नेताओं की बातें आम लोगों को खास प्रभावित नहीं कर पा रही हैं। विपक्ष के नेताओं और तमाम बुद्धिजीवियों का मानना है कि हिन्दू समाज के मतदाताओं के जातीय पूर्वाग्रह से ऊपर उठकर मतदान करने की वजह से भाजपा ने 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावो और कई राज्यों के विधानसभा चुनाव में जीत हासिल की है। इसीलिए हाथरस कांड को आज तक याद दिलाया जाता है ताकि भाजपा को दलित विरोधी साबित किया जा सके।

ब्राह्मणों को भाजपा से दूर करने के लिए विकास दुबे जैसे दुर्दान्त अपराधी की भी ब्राह्मण पहचान उकेरने का प्रयास किया जा रहा है। मुजफ्फरनगर के एक स्कूल की विकलांग शिक्षिका ने परिजनों के कहने पर एक छात्र को दूसरे छात्र-छात्राओं से थप्पड़ लगवा दिए थे। इस घटना का वीडियो पीटने वाले छात्र के चाचा ने बनाया और वह खुद छात्र को मारने के लिए उकसा रहा था लेकिन इसके बावजूद भाजपा पर साम्प्रदायिक वातावरण खराब करने का आरोप मढ़ने के लिए कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी तक ने इस घटना को साम्प्रदायिक रंग देकर समाज में नफरत फैलाने का प्रयास किया।

मोदी हटाओ के सूत्र वाक्य से एकजुट हुए विपक्षी दलों को लग रहा है कि हिन्दू वोटों में बंटवारा किए बिना भाजपा को हरा पाना संभव नहीं है। इसीलिए विपक्षी दलों के तमाम नेता लगातार इस तरह की बयानबाजी कर रहे हैं जिससे हिन्दू समाज में जातीय विद्वेष बढ़ जाए। बिहार के शिक्षामंत्री चंद्रशेखर और समाजवादी पार्टी के महासचिव स्वामी प्रसाद मौर्य ने रामचरित मानस की चौपाई का उदाहरण देते हुए इसके खिलाफ जमकर अनर्गल बयानबाजी की। हालांकि तमाम मानस मर्मज्ञ विद्वानों ने अवधी भाषा में लिखी इस चौपाई का अर्थ स्पष्ट किया लेकिन वे उसे स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं। इनके उकसावे का नतीजा यह निकला कि जिस रामचरित मानस का हिन्दू समाज के लगभग प्रत्येक परिवार में पूरी श्रद्धा के साथ पाठ किया जाता है उसे कुछ लोगों ने फाड़ा और जलाया। स्वामी प्रसाद मौर्य तो हिन्दू समाज के खिलाफ जहर घोलते-घोलते इतना आगे चले गए कि उन्होंने हिन्दू धर्म को ही धोखा बता दिया। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के बेटे और सरकार में मंत्री उदयनिधि स्टालिन ने तो सनातन हिन्दू धर्म की तुलना कोरोना, मलेरिया और डेंगू बुखार से करते हुए यहां तक कह दिया कि इसका विरोध नहीं करना चाहिए बल्कि इसका उन्मूलन यानी खत्म करना होगा।

धर्मनिरपेक्षता के नाम पर सनातन धर्म, संस्कृति, साहित्य और उसके प्रतीकों के विरोध में अनर्गल बयानबाजी करते आए इन नेताओं ने ‘सिर तन से जुदा जैसे नारों’ से बेखौफ होकर हिन्दू समाज में बंटवारा करने के लिए लंबा जाल बुना है। मगर वह अपने ही जाल में उलझ रहे हैं। मोदी के हर फैसले का विरोध करने की जिद में वे सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक तक के सबूत मांगकर सेना के पराक्रम को नकारने का प्रयास करते हुए यहां तक कह देते हैं कि 300 आतंकी मारे गए या 300 दरख्त गिरे। इसी तरह रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने जब लड़ाकू विमान राफेल की आपूर्ति प्राप्त करने के लिए फ्रांस पहुंचकर भारतीय परम्परा के अनुसार पूजा अर्चना की तब भी इन नेताओं ने उनकी आलोचना की।

हमारी संसद के नए भवन के निर्माण की सेंट्रल बिस्टा परियोजना का विरोध किया जाता है और जब बीते मई महीने में इसके उद्घाटन के लिए भव्य समारोह का आयोजन किया गया तो इस ऐतिहासिक क्षण का साक्षी बनने के स्थान पर विपक्षी दलों ने इसका बहिष्कार करने का फैसला लिया। संसद में भारतीय सांस्कृतिक परम्परा के प्रतीक सेंगोल की स्थापना का विरोध किया गया। इस कार्यक्रम के जरिए भी जातीय विद्वेष का बढ़ाने के लिए अनुष्ठान कराने वाले पुजारियों की जाति पर सवाल उठाए गए लेकिन ये दांव उन नेताओं पर ही उल्टा पड़ गया।

कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी भले ही देश और दुनिया में घूमकर यह समझाने का प्रयास कर रहे हैं कि संघ, भाजपा और मोदी ने देश को नफरत का बाजार बना दिया है और वे इसमें मोहब्बत की दुकान खोले बैठे हैं। लेकिन वे खुद और उनके साथी जिस तरह के बयान देते हैं उनसे देश में नफरत का माहौल बन रहा है। उनके गठबंधन की साथियों के साथ उनकी पार्टी के नेता भी देश की सांस्कृतिक विरासत से इस हद तक घृणा करते हैं कि सरकार के फैसलों का विरोध करने के लिए कांग्रेस के एक नेता ने सड़क पर गोहत्या कर दी। वामपंथी दलों से जुड़े लोग सनातन संस्कृति के प्रति नफरत का इजहार करने के लिए बीफ पार्टियों का आयोजन करते हैं। भारत की एकता और अखण्डता को चुनौती देते हुए ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे’ जैसे देश विरोधी नारे लगाए जाते हैं और अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर इनका भी बचाव करने की शर्मनाक कोशिश की जाती हैं।

चंद्रयान 3 का विक्रम जिस स्थान पर चंद्रमा की सतह पर उतरा उसका नाम ‘शिवशक्ति’ रखने का विरोध सिर्फ इसलिए किया जा रहा है क्योंकि शिव और आदि शक्ति सनातन धर्म के प्रतीक हैं। लेकिन अब तो विपक्षी दल सारी सीमाएं लांघ कर भारत तक का विरोध करने पर आमादा हो गए हैं। वे नई दिल्ली में हो रहे जी-20 शिखर सम्मेलन के निमंत्रण पत्र पर ‘प्रेसीडेंट ऑफ इंडिया’ को ‘प्रेसीडेंट ऑफ भारत’ लिखने से खफा हैं। समझ नहीं आ रहा ये ‘ इंडियाया’ वाले ‘भारत’ का विरोध करके देशवासियों के दिलों में किस तरह जगह हासिल कर पाएंगे?

(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)