– डॉ. मयंक चतुर्वेदी
भारत में जब से कुछ राज्य सरकारें मदरसों में पढ़ाई जानेवाली शिक्षा को लेकर सचेत हुई हैं, अच्छी बात है कि तब से कई मदरसों में गणित और विज्ञान का ज्ञान भी दिया जाने लगा है। किंतु बड़ा प्रश्न यह है कि आखिर इन मदरसों के सर्वे किए जाने की बात बार-बार क्यों आती है? और जब उत्तर प्रदेश सरकार ऐसा करने जा रही है तो क्यों असदुद्दीन ओवैसी जैसे नेता इस सर्वे को छोटे एनआरसी की तरह बता रहे हैं? क्यों उन्हें इसमें मुस्लिमों का उत्पीड़न नजर आ रहा है? जबकि सच्चाई इसके इतर है। वास्तव में योगी सरकार की मंशा शिक्षा के सभी केंद्रों का आधुनिकीकरण कर देना है, जिसमें ये मदरसे भी शामिल हैं। यहां सरकार का कुल उद्देश्य यही है कि बच्चे जब मदरसे की शिक्षा प्राप्त कर बाहर आएं तो उन्हें मजहबी ज्ञान के अतिरिक्त आधुनिक शिक्षा का लाभ मिले और उन्हें कहीं भी कोई रोजगार का संकट ना झेलना पड़े।
वस्तुत: आज सभी को यह ठीक से समझना होगा कि किसी भी लोककल्याणकारी राज्य में ऐसा संभव नहीं है कि कुछ बच्चे ”नई शिक्षा नीति” के साथ जीवन में विकास करते हुए आगे बढ़ेंगे और कुछ परम्परागत शिक्षा के नाम पर योग्यता में सीमित रह जाएं। सर्वे का विरोध करनेवालों को यह भी ध्यान रखने की आवश्यकता है कि राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग ने यूपी के मदरसों का सर्वे करवाए जाने के लिए अनुरोध किया था, जिसके बाद ”यूपी मदरसा शिक्षा परिषद” के रजिस्ट्रार ने शासन को पत्र भेजा। उसके बाद शासन ने सभी जिलाधिकारियों को पत्र लिख कर सभी गैर मान्यता प्राप्त मदरसों का सर्वे करने का आदेश दिया है। सर्वेक्षण में मदरसे का नाम, उसका संचालन करने वाली संस्था का नाम, मदरसा निजी या किराए के भवन में चल रहा है, इसकी जानकारी, मदरसे में पढ़ रहे छात्र-छात्राओं की संख्या, पेयजल, फर्नीचर, विद्युत आपूर्ति तथा शौचालय की व्यवस्था, शिक्षकों की संख्या, मदरसे में लागू पाठ्यक्रम, मदरसे की आय का स्रोत और किसी गैर सरकारी संस्था से मदरसे की संबद्धता से संबंधित सूचनाएं इकट्ठा किया जाना है।
अब भला, इसमें किसी को क्यों आपत्ति होनी चाहिए? जब मदरसों में कोई भी गतिविधि ऐसी नहीं जोकि राज्य सरकार के सामने संदेह पैदा करने का कारण बन सकती है, फिर क्यों इस प्रकार से इनके सर्वे पर एतराज जताया जाना चाहिए? यहां एक विषय इससे जुड़ा बार-बार उठाया जा रहा है कि मदरसे संविधान के अनुच्छेद 30 के अंतर्गत हैं, इसलिए कोई भी सरकार अल्पसंख्यक संस्थाओं में अनुच्छेद 30 के तहत उनके अधिकारों में दखल नहीं दे सकती है, किंतु क्या इतना कहने भर से काम चल जाएगा?
वस्तुत: जो लोग संवधान के अनुच्छेद 30 की आड़ लेकर लोगों को भ्रमित करने एवं राज्य सरकार के खिलाफ अल्पसंख्यकों को खड़ा करने का प्रयास कर रहे हैं, वास्तव में उनसे यह अवश्य पूछा जाना चाहिए कि क्या आप सभी ने अनुच्छेद 30 के अंतर्गत दिए गए प्रावधानों को ठीक से पढ़ा है? इस अनुच्छेद में स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि देश की सरकार धर्म या भाषा को आधार मानकर किसी भी अल्पसंख्यक समूह द्वारा चलाए जा रहे शैक्षिक संस्थानों को वित्तीय मदद देने से इनकार नहीं कर सकती है या उनके साथ भेदभाव नहीं करेगी। इसका एक अर्थ यह भी हुआ कि सरकार द्वारा वित्तीय मदद उपलब्ध कराई जाना चाहिए, किंतु प्रश्न यही है कि जब सरकार को किसी मदरसे की सही स्थिति पता ही नहीं तब वह कैसे और किस आधार पर उस मदरसे को वित्तीय मदद उपलब्ध कराए?
अनुच्छेद के 30 (1) में कहा गया है कि सभी अल्पसंख्यकों को, चाहे वे धर्म या भाषा पर आधारित हों, अपनी पसंद के शिक्षण संस्थानों की स्थापना और प्रशासन करने का अधिकार होगा। इसका आशय यह नहीं है कि अल्पसंख्यक अनएडेड संस्थान, नियुक्तियां करते समय राज्य द्वारा निर्धारित पात्रता मानदंड अथवा योग्यता का पालन नहीं करेंगे। इन संस्थानों को केवल एक तर्कसंगत प्रक्रिया अपनाकर शिक्षकों या व्याख्याताओं और अन्य कर्मचारियों की नियुक्ति करने की स्वतंत्रता होगी। साथ ही ये संस्थान अपने नियमों को लागू करने के लिए स्वतंत्र हैं, किंतु उन्हें श्रम कानून, अनुबंध कानून, औद्योगिक कानून, कर कानून, आर्थिक नियम, आदि जैसे सामान्य कानूनों का पालन करना अनिवार्य है।
सुप्रीम कोर्ट का आर्टिकल 30 पर यह निर्णय यहां सभी को देखना और समझना चाहिए। मलंकारा सीरियन कैथोलिक कॉलेज केस (2007) के मामले में दिए गए एक फैसले में, देश की सबसे बड़ी अदालत ने साफ कहा है कि अनुच्छेद 30 के तहत अल्पसंख्यक समुदायों को दिए गए अधिकार केवल बहुसंख्यकों के साथ समानता सुनिश्चित करने के लिए हैं और इनका इरादा अल्पसंख्यकों को बहुसंख्यकों की तुलना में अधिक लाभप्रद स्थिति में रखने का नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा है कि इस बात के कोई सबूत नही हैं कि अल्पसंख्यकों को कानून से बाहर कोई भी गैर-कानूनी अधिकार दिया गया है। राष्ट्रीय सुरक्षा, राष्ट्रीय हित, सार्वजनिक व्यवस्था, भूमि, सामाजिक कल्याण, कराधान, स्वास्थ्य, स्वच्छता और नैतिकता आदि से संबंधित सामान्य कानूनों का पालन अल्पसंख्यकों को भी करना है और यह अन्य नागरिकों के समान उनके लिए भी अनिवार्य है।
इस पूरे प्रकरण में एनसीपीसीआर अध्यक्ष प्रियांक कानूनगो ने जो कहा है, यहां उसको भी समझ लेते हैं। उन्होंने कहा- ओवैसी सर झूठ बोल रहे हैं। अल्पसंख्यकों को गुमराह कर रहे हैं। युवाओं के अधिकारों के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। अनुच्छेद 30 का तर्क उत्तर प्रदेश मदरसों के सर्वे में लागू नहीं होगा, क्योंकि सरकार उन बच्चों के अधिकारों की संरक्षक है जो स्कूल से बाहर हैं। स्कूल न जाने वाले बच्चों का डेटा जानने के लिए हमें मदरसों के पास जाना होगा। सरकार को बच्चों की स्थिति के बारे में पूछने और उन्हें शिक्षा प्रणाली में फिर से शामिल करने का पूरा अधिकार है। हमारी रिपोर्ट से पता चलता है कि 1.10 करोड़ से अधिक बच्चे गैरमान्यता प्राप्त मदरसों में पढ़ रहे हैं, इसलिए राज्य को पूरा अधिकार है उनके बारे में जानने का। साथ ही यूपी के अल्पसंख्यक कल्याण राज्यमंत्री दानिस अंसारी ने भी स्पष्ट कर दिया है कि मदरसों का सर्वे सिर्फ इसलिए किया जा रहा है ताकि वहां अच्छी पढ़ाई हो। विज्ञानयुक्त पढ़ाई हो।
कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि यह सर्वे मुस्लिम बच्चों की भलाई के लिए है। मदरसों में सेलरी कैसे दी जा रही है, इंफ्रास्ट्रक्चर कैसा है, इन सभी बातों की जानकारी राज्य को होना आवश्यक है। सरकार को पता होना चाहिए कि ग्राउंड पर क्या चल रहा है, तभी वह उनकी खुलकर मदद कर सकती है। वास्तव में योगी सरकार अल्पसंख्यक समाज और मुस्लिम युवाओं की भलाई के लिए लगातार काम कर रही है। यह आज सभी को न केवल समझना होगा बल्कि इसे खुले मन से स्वीकारना भी होगा। हर विषय को राजनीति से जोड़ देना ठीक नहीं।
(लेखक, बहुभाषी संवाद समिति हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध वरिष्ठ पत्रकार हैं।