Friday, November 22"खबर जो असर करे"

अध्यादेश पर विपक्षी गठबंधन की फजीहत

– डॉ. दिलीप अग्निहोत्री

अध्यादेश पर आम आम आदमी पार्टी का साथ देना विपक्षी गठबंधन आईएनडीआईए पर भारी पड़ा। संसद में उसे असहज स्थिति का सामना करना पड़ा क्योंकि चर्चा के दौरान आबकारी घोटाला, अरविंद केजरीवाल के शीशमहल निर्माण घोटाला, इससे सम्बन्धी फाइलों को गायब करने के प्रयास आदि भी चर्चा में आ गए। यह भी पता चला कि दिल्ली विधानसभा और केजरीवाल मंत्रिमण्डल की बैठकें भी संवैधानिक भावना के अनुरूप नहीं होती थी। इसमें केजरीवाल की मनमानी व्यवस्था लागू रहती थी। इन तथ्यों के सामने आने पर अध्यादेश का विरोध करने वालों को शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा। संदेश यह गया कि विपक्षी गठबंधन आईएनडीआईए आप सरकार के कथित घोटालों और अलोकतांत्रिक तौर-तरीकों का समर्थन कर रहा है, उसका बचाव कर रहा है।

विपक्षी आईएनडीआईए पर नरेन्द्र मोदी ने जो आरोप लगाए थे, वह इनकी अपनी हरकतों से प्रमाणित हो गए। मोदी ने कहा कि ये पार्टियां घोटालों से एक-दूसरे को बचाने के लिए एकजुट हुई हैं। जब से संसद का मानसून सत्र प्रारंभ हुआ, तब से विपक्ष मणिपुर को लेकर हंगामा कर रहा है लेकिन आम आदमी पार्टी के समर्थन में हंगामा छोड़ कर संसद की कार्यवाही में शामिल हो गए। कांग्रेस के नेता जानते थे कि उन्होंने दिल्ली के लिए जो संवैधानिक प्रावधान किए थे, अध्यादेश उसी के अनुरूप था। केजरीवाल भी दिल्ली की संवैधानिक व्यवस्था को समझते थे। इसे समझते हुए ही उन्होंने बेशुमार चुनावी वादे किए थे। उन्होंने कभी नहीं कहा कि दिल्ली पूर्ण राज्य होगा तभी वह सब वादे पूरे करेंगे। वह पूर्ण राज्य क्यों चाहते थे, यह भी कुछ घण्टों में पता चल गया। फाइलों को गायब करने और जांच को प्रभावित करने के काम किए गए। इसके चलते ही केंद्र सरकार को अध्यादेश लाना पड़ा।

विपक्षी गठबंधन को इस पर अपनी स्थिति स्पष्ट करनी चाहिये। क्या वह आप सरकार के इस कार्य से सहमत थी। अन्यथा अध्यादेश का विरोध क्यों कर रही थी। देश के किसी भी केंद्र शासित राज्य को पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं मिला है। केजरीवाल को भी यह संवैधानिक स्थिति स्वीकार करनी चाहिए। आम आदमी पार्टी ने विपक्षी गठबंधन में शामिल होने की शर्त लगाई थी। उसका कहना था कि दिल्ली सम्बन्धी अध्यादेश पर कांग्रेस उसका समर्थन करेगी तभी वह गठबंधन का हिस्सा बनेगी। पहले कांग्रेस इस विषय पर असमंजस में थी। दिल्ली उसी संवैधानिक व्यवस्था से संचालित हो रहा था, जिसका प्रावधान कांग्रेस की सरकार ने किया था। इसके अनुरूप कांग्रेस की शीला दीक्षित ने पंद्रह वर्षों तक सरकार चलाई थी।

दिल्ली सरकार संशोधन विधेयक से पारित हो गया। यह निर्णय संविधान के अनुरूप था। गृहमंत्री अमित शाह ने केजरीवाल सरकार पर गंभीर आरोप लगाए। कहा कि आप के निशाने पर सतर्कता विभाग था। जिससे घोटालों की जांच को प्रभावित किया जाए। उसके पास आबकारी घोटाले की फाइल, मुख्यमंत्री के नये बने आवास को अवैध रूप से बनाये जाने से संबंधित फाइल, बीएसईएस से संबंधित फाइल, एक कंपनी पर इक्कीस हजार करोड़ रुपये के बकाया होने के बावजूद उसे फिर फंड देने से संबंधित फाइल जांच के लिए पड़ी हैं।

केजरीवाल सरकार देश की ऐसी सरकार है, जिसके कार्यकाल में विधानसभा का सत्रावसान ही नहीं होता। जब राजनीतिक भाषण देना होता है तो विधानसभा का आधे दिन का सत्र बुला लिया जाता है। 2021 से 2023 के बीच अब तक हर साल केवल एक-एक सत्र बुलाए गये हैं। वह भी बजट के लिए। इसी तरह केजरीवाल सरकार ने वर्ष 2022 में कैबिनेट की मात्र छह बैठकें बुलायीं, वर्ष 2023 में केवल दो ही बैठकें बुलायीं। यह बैठकें भी मुख्यत: बजट को लेकर थीं। पिछले दो वर्षों से विधानसभा में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की एक भी रिपोर्ट सदन के पटल पर नहीं रखी। अगर विपक्ष को मणिपुर या देश के किसानों और अन्य हितों की चर्चा होती तो वे इसी सत्र में पारित नौ विधेयकों की चर्चा में जरूर भाग लेते क्योंकि वे विधेयक भी महत्वपूर्ण थे। विपक्ष को केवल अपना गठबंधन टूटने का डर था और वे इस विधेयक पर चर्चा में केवल अपना गठबंधन बचाने के लिए आये हैं।

आम आदमी पार्टी का जन्म नई राजनीति के दावे के साथ हुआ था। जिसमें ईमानदारी और वीआईपी कल्चर की समाप्ति का वादा किया गया था। इसके लिए अरविंद केजरीवाल ने एक प्रकार का मोहक तिलिस्म भी बनाया था। कभी अपनी चर्चित नीली वैगन आर कार की सवारी, ऑटोरिक्शा की सवारी, मेट्रो की सवारी, ये सब उनके इसी तिलिस्म के हिस्से थे। इनके माध्यम से केजरीवाल आम लोगों के सामने नई राजनीति की इबारत लिखने की अपनी कोशिश का प्रदर्शन कर रहे थे। दावा किया गया कि पार्टी की मोहल्ला समिति और दिल्ली के आम लोग ही पार्टी की नीतियों या फैसलों के बारे में सभी फैसले लेंगे। अन्ना हजारे के जनलोकपाल आंदोलन की विरासत का भी आम आदमी पार्टी को भरपूर फायदा मिला। लेकिन सत्ता में पहुँच कर इन्होंने असली रंग दिखाना शुरू कर दिया। केजरीवाल ने अपने आवास के सौंदर्यीकरण पर 45 करोड़ रुपये खर्च किए थे। कांग्रेस ने दावा किया है कि केजरीवाल के बंगले पर 45 करोड़ नहीं बल्कि 171 करोड़ रुपये खर्च किए गए। सौंदर्यीकरण पर उस वक्त यह खर्च किया गया, जब दिल्ली कोविड महामारी से जूझ रही थी।

केजरीवाल ने जिन पर घोटालों के आरोप लगाए थे, वे विपक्षी गठबंधन में शामिल हैं। वैसे आप सरकार पर भी अब उसी तरह के आरोप हैं। आबकारी विभाग की अनियमितता ने सरकार की छवि पूरी तरह धूमिल कर दी है। केजरीवाल की आबकारी नीति सवालों के घेरे में है। दो वर्ष पहले चार हजार करोड़ राजस्व मिला। इसके अगले वर्ष 33 सौ करोड़ राजस्व प्राप्त हुआ। इस वर्ष करीब डेढ़ सौ करोड़ का ही राजस्व मिला। पिछले साल से लगभग तीन हजार करोड़ से ज्यादा का नुकसान हुआ। भाजपा ने कहा कि दिल्ली सरकार शराब ज्यादा बिकने का प्रचार नहीं कर सकती लेकिन एक पेटी के साथ एक फ्री बिक रही थी, इसका प्रचार किया जा रहा था और बाहर से आकर भी लोग खरीद रहे थे। उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना ने दिल्ली सरकार की एक्साइज पॉलिसी लागू करने के मामले में हुई कथित गड़बड़ियों की सीबीआई से जांच कराने की सिफारिश की थी। उपराज्यपाल ने इसके लिए चीफ सेक्रेटरी की रिपोर्ट को आधार बनाया था। दिल्ली सरकार ने पिछले साल ही अपनी नई एक्साइज पॉलिसी लागू की थी।

अमित शाह के जवाब से विपक्षी गठबंधन की कलई खुल गई है। कांग्रेस सरकार के समय 69 वें संशोधन अधिनियम, 1992 में दो नए अनुच्छेद 239AA और 239AB जोड़े गए थे। जिसके अंतर्गत केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली को विशेष दर्जा दिया गया। अनुच्छेद 239AA में प्रावधान है कि केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली को अब राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली कहा जाएगा और इसके प्रशासक को उपराज्यपाल के रूप में जाना जाएगा। यह दिल्ली के लिए एक विधानसभा का निर्माण भी करता है, जो सार्वजनिक व्यवस्था, भूमि और पुलिस सम्बन्धी मामलों को छोड़ कर राज्य सूची और समवर्ती सूची के तहत विषयों पर कानून बना सकती है।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)