– आर.के. सिन्हा
बीते कुछ दिनों में उत्तर प्रदेश के कुख्यात माफिया अतीक अहमद के पुत्र असद और उसके दोस्त का मुठभेड़ में मारा जाना और उसके कुछ ही समय बाद पुलिस पहरे में आ रहे अतीक अहमद की उसके भाई अशरफ के साथ की गई हत्या की घटनाओं से सबका दिल दहल गया है। इन दोनों सनसनीखेज घटनाओं की जांच के न्यायिक आदेश दे दिए गए हैं। बेशक, अतीक अहमद के मारे जाने के साथ ही एक दहशत के युग का अंत हुआ है पर किसने सोचा होगा प्रयागराज में तांगा चलाने वाले शख्स का बेटा देखते–देखते अपराध के संसार में खौफ का पर्याय बन जाएगा। वह जिसकी संपत्ति पर चाहेगा कब्जा जमा लेगा। अगर कोई उसे अपनी संपत्ति देने में आनाकानी करेगा तो वह उसका या उसके बहन-बेटियों का अपहरण करवा लेगा। जरूरत पड़ने पर उस शख्स को मौत के घाट भी उतरवा देना उसके लिए तो मामूली बात थी।
अफसोस इस बात को लेकर होता है कि अतीक अहमद को मुलायम सिंह यादव और फिर अखिलेश यादव का लगातार और खुला समर्थन मिलता रहा। अपने को गांधीवादी समाजवादी कहने वाले मुलायम सिंह यादव का नाम अतीक अहमद के साथ जुड़ना साफ करता है कि भारतीय राजनीति का चेहरा कितना बदबूदार हो गया है। अभी सोशल मीडिया पर अतीक के घर पर उसके विशाल ग्रेट डेन को प्यार से सहलाते हुए समाजवादी पार्टी सुप्रीम मुलायम सिंह का चित्र वायरल हो रहा है । यकीन मानिए कि कोई भी इंसान अपराध के संसार में अतीक अहमद तब ही बनता है जब उसे किसी रसूखदार का राजनीतिक प्रश्रय हासिल होता है। अतीक अहमद को यह राजनीतिक प्रश्रय मिला जिसके चलते वह कानून को अपने हाथ में लेता रहा। अतीक अहमद की अब कुछ फोन पर की गई वार्ताएं सामने आ रही हैं जो वे फिरौती या फिर किसी की संपत्ति को कब्जाने के लिए किया करता था। उन्हें सुनने से लगता है कि वह फिरौती की रकम पूरे अधिकार के साथ मांगा करता था। उसके हुक्म को न मानने वालों को गंभीर परिणाम भुगतने के बारे में भी कड़क आवाज में बता दिया करता था।
अब जरा देख लें कि जनतंत्र का यह दुर्भाग्य है कि इस तरह का शख्स पांच बार उत्तर प्रदेश की विधानसभा का सदस्य रहा। वह लोकसभा की उस फूलपुर सीट से सदस्य रहा जहां से कभी पंडित जवाहरलाल नेहरू चुनाव लड़ा करते थे। इसी अतीक अहमद के वोट से 2008 में केंद्र में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) की सरकार बची थी। उस वक्त तत्कालीन सरकार और अमेरिका के साथ उसके परमाणु समझौते पर संकट के बादल मंडरा रहे थे, तब अतीक अहमद ने यूपीए सरकार बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उस वक्त अतीक अहमद समाजवादी पार्टी का सांसद था। उस वक्त परमाणु समझौते के विरोध में यूपीए सरकार को बाहर से समर्थन दे रहे वामदलों ने अपने हाथ खींच लिए थे।
ऐसे में विपक्ष तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव ले आया था। उस वक्त अतीक अहमद सहित छह अपराधी सांसदों को विश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग से 48 घंटे पहले विभिन्न जेलों से छोड़ा गया था, ताकि वे यूपीए सरकार के पक्ष में मतदान कर सकें। अतीक अहमद भी उन छह बाहुबलियों में से एक था, जिसने यूपीए सरकार को गिरने से बचाया था। क्या तब डॉ. मनमोहन सिंह या सोनिया गांधी को पता नहीं था कि अतीक अहमद कितने दूध के धुले हैं ?
अतीक अहमद खुद ही अपराध की दुनिया में सक्रिय नहीं हुआ। उसने अपने पुत्रों को भी अपराध के संसार में धकेल दिया। उसने अपने पुत्र असद को बचपन से ही रिवाल्वर चलाने की ट्रेनिंग देनी शुरू कर दी थी। आपको इस तरह का पिता आसानी से नहीं मिलेगा जो अपने बच्चों को ही अपराधी बनने के लिए प्रेरित करे। आखिर उसके आतंक का अंत का हो गया। उसे अंततः मिला क्या। उसे सरेआम उसके भाई के साथ मार दिया गया। जरा सोचिए कि चार दशकों तक अपराध और राजनीति की मदद से लगभग 1400 करोड़ रुपये से ज्यादा की संपत्ति जब्त करने वाले का कितना खराब हश्र हुआ। उसका पूरा परिवार बर्बाद हो गया। यूपी एसटीएफ की टीम ने अतीक अहमद के तीसरे नंबर के बेटे असद और करीबी शूटर मोहम्मद गुलाम को मुठभेड़ में मार गिराया। दोनों ही उमेश पाल हत्याकांड में वांटेड और पांच-पांच लाख के इनामी थे।
लोग यह भी सवाल उठा रहे हैं कि आखिर पुलिस की सुरक्षा में अतीक कैसे मारा गया I यह सवाल उठाने वाले यह कैसे भूल जाते हैं कि उमेश पाल को जब अतीक के बेटे ने मारा तब वह भी पुलिस की सुरक्षा में था I जब इस देश के दो-दो प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और राजीव गांधी मारे गये थे तब तो वे केन्द्रीय बलों की सुरक्षा में थे।
पहले असद और उसके दोस्त के मुठभेड़ में मारे जाने और फिर अतीक अहमद और उसके भाई के कत्ल के बाद कुछ स्वार्थी तत्वों ने फिर से विलाप शुरू कर दिया है। ये अतीक अहमद को खूंखार अपराधी नहीं मान रहे हैं। ये उसे एक मुसलमान नेता बताकर दुखी हैं। कह रहे हैं कि भारत में मुसलमानों के साथ दोयम दर्ज का व्यवहार हो रहा है। उनके साथ जुल्मों- सितम हो रहा है। याद कीजिए कि मुंबई बम धमाकों के साजिशकर्ता याकूब मेमन को तो नायक बनाने की भी इसी तरह से चेष्टा की गई थी। उसे सुप्रीम कोर्ट से मौत की सजा हुई, तो उसे बचाने के लिए देश के बहुत सारे स्वयंभू उदारवादी-सेक्युलरवादी सामने आ गए थे। उसकी शव यात्रा में हजारों लोग शामिल होते हैं। किसे नहीं पता कि उसके जनाजे में कौन-कौन शामिल हुआ था। हद तो तब हो गई थी जब उसकी कब्र को सजाया गया था। उसका इस तरह से रखरखाव होता रहा है कि मानो वह कोई महापुरुष हो।
मुंबई में याकूब मेमन की कब्र के ‘सौंदर्यकरण’ करने के ठोस सुबूत मिल चुके हैं और उसे एक इबादत गाह बदलने की कोशिश की गई थी। इस तरह के आरोपों की सच्चाई जब सबके सामने आई तो मुंबई पुलिस ने आतंकवादी की कब्र के चारों ओर लगाई गई ‘एलईडी लाइट’ को हटाया। याकूब मेमन को 2015 में नागपुर जेल में फांसी दी गई थी। उसे दक्षिण मुंबई के बड़ा कब्रिस्तान में दफनाया गया था। अब अतीक अहमद को महापुरुष साबित किया जा रहा है। गरीबों का मसीहा कहा जा रहा है। पर सच यह है कि वह अपराधी था। भगवान न करे कि उसके जैसा शख्स फिर से पैदा न हो।
(लेखक, वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं।)