– योगेश कुमार गोयल
धूम्रपान के आदी मित्रों और परिजनों को धूम्रपान छोड़ने के लिए मदद पाने को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से प्रतिवर्ष मार्च के दूसरे बुधवार को ‘नो स्मोकिंग डे (धूम्रपान निषेध दिवस)’ मनाया जाता है। इस वर्ष यह दिवस 13 मार्च को मनाया जा रहा है। यह दिवस पहली बार 1984 में आयरलैंड गणराज्य में मनाया गया था। प्रतिवर्ष यह दिवस एक खास विषय के साथ मनाया जाता है, जो इस साल ‘तंबाकू उद्योग के हस्तक्षेप से बच्चों की सुरक्षा’ विषय के साथ मनाया जा रहा है। दरअसल यह गहन चिंतन का विषय है कि पिछले कई दशकों में दुनियाभर में हुए अनेक अध्ययनों में यह प्रमाणित हो चुका है कि धूम्रपान हर दृष्टि से सेहत के लिए हानिकारक है लेकिन जब तमाम जानकारियों और तथ्यों के बावजूद हम अपने आसपास बच्चों को भी धूम्रपान करते देखते हैं तो स्थिति बेहद चिंताजनक प्रतीत होती है।
ऐसे बच्चों के मन-मस्तिष्क में धूम्रपान को लेकर कुछ गलत धारणाएं विद्यमान होती हैं, जैसे धूम्रपान से उनके शरीर में चुस्ती-फुर्ती आती है, उनका मानसिक तनाव कम होता है, मन शांत रहता है, व्यक्तित्व आकर्षक बनता है, कब्ज की शिकायत दूर होती है आदि-आदि। चूंकि बच्चों का मन कोमल होता है, इसीलिए तमाम वैज्ञानिक शोधों के बावजूद वे यह समझने की स्थिति में नहीं होते कि धूम्रपान करने से उनके अंदर ऐसी कोई ताकत पैदा नहीं होने वाली कि देखते ही देखते वो किसी ऊंचे पर्वत पर छलांग लगा सकें या महाबली पवनपुत्र हनुमान की भांति विशाल समुद्र लांघ जाएं। वास्तविकता यही है कि धूम्रपान एक ऐसा धीमा जहर है, जो धीमे-धीमे इसका सेवन करने वाले व्यक्ति का दम घोंटता है और बच्चों पर तो इसका प्रभाव बहुत घातक होता है। धूम्रपान शरीर में कई प्रकार की प्राणघातक बीमारियों को जन्म देता है और ऐसे व्यक्ति को धीमी गति से मृत्युशैया तक पहुंचा देने का माध्यम बनता है।
दुनियाभर में धूम्रपान के कारण हर साल 70 लाख से भी ज्यादा मौतें हो रही हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनियाभर में होने वाली मौतों में से हर 5 में से 1 पुरुष की मौत धूम्रपान के कारण हो रही है। विभिन्न सर्वेक्षणों के अनुसार माना गया है कि विकसित देशों में चालीस फीसदी से ज्यादा पुरुष और इक्कीस फीसदी से ज्यादा स्त्रियां धूम्रपान करती हैं जबकि विकासशील देशों में सिर्फ आठ फीसदी स्त्रियों को इसकी लत लगी है तथा पुरुषों की संख्या पचास फीसदी से अधिक है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार तम्बाकू के सेवन के कारण प्रतिदिन करीब आठ हजार व्यक्ति फेफड़ों के कैंसर के शिकार होकर मर जाते हैं। संगठन का अनुमान है कि यदि दुनियाभर में धूम्रपान की लत ऐसे ही बढ़ती रही तो बहुत जल्द धूम्रपान के कारण पचास करोड़ लोग मारे जा चुके होंगे और अगले तीस वर्ष में केवल गरीब देशों में ही धूम्रपान से मरने वालों की संख्या दस लाख से बढ़कर सत्तर लाख तक पहुंच जाएगी।
संगठन का अनुमान है कि प्रतिवर्ष विश्वभर में आठ हजार से ज्यादा नवजात शिशु धूम्रपान की वजह से असमय काल के ग्रास बन जाते हैं। आंकड़ों से पता चलता है कि सभी प्रकार के कैंसर में से करीब 40 फीसदी का कारण धूम्रपान ही होता है। धूम्रपान वास्तव में एक ऐसा धीमा जहर है, जो हमारे शरीर में धीरे-धीरे प्राणघातक रोगों को जन्म देता है और व्यक्ति को धीमी गति से मृत्यु शैया पर पहुंचा देता है। धूम्रपान कितना खतरनाक है, इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि सिगरेट के खतरनाक धुएं से करीब 50 टन तांबा, 15 टन शीशा, 11 टन कैडमियम तथा कई अन्य खतरनाक रसायन वातावरण में घुलते हैं। डब्ल्यूएचओ का कहना है कि कैंसर, हृदय रोग, सांस की बीमारी, डायबिटीज इत्यादि बीमारियों में भी धूम्रपान काफी खतरनाक हो सकता है, इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को धूम्रपान से बचना चाहिए।
सिगरेट के धुएं में पोलिनियम 210, कार्बन मोनोक्साइड, कार्बन डाइआक्साइड, निकल, पाईरीडिन, बेंजीपाइरीन, नाइट्रोजन आइसोप्रेनावाइड, अम्ल, क्षार, निकोटीन, टार, जिंक, हाइड्रोजन साइनाइड, कैडमियम, ग्लायकोलिक एसिड, सक्सीनिक एसिड, एसीटिक एसिड, फार्मिक एसिड, मिथाइल क्लोराइड इत्यादि चार हजार से भी ज्यादा घातक रासायनिक तत्व विद्यमान होते हैं, जो मानव शरीर को विभिन्न प्रकार से नुकसान पहुंचाते हैं। गर्भवती महिलाओं द्वारा धूम्रपान किए जाने से कम लम्बाई और कम वजन के बच्चों का जन्म, बच्चों में अपंगता तथा बाल्यावस्था में ही घातक हृदय रोग जैसी बीमारियों का खतरा काफी बढ़ जाता है। प्रतिदिन बीस सिगरेट तक पीने वाली गर्भवती महिला के बच्चे की मृत्यु होने की संभावना सामान्य के मुकाबले बीस फीसदी बढ़ जाती है जबकि बीस से अधिक सिगरेट पीने पर यह खतरा पैंतीस फीसदी तक हो जाता है।
अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन के मुताबिक किसी दूसरे के धूम्रपान के धुएं के प्रभाव से दिल के दौरे से होने वाली मौतों की आशंका तीस फीसदी बढ़ जाती है। बहरहाल, धूम्रपान छोड़ने के फायदों के बारे में विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि धूम्रपान छोड़ने के सिर्फ बीस मिनट के अंदर उच्च रक्तचाप में गिरावट आती है तथा बारह घंटे के बाद रक्त में कार्बन मोनोक्साइड के विषैले कणों का स्तर सामान्य हो जाता है। दो से बारह सप्ताह में फेफड़ों की कार्यक्षमता में तेजी से वृद्धि होती है तथा एक से नौ माह में खांसी तथा श्वसन संबंधी समस्याएं कम हो जाती हैं। संगठन के मुताबिक मनुष्य के फेफड़ों में जादुई क्षमता होती है, जो धूम्रपान से होने वाले कुछ नुकसान को स्वयं ठीक कर देती है और जो व्यक्ति धूम्रपान छोड़ देते हैं, उनकी चालीस फीसदी कोशिकाएं ऐसे लोगों की तरह ही हो जाती हैं, जिन्होंने कभी धूम्रपान नहीं किया।
(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)