– डॉ. दिलीप अग्निहोत्री
साल 2014 के आम चुनाव में नरेन्द्र मोदी ने काशी में कहा था- ‘मुझे मां गंगा ने बुलाया है।’ वो लंबे समय से पतित-पावन गंगा नदी को निर्मल और अविरल बनाने का सपना देख रहे थे। काशी और हल्दिया को उन्होंने जल मार्ग से जोड़ने की बात कही थी। आजादी के बाद पहली बार नमामि गंगे की सूत्रधार मोदी सरकार ने जल परिवहन की शुरुआत की है। यह काशी के साथ ही पूरे उत्तर प्रदेश के लिए उपलब्धि है। इतना ही नहीं इसका फायदा पश्चिम बंगाल तक दिखाई देने लगा है। जितना सामान लेकर पानी का पहला जहाज आया उतना समान लाने के लिए सोलह ट्रक लगते। यह जल परिवहन के क्षेत्र में क्रांतिकारी कदम है। यह कार्य आजादी के बाद से ही करना चाहिए था। लेकिन इस ओर ध्यान नहीं दिया गया। वर्तमान सरकार द्वारा सैकड़ों नेशनल जल मार्ग पर कार्य किया जा रहा है। बिहार , झारखंड, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, सभी जल मार्ग से जुड़ रहे हैं। व्यापार और पर्यटन को बढ़ावा मिल रहा है।
प्रधानमंत्री मोदी वाराणसी में गंगा के उस पार रामनगर में नवनिर्मित बहुउद्देशीय टर्मिनल राष्ट्र को समर्पित कर चुके हैं। प्रधानमंत्री कोलकाता से चले मालवाहक जलयान एमवी रबीन्द्रनाथ टैगोर की अगवानी भी कर चुके हैं। आजादी के बाद यह पहला अवसर था, जब कोई जल मालवाहक इतना सामान लेकर इतनी दूरी तक आया था। मोदी ने जल परिवहन के विकास की असीम संभावनाओं को देखते हुए जो नीतिगत फैसले किए हैं, उनकी योजनाओं को रिकार्ड समय में पूरा किया जा रहा है। वाराणसी का मल्टी मॉडल टर्मिनल परिवहन के क्षेत्र में गेम चेंजर साबित हुआ। जल मार्ग विकास परियोजना के तहत बने इस टर्मिनल को हल्दिया-वाराणसी के बीच राष्ट्रीय जलमार्ग एक पर विकसित किया गया है। इस टर्मिनल के जरिये दो हजार टन के बड़े जहाजों की भी आवाजाही मुमकिन है।
मल्टी मॉडल टर्मिनल जल परिवहन को बढ़ावा देने की महत्वाकांक्षी परियोजना का हिस्सा था। यह गंगा नदी पर बने पहले तीन ऐसे टर्मिनल में से था। बनारस की कनेक्टिविटी को मजबूत किया गया है। इससे पूर्वांचल के अलावा पश्चिम बंगाल, बिहार और छत्तीसगढ़ जाने का रास्ता आसान हुआ है। भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण द्वारा हल्दिया से प्रयागराज तक जलमार्ग विकसित हुआ है। परियोजना के तहत पहले बंदरगाह का शुभारंभ भी मोदी ने किया। गंगा में जल मार्ग से बिहार, छत्तीसगढ़ के रास्ते पश्चिम बंगाल तक उद्योग को भी प्रोत्साहन मिलेगा। देश में पैंसठ प्रतिशत माल की ढुलाई सड़क मार्ग से और सत्ताईस प्रतिशत रेलवे के जरिये होती है।
जल परिवहन का हिस्सा केवल आधा प्रतिशत है। इसके विपरीत विकसित देशों में यह करीब दस प्रतिशत है। जल परिवहन ढाई गुना सस्ता पड़ेगा। प्रदूषण भी नहीं होगा। सड़क मार्ग से एक टन प्रति किलोमीटर माल भाड़ा ढाई रुपये पड़ता है। रेल का माल भाड़ा एक रुपया चालीस पैसे है। जल परिवहन पर यह शुल्क केवल एक रुपया छह पैसे होगा। सड़क मार्ग से एक लीटर ईंधन में प्रति किमी चौबीस टन और रेलवे के जरिये 85 टन माल की ढुलाई होती है। जबकि जल परिवहन में एक लीटर से प्रति किमी करीब सौ टन माल ले जाया जा सकता है। इस जलमार्ग पर वाराणसी के अलावा ग़ाज़ीपुर, कालूघाट, साहिबगंज, त्रिवेणी और हल्दिया में बहु उद्देशीय टर्मिनल होंगे। जलयानों की मरम्मत और रखरखाव के लिए डोरीगंज बिहार में एक केंद्र होगा। पांच स्थानों पर रोल ऑन रोल रो-रो केंद्र होंगे जो सड़क से जल टर्मिनल तक माल की आवाजाही की सुविधा प्रदान की गई थी।
वाराणसी के रविदास घाट पर गंगा नदी में तैयार की गई जेट्टियों का लोकार्पण एवं शिलान्यास हो चुका है। वाराणसी, अयोध्या एवं मथुरा के लिए हाइड्रोजन तथा इलेक्ट्रिक कैटामेरान का अनुबन्ध तथा वाराणसी एवं डिब्रूगढ़ के मध्य क्रूज की समय-सारिणी का विमोचन भी हो चुका है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का मानना है कि जल परिवहन के प्रारम्भ होने से रेलवे तथा सड़कों के भार को कम करने में मदद मिलेगी। इससे डीजल की खपत को कम करते हुए प्रदूषण को भी कम किया जा सकेगा। इस प्रकार इसके माध्यम से अनेक लाभ प्राप्त होंगे। इन लाभों का केन्द्र बिन्दु काशी बनने जा रहा है। सुविधाओं को बढ़ाया जा रहा है। जल परिवहन के माध्यम से पर्यटन के साथ ही, कार्गो की सुविधा लोगों को प्राप्त होगी।उत्तर प्रदेश देश में परम्परागत उत्पाद, एमएसएमई का सबसे बड़ा केन्द्र है।
मुख्यमंत्री का यह भी मानना कि उत्तर प्रदेश में नब्बे सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों के उद्यमी तथा उद्योग हैं। उनके उत्पादों को उत्तर प्रदेश के बाहर देश के अन्य भागों में तथा दुनिया के बाजार में पहुंचाने में दिक्कत होती थी, क्योंकि उत्पादों की लागत पोर्ट तक पहुंचते-पहुंचने काफी ज्यादा हो जाती थी। पहले प्रदेश की नदियों में जल परिवहन की सुविधा थी। इसके माध्यम से यहां पर कोयला आता था और गुड़, चीनी, फल, सब्जियां, अनाज तथा खाद्यान्न यहां से बाहर जाता था। हिमालय से आने वाली नदियों में विशेषकर बरसात के मौसम में सिल्ट काफी मात्रा में आता है। इसकी डिसिल्टिंग नहीं की गई। परिणामतः नदियां छिछली होती गईं। उनका दायरा बढ़ता गया। जल परिवहन का स्थान सड़क तथा अन्य परिवहन माध्यमों ने ले लिया। यह महंगा होने के साथ ही, सभी के लिए सुगम भी नहीं था। इसका परिणाम हुआ कि यहां के उत्पाद यहीं तक सीमित रह गये। एमएसएमई उद्योग का भी नुकसान हुआ। प्रधानमंत्री ने वाराणसी से हल्दिया के बीच पहला राष्ट्रीय जलमार्ग दिया। भदोही तथा मीरजापुर की कालीन, चन्दौली का ब्लैक राइस, जौनपुर के वूलेन कारपेट, गाजीपुर का जूट वॉल हैंगिंग, मऊ के पावरलूम टेक्सटाइल्स, मीरजापुर के ब्रास प्रोडक्ट, प्रयागराज के मूंज और फूड प्रोसेसिंग के उत्पाद तथा वाराणसी की सिल्क साड़ियां इन सभी को यहां से शिप पोर्ट तक भेजने में मदद मिली।
एक वर्ष में वाराणसी तथा आसपास के जनपदों से सैंतीस सौ करोड़ रुपये के ओडीओपी उत्पादों का निर्यात किया गया। इससे यहां के उद्यमियों, कारीगरों, किसानों तथा हस्तशिल्पियों को कार्य मिला और उन्हें मुनाफा भी प्राप्त हुआ। दो वर्ष पूर्व प्रधानमंत्री ने काशी को इनलैंड वॉटर-वे का उपहार दिया था। अब प्रदेश के चार जनपदों वाराणसी, चन्दौली, गाजीपुर तथा बलिया में पंद्रह जेट्टियों का लोकार्पण और शिलान्यास हुआ है। इनके माध्यम से आत्मनिर्भर भारत की परिकल्पना को साकार करते हुए जल परिवहन की गतिविधि को तेज किया जा वाराणसी में गंगा जी में रो-रो फेरी सर्विसेज का संचालन पर्यटन विभाग द्वारा किया जा रहा है।
वाराणसी में मल्टीमोडल टर्मिनल, जनपद चन्दौली और मीरजापुर में फ्रेट विलेज तथा जनपद गाजीपुर में इंटरमोडल टर्मिनल का विकास किया जा रहा है। उत्तर प्रदेश में ईस्टर्न तथा वेस्टर्न फ्रेट कॉरिडोर का जंक्शन बोडाकी में है। यहां राज्य सरकार मल्टी मोडल लॉजिस्टिक हब तथा टर्मिनल हब के निर्माण की गति को आगे बढ़ा रही है। सड़क परिवहन के क्षेत्र में प्रदेश में बड़े कार्य हुए हैं। वर्तमान में एक दर्जन एक्सप्रेस-वे के साथ ही, भारत सरकार के सहयोग से सभी हाइवेज के फोर लेन तथा सिक्स लेन के निर्माण की दिशा में तेजी से कार्य किया जा रहा है।
(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)