– ऋतुपर्ण दवे
एक बार फिर पूरी दुनिया चीन में बच्चों में फैली रहस्यमय बीमारी को लेकर बेहद खौफजदा है। ढीठ चीन पहले की तरह ऐंठा हुआ है कि किसी नई बीमारी के संकेत वहां नहीं मिले हैं। जो हैं सभी पहले से मालूम बैक्टीरिया-वायरस हैं जो बच्चों में फैल रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने बीजिंग से पूछा तो उसने बताया कि कुछ भी असामान्य नहीं है। यह साधारण बीमारी है। लेकिन उसकी चालबाजी यहीं समझ आती है कि जब बीमारी सामान्य है तो फिर क्यों विशेषज्ञ इसकी वजह कोविड पाबंदियों को हटाना, इन्फ्लूएंजा, बच्चों में एक आम जीवाणु संक्रमण यानी माइकोप्लाज्मा निमोनिया और रेस्पिरेटरी सिंकाइटियल वायरस यानी आरएसवी को बताते हैं? कहीं चीन बीमारी की सच्चाई जानकर भी दुनिया को दोबारा धोखा देने की फिराक में तो नहीं? क्यों विश्व स्वास्थ्य संगठन भी लोगों से अपील कर रहा है कि साफ-सफाई का ध्यान रखें और श्वांस संबंधी किसी भी लक्षणों पर तुरंत डॉक्टर से मिलें।
पड़ोसी नेपाल ने न केवल अलर्ट जारी किया बल्कि बीमारी की जानकारी न देने पर चीन से नाराजगी भी जताई है। कोविड-19 सरीखे लक्षणों वाली नई बीमारी के चीन में जितने भी टेस्ट हुए हैं उनमें चीन ने कोरोना को खारिज किया है। लेकिन क्यों विशेषज्ञ इतने दिनों के बाद भी किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पा रहे हैं? बीमारी कैसे फैल रही है? इसे लेकर बीजिंग खामोश है। इसी 13 नवंबर को उसके राष्ट्रीय स्वास्थ्य आयोग ने बताया था कि वहां एक नया संक्रमण तेज फैल रहा है। बच्चे ज्यादा चपेट में आ रहे हैं।
उत्तरी भागों में पिछले तीन बरसों के मुकाबले इस अक्टूबर मध्य से एकाएक तेजी से इस बीमारी ने पैर पसारा। इन्फ्लूएंजा अमूमन जल्द काबू आता है। जब नहीं आया तब 21 नवंबर को सार्वजनिक रोग निगरानी प्रणाली (प्रोमेड) ने उत्तरी चीन में रहस्यमय न्यूमोनिया जैसी बीमारी सार्वजनिक की। देखते-देखते अस्पताल मरीजों से भरने लगे, जो रुकने का नाम ही ले रहे। यहीं से चिंता और चीन के पुराने झूठ और दोगलेबाजी पर ध्यान गया। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने चीन को चेताया कि बीमारी के जोखिम को कम करने खातिर टीकाकरण और मरीजों से जरूरी दूरी बनाकर क्वारांटाइन करें और जांच कराएं। मास्क पहनने और नियमित रूप से हाथ धोने जैसी बातों का पालन हो।
भारत सतर्क है लेकिन ज्यादा कुछ कहने से गुरेज कर रहा है। यह संक्रमण महामारी बनेगा या नहीं? यह भविष्य के गर्त में है। यह सही है कि पिछले दो-तीन माहों से भारत में बुखार का एक अजीब दौर दिख रहा है, जिसमें मरीज को पूरी तरह से ठीक होने में 10 से 15 दिन लग रहे हैं। ऊपर से पूरा शरीर टूटता है तथा जबरदस्त कमजोरी के साथ खांसी की शिकायत भी रहती है। चीन का रहस्यमय इन्फ्लूएंजा भी भारी पड़ रहा है। चिकित्सक भी सलाह देते हैं कि ऐसी कोई भी बीमारी या मिलते-जुलते लक्षण दिखें तो तुरंत जांच व परामर्श लिया जाए।
प्रायः वायरल या बैक्टीरियल संक्रमण बुखार पैदा करता है जो ठंड में या दूसरे मौसम में भी संभव है। इसमें नाक बहना, खांसी, सांस की लघुता यानी शॉर्टनेस ऑफ ब्रीद (एसओबी), उल्टी और दस्त भी हो सकता है। सभी मामलों में जरूरी नहीं कि यही लक्षण हों। इसके कई दूसरे कारण भी हो सकते हैं जैसे एडेनो वायरस, इन्फ्लूएंजा वायरस, एंटरोवायरस, राइनोवायरस और कोविड वायरस जैसे तमाम वायरस जिम्मेदार हैं। वहीं कुछ सामान्य से बैक्टीरिया और कुछ असामान्य बैक्टीरिया जैसे स्पाइरोकेट्स जिससे सिफलिस और लाइम रोग तो लेप्टोस्पाइरासे नाक, मुंह, आंखों में जानवरों के मल-मूत्र से दूषित पानी या मिट्टी के चोटिल त्वचा पर लगने से फैल कर जीवन-घातक बीमारियों में बदल जाता है।
संयुक्त राष्ट्र की स्वास्थ्य एजेंसी ने अजीब चीनी निमोनिया को लेकर तमाम मीडिया रिपोर्ट्स और ग्लोबल संक्रामक रोग मॉनिटरिंग सर्विस की रिपोर्टों का हवाला दिया है। यह भी कहा है किए सभी सांस के संक्रमण के मामले नहीं हैं जो चिंताजनक है। वैज्ञानिक और रिसर्चर कड़ी निगरानी की बात कहते हैं। बीजिंग से करीब 700 किलोमीटर दूर लिओनिंग में तेजी से फैल रही बीमारी बच्चों को निशाना बना रही है। हालात बेकाबू हैं। अस्पतालों में जगह नहीं है। स्कूल बन्द हो चुके हैं। चीन कुबूलता तो है कि बीमारी बढ़ी है। लेकिन कोरोना के सरीखे रहस्यमयी चुप्पी साधे हुए है। बस इसी से दुनिया एक बार फिर चीन को शक की निगाह से देख रही है।
वहां कोरोना सरीखे पाबंदियां लग चुकी हैं। दुनिया दोबारा कोरोना महामारी के अटैक से डरी है। ऐसे में किसी बड़े खतरे और महामारी को टालने खातिर मास्क और प्रभावितों से दो गज की दूरी फिर जरूरी है। कोरोना के दौरान और कोरोना के बाद के हालातों से दुनिया बड़ा सबक पहले ले चुकी है। ऐसे में वैक्सीन से पहले ही आपसी समझ और परहेज से काबू हो जाए तो इससे बेहतर क्या हो सकता है?
(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)