भोपाल (Bhopal)। मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) उच्च न्यायालय की इंदौर ब्रांच (Indore Branch of High Court) में रघुनंदन सिंह परमार (Raghunandan Singh Parmar) की पटवारी भर्ती परीक्षा (Patwari Recruitment Exam) के संबंध में लगाई गई जनहित याचिका को खारिज कर दिया है। हाईकोर्ट के जज एसए धर्माधिकारी और हिरदेश जी. ने शुक्रवार को अपने फैसले में कहा है कि याचिकाकर्ता ने राज्य सरकार के समक्ष अपनी याचिका प्रस्तुत न कर सीधे न्यायालय में याचिका दायर की, जो कि म.प्र. हाई कोर्ट के नियमों का सीधा उल्लघंन है। कोर्ट ने यह भी निर्णय दिया कि कोर्ट का कीमती समय खराब करने के लिए याचिकाकर्ता पर अर्थदण्ड लगाया जाये।
जनसम्पर्क अधिकारी पंकज मित्तल ने शुक्रवार देर शाम उक्त जानकारी देते हुए बताया कि कोर्ट के निर्णय अनुसार याचिकाकर्ता रघुनंदन सिंह परमार को 10 हजार रुपये की राशि अर्थदण्ड के रूप मे न्यायालय में जमा करवानी होगी। यह राशि याचिकाकर्ता द्वारा हाई कोर्ट विधिक सेवा समिति इंदौर में 30 दिनों के भीतर जमा की जाएगी। यदि ऐसा नहीं होता है, तो इस प्रकरण की सुनवाई कोर्ट के समक्ष होगी और भू-राजस्व के एरियर के रूप में राशि वसूलने के लिए उचित निर्णय लिया जाएगा।
कोर्ट ने अपने निर्णय में यह भी लिखा है कि पटवारी परीक्षा भर्ती में हुई कथित अनियमितताओं की जाँच के लिए राज्य सरकार ने पहले ही कार्यवाही कर दी है।
उल्लेखनीय है कि रघुनंदन सिंह परमार ने पटवारी भर्ती परीक्षा में हुई तथाकथित धांधली के संबंध में जनहित याचिका लगाई थी। याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका की सुनवाई के लिए हाई कोर्ट के वर्तमान जज या सेवानिवृत्त जज की उच्च स्तरीय समिति की मांग की थी।
एडवोकेट जनरल ने अपनी दलील में कहा कि याचिकाकर्ता ने सिर्फ समाचार पत्रों की कटिंग के आधार पर बल्कि अप्रमाणित और अप्रसांगिक दस्तावेज देते हुए याचिका लगाई है। याचिकाकर्ता सक्रिय रूप से राजनीति में संलग्न है। इसलिए उनकी मंशा राजनीति से प्रेरित है। याचिकाकर्ता अपनी याचिका के संबंध में संबंधित अधिकारी के पास शिकायत लेकर जा सकते हैं। उन्होंने ऐसा नहीं किया और इस तरह हाई कोर्ट के नियम 2008 का उल्लंघन हुआ है, अत: याचिका खारिज किए जाने योग्य है।
कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी लिखा कि सिर्फ वकील की फीस देकर जनहित याचिका लगाने के आधार पर और कोर्ट के समक्ष अपने सामाजिक कार्यकर्ता होने का प्रमाण न देने में असफल होने पर कोर्ट ने माना कि याचिका सुनवाई योग्य नहीं है। प्रकरण में तथ्यों के आधार पर कोर्ट ने यह याचिका समाचार पत्रों की रिर्पोटिंग के आधार पर प्रस्तुत की गई है। किसी प्रकार का अनुसंधान नहीं किया गया है न ही कोई सूचना का स्त्रोत दिया गया है जिस आधार पर यह कहा जा सके कि परीक्षा में गड़वड़ी हुई है। इसलिए कोर्ट ने यह याचिका खारिज कर दी है।
पटवारी परीक्षा से जुडे विषय में राज्य सरकार पहले ही कार्यवाही कर चुकी थी। एडवोकेट जनरल ने इस संबंध में सामान्य प्रशासन विभाग के 19.07.2023 का आदेश प्रस्तुत किया। कोर्ट ने माना कि राज्य सरकार की इस कार्यवाही के बाद याचिकाकर्ता द्वारा मांग की जा रही जांच समिति की कोई आवश्यकता नहीं है।