– निशान्त
दुनिया भर में विकास का पहिया कुछ इस रफ्तार से घूमता हुआ आगे बढ़ रहा है कि तमाम कोशिशों के बावजूद, पीछे जानलेवा हवाओं का गुबार छोड़ रहा है। जी हाँ, फिलहाल दुनिया के तमाम बड़े शहर में रहने वाले लोग जानलेवा हवाओं में सांस ले रहे हैं। दुनिया भर के 7000 शहरों में वायु गुणवत्ता से जुड़े एक विश्लेषण में यह भी पता चलता है कि बात जब PM 2.5 के स्तरों की होती है तब हमारे देश की राजधानी दिल्ली सबसे ऊपर आती है।
दरअसल अमेरिका स्थित शोध संगठन हेल्थ इफेक्ट्स इंस्टीट्यूट (एचईआई) द्वारा प्रकाशित एक नई रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया के सबसे बड़े शहर और शहरी क्षेत्र इस वक़्त सबसे खराब वायु गुणवत्ता का सामना कर रहे हैं। एचईआई के स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर इनिशिएटिव द्वारा जारी एयर क्वालिटी एंड हेल्थ इन सिटीज़ नाम की यह नई रिपोर्ट दुनिया भर के 7,000 से अधिक शहरों के लिए वायु प्रदूषण और वैश्विक स्वास्थ्य प्रभावों का एक व्यापक और विस्तृत विश्लेषण सामने रखती है और इसमें दो सबसे हानिकारक प्रदूषकों, फाइन पार्टिकुलेट मैटर (PM 2.5) और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO2), पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
साल 2019 में, उस साल विश्लेषण में शामिल 7,239 शहरों में PM 2.5 से जुड़ी 1.7 मिलियन मौतें हुईं और साथ ही PM 2.5 के चलते एशिया, अफ्रीका और पूर्वी और मध्य यूरोप के शहरों में जनस्वास्थ्य पर सबसे अधिक प्रभाव पड़ा। ऐसा अनुमानित है कि साल 2050 तक विश्व की 68 प्रतिशत आबादी शहरी क्षेत्रों में रहने लगेगी। शहरीकरण कि यह तेज़ी वायु प्रदूषण के स्वास्थ्य प्रभावों को कम करने की लड़ाई में दुनिया के शीर्ष शहरों को सबसे आगे रखती है, खासकर निम्न और मध्यम आय वाले देशों में।
इस रिपोर्ट में, साल 2010 से 2019 के आंकड़ों का उपयोग करते हुए, पाया गया कि दो प्रमुख वायु प्रदूषकों के संपर्क में आने के वैश्विक पैटर्न आश्चर्यजनक रूप से भिन्न हैं। जहां एक ओर निम्न और मध्यम आय वाले देशों में PM 2.5 प्रदूषण का जोखिम अधिक होता है, वहीं NO2 उच्च-आय के साथ-साथ निम्न- और मध्यम वर्गीय शहरों में भी एक खतरा होती है।
डब्ल्यूएचओ वायु गुणवत्ता स्तरपीएम 2.5 के लिए 5 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर है और NO 2 के लिए 10 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर है। NO 2 मुख्य रूप से पुराने वाहनों, बिजली संयंत्रों, औद्योगिक सुविधाओं और आवासीय खाना पकाने और हीटिंग में अक्सर ईंधन के जलने से आता है। चूंकि शहर के निवासी घनी यातायात वाली व्यस्त सड़कों के करीब रहते हैं, इसलिए वे अक्सर ग्रामीण क्षेत्रों के निवासियों की तुलना में अधिक NO 2 प्रदूषण के संपर्क में आते हैं। 2019 में, इस रिपोर्ट में शामिल 7,000 से अधिक शहरों में से 86% ने NO 2 के लिए WHO के 10 माइक्रोग्राम / मी 3 दिशानिर्देश को पार कर लिया , जिससे लगभग 2.6 बिलियन लोग प्रभावित हुए। जबकि पीएम 2.5 प्रदूषण दुनिया भर के ज्ञात हॉटस्पॉट पर अधिक ध्यान आकर्षित करता है, इस वैश्विक स्तर पर NO 2 के लिए कम डेटा उपलब्ध है।
इस रिपोर्ट परियोजना के सहयोगियों में से एक जॉर्ज वाशिंगटन विश्वविद्यालय के डॉ. सुसान एनबर्ग की मानें तो “चूंकि दुनिया भर के अधिकांश शहरों में जमीन पर आधारित वायु गुणवत्ता निगरानी नहीं है, इसलिए वायु गुणवत्ता प्रबंधन की योजनाएँ बनाने के लिए पर्टिकुयटेट या कण और गैस प्रदूषण के स्तरों का अनुमान लगाने से हमें स्वच्छ और सांस लेने के लिए सुरक्षित हवाओं के लिए नीतियाँ बनाने में मदद मिलती है।”
रिपोर्ट में निम्न और मध्यम आय वाले देशों में डेटा की अनुपलब्धता पर भी प्रकाश डाला गया है, जो वायु प्रदूषण के स्वास्थ्य प्रभावों को समझने और संबोधित करने का एक महत्वपूर्ण पहलू है। WHO के वायु गुणवत्ता डेटाबेस के अनुसार, वर्तमान में केवल 117 देशों के पास PM 2.5 को ट्रैक करने के लिए जमीनी स्तर की निगरानी प्रणाली है , और केवल 74 राष्ट्र NO 2 स्तरों की निगरानी कर रहे हैं। जमीनी स्तर की वायु गुणवत्ता निगरानी प्रणालियों में रणनीतिक निवेश और लक्षित क्षेत्रों में उपग्रहों और अन्य उभरती प्रौद्योगिकियों का विस्तारित उपयोग स्वच्छ हवा की दिशा में महत्वपूर्ण पहला कदम प्रदान कर सकता है। रिपोर्ट ने दुनिया भर के शहरों के लिए वायु गुणवत्ता अनुमान तैयार करने के लिए उपग्रहों और मॉडलों के साथ जमीन आधारित वायु गुणवत्ता डेटा को जोड़ा है।
रिपोर्ट के साथ, HEI ने नए ऑनलाइन इंटरेक्टिव मानचित्र और डेटा ऐप को भी लॉन्च किया जिसकी मदद से उपयोगकर्ता शहर के स्तर पर वायु प्रदूषण डेटा और स्वास्थ्य प्रभावों को देख सकेंगे। समय के साथ प्रदूषण के निम्न स्तर में भी सांस लेना स्वास्थ्य पर असंख्य प्रभाव पैदा कर सकता है, जिसमें जीवन प्रत्याशा में कमी, स्कूल और काम छूटना, पुरानी बीमारियाँ और यहाँ तक कि मृत्यु भी शामिल है, जो दुनिया भर के समुदायों और अर्थव्यवस्थाओं पर भारी दबाव डालता है। दुनिया भर में, वायु प्रदूषण नौ मौतों में से एक के लिए जिम्मेदार है, 2019 में 6.7 मिलियन मौतों के लिए जिम्मेदार है, विशेष रूप से युवाओं, बुजुर्गों और पुरानी श्वसन और हृदय रोगों वाले लोगों पर इसका गहरा प्रभाव है।
प्रगति के लिए क्या हो कार्रवाई?
जैसे-जैसे वैश्विक शहरीकरण बढ़ता जा रहा है, वायु प्रदूषण महत्वपूर्ण समस्याएं पैदा करना जारी रखेगा, खासकर कम संसाधनों वाले शहरों में। लेकिन कुछ शहर सफलता देख रहे हैं क्योंकि वे अपनी प्रदूषण की समस्याओं का समाधान करते हैं। यूरोप में, उदाहरण के लिए, 300 से अधिक शहरों ने वाहनों के लिए कम उत्सर्जन क्षेत्र (एलईजेड) बनाए हैं, जिससे यातायात वायु प्रदूषण में गिरावट आई है। अन्य शहर सख्त स्वच्छ वायु नीतियों की स्थापना या विस्तार कर रहे हैं जो वाहन ईंधन दक्षता को लक्षित करते हैं और कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्रों से उत्सर्जन में कमी करते हैं।
वायु प्रदूषण के पिछले और निरंतर उच्च स्तर के जवाब में, बीजिंग, चीन ने पिछले दस वर्षों में कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्रों पर कठोर नियंत्रण लागू किया है, जबकि यातायात से संबंधित प्रदूषण को रोकने के लिए कड़े वाहन उत्सर्जन और ईंधन गुणवत्ता मानकों को भी स्थापित किया है। शहर ने अपने हवाई निगरानी स्टेशनों को 2013 में 35 से बढ़ाकर 2019 में 1,000 से अधिक कर दिया, जो शहर के वार्षिक औसत पीएम 2.5 स्तर में केवल पांच वर्षों में 36% की गिरावट का दस्तावेजीकरण करता है। पिछले एक दशक में NO 2 एक्सपोज़र में सबसे अधिक गिरावट दिखाने वाले शीर्ष 20 शहरों में से 18 चीन में हैं। इन सुधारों के बावजूद, बीजिंग अभी भी PM 2.5 और NO 2 दोनों के लिए शीर्ष 20 सबसे प्रदूषित शहरों में शामिल है ।
एचईआई की वरिष्ठ वैज्ञानिक पल्लवी पंत ने कहा, “जैसे-जैसे दुनिया भर के शहर तेजी से बढ़ते हैं, लोगों के स्वास्थ्य पर वायु प्रदूषण के प्रभाव भी बढ़ने की उम्मीद है। इसके चलते इस जोखिम को कम करने और सार्वजनिक स्वास्थ्य की रक्षा के लिए शुरुआती कदम लेने की भूमिका बनती है।”
इस रिपोर्ट का को स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर इनिशिएटिव द्वारा हेल्थ एफ़ेक्ट्स इनिशिएटिव और इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ मेट्रिक्स एंड इवैल्यूएशन के ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज प्रोजेक्ट के सहयोग से बनाया है।
स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर (SoGA) दरअसल एक शोध पहल है जो दुनिया भर में वायु गुणवत्ता और इसके स्वास्थ्य प्रभावों के बारे में विश्वसनीय, सार्थक जानकारी प्रदान करती है। हेल्थ एफ़ेक्ट्स इनिशिएटिव और इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ मेट्रिक्स एंड इवैल्यूएशन के ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज प्रोजेक्ट के सहयोग से बनी यह रिपोर्ट, आमजन, नीति निर्माताओं, और वैज्ञानिकों को वायु प्रदूषण जोखिम और इसके स्वास्थ्य प्रभावों के बारे में उच्च गुणवत्ता, वस्तुनिष्ठ जानकारी तक पहुंच प्रदान करता है। वहीं हेल्थ एफ़ेक्ट्स इनिशिएटिव (HEI) अमेरिकी पर्यावरण संरक्षण एजेंसी, उद्योग और अन्य संस्थानों द्वारा संयुक्त रूप से वित्त पोषित एक स्वतंत्र, गैर-लाभकारी अनुसंधान संस्थान है।