– हृदयनारायण दीक्षित
चन्द्र देव भारतीय मनीषा की जिज्ञासा हैं। वे पृथ्वी के निवासियों का आकर्षण रहे हैं। संप्रति भारत की चन्द्रमा पर पहुँचने की महत्वाकांक्षी योजना चर्चा में है। सारी दुनिया का ध्यान चन्द्र देवता पर लगा हुआ है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के प्रतिभाशाली वैज्ञानिक चन्द्रयान की सफलता को लेकर पूरे मनोयोग से जुटे हैं। चन्द्रयान की सफलता के बाद तमाम नए तथ्य प्रकाश में आएँगे। चन्द्रमा का पहला चित्र आ गया है। चन्द्रमा वैदिक काल से ही भारत का आकर्षण रहा है। लोकश्रुति के अनुसार चन्द्रमा माता पृथ्वी का भाई है। इसलिए हम सब का मामा है। प्रकृति सृष्टि के उदय के साथ ही चन्द्रमा का अस्तित्व भी प्रकट हुआ। ऋग्वेद के पुरुष सूक्त (10.90.13) में कहा गया है कि विराट पुरुष के मन से चन्द्रमा और आँखों से सूर्य प्रकट हुआ – चन्द्रमा मनसो जातश्चक्षोः सूर्यो अजायतः।‘’ चन्द्रमा का सम्बंध मन से है। ऋग्वेद में चन्द्रमा भी एक देवता हैं। वे अंतरिक्ष स्थानीय देवता हैं। ऋग्वेद (10.85.19) में कहते हैं, ‘‘ये चन्द्र देवता नित्य उदित होते हैं और नवीनतम होते हैं। सूर्य देव प्रतिदिन नवीन रूप में प्रातःकाल प्रकट होते हैं। वे देवों के निमित्त यज्ञ के हवि भाग की व्यवस्था करते हैं।‘’ इसी तरह चन्द्र देव सबको आनंदित जीवन और दीर्घायु प्रदान करते हैं। भारतीय काव्य परम्परा में चन्द्रमा सुंदरता बोधक हैं। कवियों ने चन्द्रमा के सौंदर्य को सुंदरता का प्रतीक बताया है। भारतीय साहित्य में भी चन्द्र सौंदर्य भरा पूरा है।
वैदिक काल में चन्द्रमा की उपासना थी। इस उपासना के बीज भारतीय देव शास्त्र से लेकर प्राचीन यूनान, रोमन, ईरानी और जर्मन में पाए जाते हैं। डॉ. गया चरण त्रिपाठी ने ‘वैदिक देवता उद्भव और विकास’ के पृष्ठ 27 में लिखा है, ‘‘ऋग्वेद में सूर्य के साथ द्वंद्व समास में इसका कई स्थानों पर उल्लेख है। ग्रीक देवशास्त्र में चन्द्रमा को तीन चक्रों वाले रथ में आकाश में भ्रमण करते हुए बताया गया है।‘’ विष्णु पुराण में भी इसी तरह का उल्लेख है। वैदिक साहित्य में चन्द्रमा औषधियों और सोम लता से सम्बंधित हैं। वे औषधियों के राजा हैं। रात्रि में औषधियां चन्द्रमा की किरणों से रस ग्रहण करती हैं। सोम और चन्द्रमा का सम्बंध बहुत प्रीतिपूर्ण है। वैदिक देवशास्त्र में चन्द्रमा और सोम लगभग पर्यायवाची हो गए हैं।
डॉ. त्रिपाठी ने बताया है, ‘‘आर्य जाति में सूर्य और चन्द्रमा की विभिन्न लिंगों में कल्पना बहुत प्राचीन है। जर्मन, ऐंग्लोसेक्शन और लिथुआनियन भाषाओं में सूर्यवाची शब्द स्त्रीलिंग में है और चन्द्रमा के शब्द पुल्लिंग में है। लेकिन ग्रीक और लैटिन भाषाओं में सूर्यवाची सभी शब्द पुल्लिंग हैं और चंद्रमा के वाची स्त्रीलिंग। दोनों की भाई और बहन या पति के रूप में कल्पना की गई है। एक लैटिन गीत में कहा गया है कि, ‘‘एक बार चन्द्रमा और सूर्य ने परस्पर विवाह किया। पत्नी सूर्य प्रातःकाल उठ जाती थी। लेकिन पति (चन्द्रमा) देर से उठता था। दोनों में लड़ाई हो गई। पति (चन्द्रमा) उषा काल के तारे से प्रेम करने लगा। इससे शक्तिशाली पैकुण्न नाराज हुआ। उसने पति (चन्द्रमा) पर खड़ग प्रहार किया जिससे वह खंडित हो गया।’ इसी तरह की एक रोचक बात यूरोपीय लोककथा में कही गई है। इस कथा में सूर्य आकाश की पुत्री है और चन्द्रमा पुत्र। पिता आकाश ने पुत्र चन्द्रमा को दिन में तथा पुत्री सूर्य को रात्रि में प्रकाश करने के लिए नियुक्त किया। पुत्री को रात्रि में डर लगता था। इसलिए उसने दोनों की ड्यूटी बदल दी। दूसरे दिन प्रातः आकाश पुत्री पूरब से उदित हुई। पृथ्वी के लोग उसकी ओर एक टक देख रहे थे। भारत की प्राचीन लोककथाओं में सूर्य और चन्द्रमा राजा रानी हैं।
चन्द्रमा भारतीय सौन्दर्य कल्पनालोक का महानायक रहा है। चन्द्रमा सूर्य के प्रकाश से प्रकाशित होता है। उसका अपना प्रकाश नहीं होता। एक तरह से चन्द्रमा ब्रह्माण्ड की पहली सौर्य ऊर्जा की लालटेन है। चन्द्रमा घटता-बढ़ता है। चन्द्र प्रकाश घटते-घटते पंद्रहवें दिन अमावस्या हो जाता है। इसी तरह बढ़ते-बढ़ते पंद्रहवें दिन पूर्णिमा बनता है। मास और मुहूर्त का विभाजन चन्द्रमा के कारण होता है। मुहूर्त का निर्धारण चन्द्र नक्षत्र के निर्वचन से होता है। मुहूर्त समय का अति छोटा हिस्सा होता है और सामान्य जीवन को प्रभावित करता है। महाभारतकार ने सुन्दर श्लोक में कहा है, ‘‘मुहूर्तं ज्वलितं श्रेयः, न तु धूमायितं चिरं।‘‘ – मुहूर्त भर पूरी शक्ति के साथ जलना और प्रकाश देना श्रेयस्कर है। लेकिन दीर्घ काल तक धुंआ देते जलना बेकार है। अल्पकाल के लोकमंगलकारी कार्य श्रेष्ठ होते हैं।
विश्व इतिहास के प्रख्यात ज्योतिषाचार्य वराहमिहिर की प्रमुख रचना ‘वृहत संहिता’ है। इसकी व्याख्या डॉ. सुरेश चंद्र मिश्र ने की है। रंजन पब्लिकेशन से प्रकाशित इस पुस्तक के पृष्ठ 68 में वराहमिहिर ने कहा है, ‘‘चंद्रमा सूर्य के नीचे स्थित है। इस कारण उसके जिस भाग पर सूर्य की किरणें पड़ती हैं वह भाग चमकता है। चन्द्रमा का प्रकाश वस्तुतः सूर्य का ही प्रकाश है। जिस भाग पर सूर्य की किरणें नहीं पड़ती वह भाग उसकी स्वयं की छाया के कारण काला दिखाई पड़ता है। वराह मिहिर ने चन्द्रमा को जलीय ग्रह बताया है। सूर्य की किरणें चन्द्रमा पर पड़ती हैं तो रात्रि के अंधकार का नाश करती हैं। अमावस्या के अंत में सूर्य व चन्द्रमा का स्पष्ट समान होने पर चन्द्रमा सूर्य के ठीक नीचे होता है। तब पृथ्वी की ओर वाला चन्द्रभाग अंधकार में रहने से पृथ्वीवासियों को नहीं दिखाई पड़ता।
ज्योतिर्विज्ञानियों के अनुसार चन्द्रमा एक राशि पर सवा दो दिन गतिमान रहते हैं। आधुनिक काल की बात दीगर है। वैदिक काल से लेकर लगध, वराह मिहिर, आर्यभट्ट, ब्रह्म गुप्त, भास्कराचार्य, कमलाकर भट्ट व सुधाकर द्विवेदी के काल से गुजरते हुए चन्द्रमा और उसकी राशियों का निर्वचन जारी है। यद्यपि चन्द्रमा स्वयं देवता हैं। लेकिन पूरे एशिया में प्रचलित शिव रूद्र के मस्तक पर चन्द्रमा दिखाई पड़ता है। शिव और चन्द्रमा का सम्बंध बहुत प्राचीन है। अनेक विद्वान सोम को भी चन्द्रमा मानते हैं। कौषीतकि ब्राह्मण और ऐतरेय ब्राह्मण में चन्द्रमा और सोम की अभिन्नता बताई गई है। चन्द्र देवता ही मासों के सृजनकर्ता हैं। उनके उद्भव से ही शुक्ल और कृष्ण पक्ष बनते हैं। चन्द्रमा देवता स्तुतिकर्ताओं को शांति देते हैं और उनकी आयु में वृद्धि करते हैं। जैसे शिव सभी वर्गों, मनुष्यों, कीट पतिंगों और सांपों के भी जीवन रक्षक हैं। सांप उनके गले में रहता है। वैसे सोम भी वनस्पतियों के राजा हैं। चन्द्रमा की विश्व पुरुष से उत्पत्ति का उल्लेख तैत्तरीय ब्राह्मण में भी हुआ है। चन्द्रदेव के प्रकाश का अस्तित्व सूर्य पर आधारित है।
चन्द्रयान पर इसरो के अध्ययन से चन्द्रमा के सम्बंध में नए तथ्य प्राप्त होने की संभावनाएं हैं। संभव है कि चन्द्र अभियान के परिणाम प्राचीन भारतीय मान्यताओं की कमोबेश पुष्टि करने वाले हों। संभव यह भी है कि नितांत नए तथ्यों का उद्घाटन हो। एक अध्ययन प्राचीन है। तब साधन नहीं थे। वैज्ञानिक उपकरण नहीं थे। धरती से परम व्योम तक की जानकारी प्राप्त करने की जिज्ञासा और जिजीविषा थी। ताजा अध्ययन नितांत नवीन और आधुनिक है। इसीलिए जिज्ञासुओं व जानकारों में इस अभियान के परिणामों की अधीर प्रतीक्षा है।
(लेखक, उत्तर प्रदेश विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष हैं।)